स्टार्स की रील लाइफ़ के अलग भी एक लाइफ़ है, जिसमें ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव से ले कर उनकी प्रेम कहानी तक शामिल है. यदि बॉलीवुड स्टार्स की प्रेम कहानियों पर नज़र डाले, तो पाएंगे कि कुछ ही स्टार्स की प्रेम कहानी सफ़लता के उस मुकाम तक पहुंची, जहां उन्होंने साथ जीने-मरने की कसम खाई. उन्होंने इस कसम ताउम्र निभाया. बॉलीवुड की ऐसी ही प्रेम कहानी में से एक कहानी ट्रैजेडी किंग दिलीप कुमार और सायरा बानो की है, जो इतने सालों से एक-दूसरे का साथ निभा रहे हैं.
आज हम आपके लिए दिलीप साहब और सायरा बानो की प्रेम कहानी को समेटे हुए कुछ ऐसी तस्वीरें लेकर लाये हैं, जो कहती हैं: ‘ये प्यार न होगा कम.’
इस प्रेम कहानी की शुरुआत एकतरफ़ा प्रेम के साथ हुई. विभाजन के बाद सायरा लंदन जा कर रहने लगी थी, पर स्कूल की छुट्टियों के दौरान उनका भारत आना लगा रहता था. भारत आने के दौरान सायरा, दिलीप कुमार की फ़िल्मों के सेट पर पहुंच कर घंटों उन्हें देखती रहती थीं. एक इंटरव्यू में सायरा ने कहा था कि ‘जब वो बारह साल की थीं, तब दुआ करती थीं काश उनकी शादी दिलीप साहब के साथ हो जाए.’

बॉलीवुड में आने के बाद सायरा बानो की मुलाक़ात राजेन्द्र कुमार से हुई. बॉलिवुड के जुबली कुमार के साथ काम करते-करते सायरा कब उनके प्यार में पड़ गईं उन्हें खुद ही नहीं पता चला. हालांकि राजेन्द्र कुमार पहले से ही शादी-शुदा थे, जब इस बात का पता सायरा को चला, तो वो तनाव में रहने लगीं. ऐसे समय में दिलीप साहब ने सायरा को सहारा दिया, जो बाद में प्यार में बदल गया.

11 अक्टूबर, 1966 में प्यार की ये कहानी आख़िरकार शादी के मुकाम तक पहुंचने में कामयाब रही. शादी के समय दिलीप साहब की उम्र 44 वर्ष जबकि सायरा बानो की उम्र 25 वर्ष थी.

तब से ले कर आज तक ये जोड़ी एक सुर में गाते हुए ज़िंदगी के कई बसंत साथ देख चुकी है. इस दौरान इनकी ज़िंदगी में पतझड़ भी आया, पर साथ रहते हुए इन्होंने इस पतझड़ को पीछे छोड़ कर एक नई शुरुआत की. इसके बाद ये बॉलीवुड की ऐसी जोड़ी बनी, जो शादी के इतने सालों बाद भी प्यार की एक ही नाव में सवार होती हुई दिखाई देती है.

किसी की नज़र न लगे चश्मे बद्दूर.

इस मुस्कान के लिए कुछ भी करना जायज़ है.

तुम अगर साथ देने का वादा करो.

मिया-बीवी और नोक-झोंक.

ख़ामोशी के साथ एक Kiss.

जब सुर्ख़ियां बटोरने लगी ये प्रेम कहानी.

दिलीप साहब के जन्मदिन पर दीये जलाती सायरा.

दिलीप साहब के बीमार होने पर हॉस्पिटल से उनके साथ बाहर आती उनकी हमसफ़र.

इस प्यार को मैं और क्या नाम दूं?

जब एहसास ही लफ्ज़ बन कर सब कह दें.

सब कहने के लिए बस एक मुस्कान ही काफ़ी है.
