Film Banners Opening Line : आज की तेज़ी से बदलती टेक्नोलॉजी की दुनिया में जब-जब पुरानी फ़िल्में देखते हैं, तब-तब बस यही याद आता है कि हिंदी सिनेमा वर्ल्ड ने समय के साथ कितनी तेज़ी से करवट ली है. वर्तमान समय में बनने वाली बॉलीवुड मूवीज़ की सिनेमाटोग्राफ़ी की क्वालिटी इतनी ज़बरदस्त होती है कि आपको बारीक़ से बारीक़ डिटेलिंग भी बिल्कुल क्लियर दिखाई देती है. हालांकि, सिर्फ़ यही नहीं बदला है. पुराने समय में हिंदी फ़िल्मों के बैनर की ओपनिंग लाइंस भी काफ़ी भारी-भरकम हुआ करती थीं, जो आज के टाइम में इक्का-दुक्का बैनर्स में ही देखने को मिलती हैं.
आज हम आपको पुरानी हिंदी फ़िल्मों के बैनर्स की ओपनिंग लाइन के बारे में बताएंगे.
1. सुल्तान प्रोडक्शंस
सुल्तान प्रोडक्शंस के बैनर तले कई हिंदी फ़िल्में बन चुकी हैं, जिसमें ‘हीरा’, ‘गंगा की सौगंध’, ‘धर्मकांटा’ आदि शामिल हैं. इस बैनर की ओपेनिंग लाइन ‘कश्तियां सबकी किनारे पर पहुंच जाती हैं, नाख़ुदा जिनका नहीं उनका ख़ुदा होता है‘, उस दौर में काफ़ी इंस्पायरिंग थी.
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2. टाइम फ़िल्म्स
टाइम फ़िल्म्स ने भी कई पुरानी हिंदी मूवीज़ को जन्म दिया है. इसकी ओपनिंग लाइन ‘फ़ानूस बन के जिसकी हिफ़ाज़त हवा करे, वो शमा क्या बुझे जिसे रोशन ख़ुदा करे’ भी काफ़ी शानदार थी.
3. गौतम पिक्चर्स
गौतम पिक्चर्स को अपनी ओपेनिंग लाइन की इंस्पिरेशन ग़ालिब से मिली थी. उनके बैनर की ओपेनिंग लाइन ‘मत सुनो गर बुरा कहे कोई, मत कहो गर बुरा करे कोई. रोक लो गर ग़लत चले कोई, बख्श दो ग़र ख़ता करे कोई‘, रोंगटे खड़े कर देती थी.
4. RM आर्ट प्रोडक्शन
रतन मोहन के RM आर्ट प्रोडक्शन के बैनर तले कई फ़िल्में बनी थीं. इसमें ‘सब का उस्ताद’, ‘महाशक्तिशाली’, ‘स्मगलर’ आदि शामिल हैं. इसकी ओपनिंग लाइन ‘ख़ुद ही को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले, ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे कि बता तेरी रज़ा क्या है‘, काफ़ी प्रेरणादायक थी.
5. बहरी फ़िल्म्स
1983 में आई फ़िल्म ‘हम से है ज़माना’ बहरी फ़िल्म्स बैनर के तले बनी थी. इस फ़िल्म की ओपनिंग लाइन ‘हज़ार बर्क गिरे, लाख आंधियां उठें, वो फूल खिल के रहेंगे, जो खिलने वाले हैं’, उस दौर में काफ़ी सुर्ख़ियों में थी.
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6. आफ़ताब पिक्चर्स
समय के साथ कई फ़ेमस सेलेब्स ने आफ़ताब पिक्चर्स के इंट्रो को अपनी आवाज़ दी थी. इसका इंट्रो था, “नूर-ए-हक़ शम्मे इलाही को बुझा सकता है कौन, जिसकी हामी हो ख़ुदा उसको मिटा सकता है कौन“.
7. आदर्श आर्ट
आदर्श आर्ट ने अपने इंट्रो को काफ़ी सिंपल रखा था. उनका इंट्रो था, “आदमी बुरा नहीं, वक़्त बुरा होता है, जिसका कोई नहीं होता, उसका ख़ुदा होता है.”
8. एमके फ़िल्म्स
मोहन कुमार की एमके फ़िल्म्स का ये इंट्रो फ़िल्म ‘आप की परछाइयां’ से है- “अपनी ही करनी का फल है नेकियां, रुसवाइयां, आप के पीछे चलेंगी आपकी परछाइयां“.
9. एनएच फ़िल्म्स
नासिर हुसैन की एनएच फ़िल्म्स में ‘जिगर मुरादाबादी’ द्वारा लिखी गई लाइन इंट्रो में देखने को मिली थी- “क्या इश्क़ ने समझा है, क्या हुस्न ने जाना है, हम ख़ाक नशीनों की ठोकर में ज़माना है.”
10. महबूब प्रोडक्शंस
महबूब प्रोडक्शन के इंट्रो में रफ़ीक़ ग़ज़नवी की आवाज़ हुआ करती थी- “मुद्दई लाख बुरा चाहे तो क्या होता है, वही होता है जो मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है“.
11. द रूप एंटरप्राइज़
1981 में आई फ़िल्म ‘शक्का’ की ओपनिंग में कादर ख़ान ने इसके बैनर द रूप एंटरप्राइज़ में अपनी आवाज़ दी थी- “मुश्किल में, मुसीबत में, मुसर्रत में, ख़ुशी में, मैं तेरी रज़ा पर ही फ़क़त नाज़ करूंगा, हर वक़्त में हर हाल में हर काम से पहले, मैं नाम तेरा लेकर ही आगाज़ करूंगा.“
12. शहनाज़ फ़िल्म्स
शहनाज़ फ़िल्म्स का फ़िल्म ‘दौलत की जंग’ का इंट्रो हमेशा याद रहेगा- “हिम्मत की शमा हमने जला दी बढ़ा के हाथ, अब आबरू है आगे हमारी ख़ुदा के हाथ.”
क्या आपको इन में से कोई इंट्रो याद है?