भारत में 1975 में लगाई गई Emergency देश के सबसे काले अध्यायों में से एक है. हज़ारों नेताओं को जेल में डाला गया, प्रेस पर प्रतिबंध (Press Censorship) लगाया गया, फ़िल्में भी इस काले अंधकार से अछूती नहीं थी. एक लेख की मानें तो उस दौर में शराब की एक बोतल या ख़ून की एक बूंद भी दिख जाती तो सीन काट दिये जाते थे. एक्शन सीक्वेंस (Action Sequence) भी लिमिटेड ही दिखाये जा सकते थे, 90 सेकेंड के 6 ही फ़ाइट सीन दिखाने की अनुमति थी.

अभिनय की दुनिया से बहुत कम लोग ही सरकार के ख़िलाफ़ बोलने की हिम्मत कर पाये और इनमें किशोर कुमार (Kishore Kumar), देव आनंद (Dev Anand) और मनोज कुमार (Manoj Kumar) सबसे आगे थे.  

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इमरजेंसी काल में डॉक्युमेंट्री फ़िल्म निर्माता (Documentary Filmmaker) K.L.Khandpur और N.S.Thapa, सेन्ट्रल बॉर्ड ऑफ़ फ़िल्म सर्टिफ़िकेशन (Central Board of Film Certification) के प्रमुख थे और सरकार का हर आदेश मानते थे. ये दोनों मिलकर, Experienced Directors से फ़िल्म में कई मनमाने कट्स करवाते.

फ़िल्मी जगत से जुड़ा कोई भी शख़्स अगर सरकार का कहा नहीं मानता या संजय गांधी का कहा नहीं मानता तो उसे सज़ा मिलती. किशोर कुमार भी उन्हीं कलाकारों में से एक थे. 1976 में सूचना एवं प्रसारण मंत्री, विद्या चरण शुक्ला ने एक ऑर्डर जारी किया. इस ऑर्डर में ऑल इंडिया रेडियो (All India Radio) और दूरदर्शन (Doordarshan) को किशोर कुमार के गाने और फ़िल्में (जिनमें किशोर कुमार के गाने थे) पर प्रतिबंध लगाने के निर्देश दिये गये. किशोर कुमार पर ये प्रतिबंध आपातकाल के हटने के बाद ही हटा.   

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किशोर कुमार पर प्रतिबंध लगाने का कारण क्या था? 

इमरजेंसी काल में संजय गांधी ने अपना प्रोजेक्ट- 20 Point Economic Programme लॉन्च किया था. इसके प्रचार के लिये टीवी और रेडियो पर विज्ञापन जाने थे. जब अधिकारियों ने ये प्रपोज़ल किशोर कुमार के पास रखा तब उन्होंने साफ़ इंकार कर दिया और कहा कि वो रेडियो या टीवी के लिये गाने की इच्छा नहीं रखते हैं. 

सरकार ने किशोर कुमार पर कड़ा प्रतिबंध लगाया. इंडस्ट्री के दूसरे लोगों में भी भय पैदा करने की नीयत से सरकार ने ऐसा किया. 

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मनोज कुमार ने भी किया विरोध 

इमरजेंसी लगाने के सपोर्ट में थे अभिनेता, मनोज कुमार लेकिन इमरजेंसी काल में उन्होंने इसका डटकर विरोध किया. मंत्री विद्या चरण शुक्ला के लोग जब मनोज कुमार के पास अमृता प्रीतम द्वारा लिखी हुए एक प्रो-इमरजेंसी डॉक्युमेंट्री (Pro-Emergency Documentary) का ऑफ़र लेकर पहुंचे तब मनोज ने भी साफ़ मना कर दिया.

अमृता प्रीतम से मनोज कुमार ने सामने से कहा कि वो सरकार के हाथों बिक गईं हैं जिसके बाद प्रीतम शर्मिंदगी महसूस की और कुमार से कहा कि वो स्क्रिप्ट जला दें. 
मनोज कुमार की फ़िल्म ‘शोर’ को थियेटर रिलीज़ के 2 हफ़्ते पहले ही दूरदर्शन पर रिलीज़ कर दिया गया और ये फ़िल्म जब थियेटर में रिलीज़ हुए तो फ़्लॉप हो गई. कुमार की एक और फ़िल्म ‘दस नंबरी’ पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था लेकिन कुमार शांत बैठने के मूड में नहीं थे. सरकार के ख़िलाफ़ उन्होंने केस कर दिया और वो केस जीत भी गये. कुमार एकमात्र फ़िल्म निर्माता थे जिन्होंने इमरजेंसी काल में सरकार के ख़िलाफ़ कोई केस जीता हो.    

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देव आनंद ने दी खुली चुनौति 

देव आनंद और शत्रुघ्न सिन्हा को भी किशोर कुमार की तरह ऑफ़र और धमकियां दी गईं. शत्रुघ्न सिन्हा से तो यहां तक कहा गया कि अगर वो बिहार चुनाव प्रचार में हिस्सा नहीं लेंगे तो उन्हें बरोडा डायनामाइट केस में फंसा दिया जायेगा लेकिन सिन्हा ने इंकार कर दिया. 

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देव आनंद एक क़दम आगे बढ़ गये और अपने भाइयों, चेतन आनंद और विजय आनंद के साथ मिलकर पब्लिकली सरकार की आलोचना की. देव आनंद ने अपनी ऑटोबायग्राफ़ी Romancing With Life में इन घटनाओं की चर्चा की है.

सरकार ने देव आनंद पर अंकुश लगाने के लिये उनकी फ़िल्मों की शूटिंग में बाधायें डालना शुरू किया. इसके बावजूद आनंद पब्लिक प्लेटफ़ॉर्म्स पर सरकार के ख़िलाफ़ बोलते. जुहू बीच पर भाषण देते हुये उन्होंने इंदिरा गांधी और संजय गांधी पर सीधा हमला बोला था. सरकार से दो-दो हाथ करने के लिये उन्होंने नेशनल पार्टी नाम से पार्टी भी बनाई थी.  

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उस दौर में इन कलाकारों ने जो किया वो न सिर्फ़ आज के कलाकारों को जानना चाहिये बल्कि उनसे हिम्मत लेने की भी कोशिश करनी चाहिये.