वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा आइंदा भी

मगर वो जो किताबों में मिला करते थे सूखे फूल

और महके हुए रुक्के

किताबें मँगाने, गिरने उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे

उनका क्या होगा

वो शायद अब नही होंगे

(गुलज़ार)

किताबें सिर्फ़ ज्ञानवर्धन का ही काम नहीं करती, बल्कि एक ऐसी दुनिया में ले जाती हैं, जहां आपकी सोच जाने से पहले परमिशन मांगती है. किताबें उस बेधड़क लड़के की तरह हैं, जो कहीं भी घुस जाता है. इन किताबों में आप ऐसे लोगों से मिलते हैं, जिनकी सोच, जिनका नज़रिया आपके व्यक्तित्व को बदलने की कोशिश करता है.

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10,11,12 फरवरी चले 5वे Delhi Literature Festival को कवर करने का मौका ग़ज़बपोस्ट को भी मिला. इन तीन दिनों में हम कई लोगों से मिले, कई ख्यालातों को सराहा और उस कोशिश का हिस्सा बने, जो इस जेनरेशन को किताबों से वापस जोड़ने के लिए की जा रही है.

Delhi Lit Fest का दूसरा दिन था, Schedule के हिसाब से 3-4 बजे के करीब कमला भसीन महिला अधिकारों और Feminism पर बोलने वाले थीं. काफ़ी समय से उनको फॉलो कर रही थी, उनके Ideals बेहद अलग हैं. वो Feminism और पितृसत्ता पर औरतें से ज़्यादा आदमियों को समझाती हैं. 

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‘कच्चे तेल में बड़े नहीं तलते’

नए पैनल के लिए बैठी जागोरी की फाउंडर आभा भईया थी, NSD (नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा) से जुड़ी त्रिपुरारी शर्मा और दिल्ली की मिनिस्ट्री ऑफ़ कल्चर की डायरेक्टर भी थी. महिलाओं और किताब से उनके रिश्ते की बात चल रही थी, तभी गांव की औरतों के सशक्तिकरण से जुड़ी जागोरी की आभा भईया अपना किस्सा शेयर करते हुए बता रही थीं कि, गांव की एक अनपढ़ महिला को भी जिंदगी का तजुर्बा है, उसे सही-गलत का अंतर पता है. उन्होंने किसी से कोई काम जल्दी करने को कहा, तो उसने पलट कर जवाब दिया कि, ‘दीदी, कच्चे तेल में बड़े नहीं तलते… तेल तो गरम होने दो’.

इस पैनल ने भाषा के मौखक रूप को बचाने और उसकी आज के समय में कितनी ज़रूरत है, पर काफ़ी चर्चा की. जैसे गांव की उस महिला ने कहा, उसने वो बात कहीं नहीं सीखी थी, पर वो उसका तजुर्बा बोल रहा था.

डॉ. अशोक चक्रधर, मीठी भाषा वाले तीखे व्यंग्यकार

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इस नाम को किसी परिचय की ज़रूरत नहीं. पद्मश्री से सम्मानित, डॉक्टर अशोक चक्रधर को देखकर, उनकी कवितायें सुन कर बचपन बीता है.

हंसी की फ़ुहार से भरे उनके व्यंग्य के बाण दिल को यूं छू जाते हैं, जैसे मखमली चादर. एक गंभीर सेशन से निकलने के बाद उन्होंने बोलना शुरू ही किया था कि हंसी के ठहाके लगने लगे. चर्चित हो रहे, ‘रेनकोट वाले मुद्दे’ पर वो कहने लगे कि व्यंग्य का जवाब व्यंग्य से ही देना चाहिए. अगर माननीय प्रधानमन्त्री ने व्यंग्य किया कि पूर्व PM रेनकोट पहन कर नहाते हैं, तो कांग्रेस को उन पर गरियाने और वॉक आउट करने के बजाये ये पूछना चाहिए था कि ‘आप दूसरे के बाथरूम में इतना झांकते क्यों हैं’.

कभी वो मूंछों पर कुछ सुनाते, तो लगते ठहाके… वो पूछते और सुनाऊं, तो जनता कहती ‘क्यों नहीं’. बाद में उनसे व्यंग्य के कुछ गुर सीखने की पेशकश की, तो बोले, ‘इसके लिए आपको अशोक चक्रधर की क्लास में आना पड़ेगा’.

बाग़ी तस्लीमा नसरीन

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हमारे लिए दूसरा दिन भी कुछ ऐसी भी मज़ेदार पलों और तजुर्बे से भरा था. तस्लीमा नसरीन के सेशन का भी बेसब्री से वेट किया जा रहा था, लेकिन किसी कारणवश उनसे संपर्क नहीं हो पाया. ‘I Too Had A Love Story’ जैसी बेस्टसेलर लिखने वाले रविंदर सिंह ने किताब लिखने के अपने शुरुआती दिन शेयर किये, कि कैसे उन्होंने Infosys में काम करते वक़्त अपनी बुक का Review लिखने के लिए नारायणमूर्ति को Mail करने की हिम्मत की थी.

देश में लोगों को किताबों से फिर से मिलाने के लिए मुहिम चला रहे Indian Public Library Movement की सहसंस्थापक अपराजिता रे ने कहा कि लोगों का नाता लाइब्रेरी से जोड़ने की उनकी कोशिश में जितने लोग आगे आयें, उतना ही हमारे भविष्य के लिए अच्छा होगा.

3 दिनों तक चले साहित्य और कला के क्षेत्र से जुड़े हर तरह के लोगों के इस जमावड़े की एक कोशिश हर साल रहती है:

कला, साहित्य, लिखने-पढ़ने और लगातार सीखते रहने की आदत को ज़िंदा रखना.