90 के दशक के सीरियल आज भी हमारी यादों में बसे हुए हैं. ये दौर ऐसा था जब सीरियल्स न सिर्फ़ हमारा एंटरटेनमेंट करते थे, बल्कि उनकी कहानियों में वज़न होता था. ‘शक्तिमान’, ‘शांति’, ‘तू-तू मैं-मैं’, ‘हम पांच’, ‘चंद्रकांता’ और ‘चित्रहार’ जैसे तमाम ऐसे धारावाहिक थे, जो आज भी भुलाये नहीं भूलते. इसलिये इनकी जितनी तारीफ़ की जाए कम है.
उस वक़्त के धारावाहिकों में मिर्च-मसाला कम और मनोरंजन ज़्यादा होता था. इसलिये घंटों टीवी से चिपके रहने पर कई बार मम्मी-पापा की डांट भी पड़ जाती थी. चलिये एक बार तस्वीरों के ज़रिये 90’s के कुछ धारावाहिकों पर नज़र डालते हैं:
1. रामायण के लिये भीड़ इक्ठ्ठा होना लाज़मी था.
2. ऑफ़िस-ऑफ़िस देख कर अच्छा लगता था.
3. हम पांच से हर किसी को लगाव था.
4. आहट देख कर डर भी जाते थे.
5. शरारत देख कर हमें भी काफ़ी शरारत सूझती थी.
इसके बाद वक़्त बदलता गया और हम बड़े होते चले गए. इसके साथ ही टीवी पर आने वाले धारावाहिकों का कॉन्सेप्ट भी बदल गया. आज के सीरियल्स में कहानियां कम और हिपोक्रेसी ज़्यादा होती है. सबसे बड़ी बात आज के धारावाहिकों को देख कर लगता है कि उसमें इंसान कम और जानवरों के लिये ज़्यादा जगह है. साथ-साथ जादू-टोना भी.
उदाहरण के लिये कुछ सीरियल्स पेश कर रहे हैं:
1. ‘दिव्य दृष्टि’
2. ‘नागिन’
3. ‘ससुराल सिमर का’
4. ‘मनमोहिनी’
5. ‘डायन’
6. ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’
इन सीरियल्स में आपको हिपोक्रेसी और जादू-टोना के सिवाये कुछ नहीं देखने को मिलेगा. सास-बहू धारावाहिकों में घर के पुरुषों को एकदम वेल्ला, तो महिलाओं को उस हीरो की तरह दिखाया जाता है, जिसके लिये कुछ भी नामुमकिन नहीं है. महिलाओं की शक्ति पर हमें बिलकुल शक़ नहीं है, पर पुरुषों का रोल सीमित कर देना वो ग़लत है.
अरे एक तरफ़ आप मॉर्डन समाज का गुणगान करते हैं और दूसरी ओर लोगों को जादुई शक्ति जैसी चीज़ें दिखा रहे हैं, तो ऐसे में इसे टीवी वालों का दोगलापन न कहें तो क्या कहें. इन धारावाहिकों में इतनी फ़ेकनेस होती है कि देख अच्छे ख़ासे इंसान का सिरदर्द हो जाये.
वहीं अगर 90 के दौर के धारावाहिकों को देखा जाए, तो उन्हें देख कर मन को शांति मिलती थी. कम से एंटरटेनमेंट के नाम पर लोगों को पागल, तो नहीं बनाया जाता था. यार प्लीज़ धारावाहिक बनाओ पर इतने बकवास नहीं कि मंनोरंजन के नाम पर लोगों तक बकवास पहुंचे.
इस बारे में आप क्या कहना है, कमेंट में बताओ.