फ़िल्मों में कैमरे के आगे काम करने वाली अभिनेत्रियों के बारे में तो हम ख़ूब जानते हैं मगर कैमरे के पीछे रह कर फ़िल्म डायरेक्ट करने वाली महिलाओं के बारे में कम ही जानते हैं. बॉलीवुड में बहुत सारी बेहतरीन और क़ामयाब फ़िल्में बनाने के बावज़ूद महिला फ़िल्म डायरेक्टर्स की संख्या सीमित है.
आइये जानते हैं रुपहले पर्दे पर जादुई दुनिया रचने वाली महिला डायरेक्टर्स की उन गज़ब फ़िल्मों के बारे में, जिन्हें आपको जल्द से जल्द देखना चाहिए:
1. राम प्रसाद की तेरहवीं (2021)
डायरेक्टर – सीमा पहवा
घर के मुखिया, रामप्रसाद भार्गव की मौत के बाद उनके 6 बेटों समेत कुल 20 लोगों का परिवार घर में जुटता है. इसी के साथ बाहर आती है ज़्यादातर परिवारों में दिखने वाले दिखावटी स्नेह, थोपे हुए कर्तव्यों, पूर्वाग्रहों, उम्मीदों और फर्ज़ों की कहानी. ये फ़िल्म लगभग हर भारतीय परिवार की हकीकत अपने में समेटे हुए है.
2. बरेली की बर्फी (2017)
डायरेक्टर – अश्विनी अय्यर तिवारी
बिट्टी उत्तर प्रदेश के बरेली में रहने वाली एक साधारण मगर चुलबुली लड़की है, जो स्थानीय बिजली विभाग में काम करती है. जब बिना मिले ही उसे एक उपन्यास के लेखक से प्यार हो जाता है तो वो उसे पाने के लिए क्या करती है, यही कहानी है इस फ़िल्म की.
3. इंग्लिश विंग्लिश (2012)
डायरेक्टर – गौरी शिंदे
एक गृहिणी, शशि का परिवार अक्सर अंग्रेजी न जानने के लिए उसका मज़ाक उड़ाता है. एक विदेश यात्रा के दौरान शशि का अंग्रेजी सीखने का प्रयास और इस क्रम में ख़ुद को खोजने की कहानी कहती है ये फ़िल्म.
4. डियर ज़िंदगी (2016)
डायरेक्टर – गौरी शिंदे
कायरा (आलिया भट्ट) एक होनहार सिनेमेटोग्राफ़र है, जो फ़िल्मों का निर्देशन करना चाहती है. मुंहफट और अविश्वासी स्वभाव की कायरा को जब पर्सनल और प्रोफ़ेशनल ज़िंदगी में झटके लगते हैं तो वो अनिद्रा (insomnia) से पीड़ित हो जाती है, और एक मनोवैज्ञानिक डॉ जहांगीर खान की मदद लेती है.
5. निल बटे सन्नाटा (2015)
डायरेक्टर – अश्विनी अय्यर तिवारी
लड़कियों की शिक्षा और मां-बेटी के संबंधों के इर्दगिर्द घूमती ये बहुत ही मीठी-सी कहानी है. फ़िल्म में अपेक्षा (बेटी) को लगता है की उसका पढ़ना-लिखना उसकी ग़रीबी को देखते हुए कोई काम नहीं आने वाला है. अपनी बेटी को पढाई के लिए मोटीवेट करने के इरादे से चंदा एक अनोखा रास्ता अपनाती है.
6. पीपली लाइव (2010)
डायरेक्टर – अनुषा रिज़वी
वर्ष 2010 में रिलीज हुई ये फ़िल्म एक व्यंग्यात्मक कॉमेडी ड्रामा है, जो कि किसानों की दयनीय स्थिति के ऊपर आधारित है. परेशानियों से घिरा नत्था जब सरकारी मुआवजे की चाह में आत्महत्या करने का ऐलान करता है तो ख़बरिया चैनलों को अपनी टीआरपी को बढ़ाने वाला मसाला मिल जाता है, और यहीं से शुरू होता है सिस्टम का नंगा नाच.
7. लिपस्टिक अंडर माय बुर्क़ा (2016)
डायरेक्टर – अलंकृता श्रीवास्तव
हमारे समाज में महिलाओं की आज़ादी को जकड़ने वाली बेड़ियों पर वार करती है ये फ़िल्म. डायरेक्टर ने ये दिखाने की कोशिश की है कि हमारे समाज में औरतों की परेशानियों की कहानी एक जैसी ही है, चाहे वह किसी भी धर्म को मानने वाली हो, चाहे कुवांरी हो, शादीशुदा हो या फिर उम्रदराज – सब अपनी-अपनी लड़ाइयां लड़ रही हैं.
8. ओम शांति ओम (2007)
डायरेक्टर – फराह खान
ओम, जो एक जूनियर फ़िल्म आर्टिस्ट है, एक प्रसिद्ध अभिनेत्री, शांति प्रिया से प्यार करता है, लेकिन उसे एक आग दुर्घटना से बचाने की कोशिश करते हुए मारा जाता है. 30 साल बाद उसका पुनर्जन्म होता है और वो निकल पड़ता है शांति प्रिया की मौत का बदला लेने.
9. मैं हूं न (2004)
डायरेक्टर – फराह खान
मेजर राम को एक जनरल की बेटी को किसी हमले से बचाने के लिए उसके कॉलेज में एक छात्र के रूप में गुप्त रूप से भेजा जाता है. साथ ही मेजर राम को वहां अपने परिवार से रिश्ते भी ठीक करने हैं.
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10. तलाश (2012)
डायरेक्टर – रीमा कागती
ये एक साइक्लोजिकल हॉरर फ़िल्म है. इसकी कहानी एक हाईप्रोफाइल कार एक्सीडेंट और एक इंस्पेक्टर की निजी जिंदगी से जुड़ी है. शहर में एक सुपरस्टार की कार एक्सीडेंट में मौत हो जाती है. इंस्पेक्टर शेखावत जैसे-जैसे केस की तह में पहुंचता है उसे केस में कई पेंच नजर आते हैं और सबकुछ उलझता चला जाता है.
11. गली बॉय (2019)
डायरेक्टर – ज़ोया अख़्तर
ग़रीबी की बेड़ियों में जकड़ा एक लड़का जो बड़ा कलाकार बनना चाहता है, क्या वो अपने सपने पूरे कर पायेगा, क्या वो रैप का बादशाह बन पायेगा? फ़िल्म मुंबई के स्लम से निकले रैपर की कहानी कहती है.
12. ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा (2011)
डायरेक्टर – ज़ोया अख़्तर
इस फ़िल्म में तीन दोस्त एक ट्रिप पर जाते हैं मगर अपनी-अपनी परेशानियों के साथ, और आगे जो ड्रामा होता है वो दिलचस्प है. इस फ़िल्म के जरिये जिंदगी में मौज-मस्ती और जीने के असली फंडे को सबके सामने लाने का प्रयास किया गया है.
13. A Death in the Gunj (2016)
डायरेक्टर – कोंकणा सेन शर्मा
एक परिवार कहीं दूर छुटियां मनाने जाता है मगर जैसा की अक्सर होता है इस परिवार के सभी सदस्यों के रिश्ते आपस में काफ़ी उलझे हुए हैं. और ऐसे में जब कुछ बवाल खड़ा हो जाए तो बनती है ऐसी फ़िल्म.
14. तलवार ((2015)
डायरेक्टर – मेघना गुलजार
2008 में नोएडा में हुए दोहरे हत्याकांड की कहानी कहती तलवार जितनी मनोरंजक है उतनी ही हृदयविदारक भी है. कोंकणा सेन शर्मा, नीरज काबी और दिवंगत इरफान खान की दमदार एक्टिंग की बदौलत इस फ़िल्म को कल्ट क्लासिक माना जाता है.
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15. राज़ी (2018)
डायरेक्टर – मेघना गुलजार
कश्मीर का एक देशभक्त परिवार अपनी नाज़ुक सी बेटी को, पाकिस्तान के एक सेनाधिकारी के परिवार में उनकी बहू बनाकर जासूसी के लिए भेज देता है. फिर आगे क्या वो अपने मिशन में क़ामयाब होती है? यही कहानी है इस फ़िल्म की (जो सच्चाई पर आधारित है).
16. The Namesake (2006)
डायरेक्टर – मीरा नायर
ये फ़िल्म भले ही बॉलीवुड की न हो मगर ये कहानी उन भारतीय प्रवासियों की है जो बेहतर ज़िन्दगी की तलाश में विदेश में बसते हैं. अपने संस्कृति, अपनी पहचान को बचाये रखते हुए दूसरी संस्कृति में रचना-बसना कितना मुश्किल होता है, यही बयां करती है ये फ़िल्म.
इनमें से कौन-कौन सी फ़िल्में आप देख चुके हैं और कौन-सी देखने का प्लान बना रहे हैं, कमेंट सेक्शन में हमें बताइयेगा ज़रूर.