एक पेंटर जब तस्वीर बनाता है, तो उसकी कलाकारी, कैनवास और उसके सब्जेक्ट को संपूर्ण करने का काम करता है Colour Pallet. इसमें रंग भले ही 7 हों, लेकिन ये 7 रंग मिलकर वो कमाल करते हैं जो सिर्फ़ पेंटर की इमैजिनेशन नहीं कर सकती.

 

संस्कृत शब्द ‘रंज’ का अर्थ होता है रंग, और इसी से बना है शब्द ‘राग’. हिंदुस्तानी क्लासिकल म्यूज़िक जिस स्तंभ पर खड़ा है, उस स्तंभ का नाम है राग. वैसे तो हमें शास्त्रीय संगीत के 7 स्वर पता हैं, पर असल में 12 होते हैं. 7 स्वरों में से 5 स्वर ऐसे हैं जिनको कोमल स्वर में भी गाया जाता है.

सा, रे, (रे कोमल), ग (ग कोमल), म (तीव्र म), प, ध (ध कोमल), नि (नि कोमल), सा

इन 12 स्वरों के मेल से बनते हैं राग. जिस तरह से इन स्वरों को Arrange किया जाता है, वो राग को उसका नाम देता है. ये पढ़कर कर कई लोग उत्साहित हो जाते हैं कि वो भी इन स्वरों को मिलाकर राग बना सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है.

इन 7 (या कहें 12) स्वरों में हर स्वर का एक Character, एक व्यक्तित्व होता है. जब इनका मेल होता है, तब कभी मधुर संगीत निकलता है, तो कभी गंभीर. अगर और सिंपल तरीके से कहें तो ये बिलकुल वैसा है, जैसे पेंटर का Color Pallet, जिसमें 7 रंग होते हैं. जब वो हलके कलर जैसे पीला, नीला और सफ़ेद मिलाता है, तो शांत और सुकून देने वाली चित्रकारी बनती है. जब वो लाल का इस्तेमाल करता है तो कुछ गंभीर बनता है. ऐसे ही राग भी होते हैं. स्वरों की अपनी पहचान होती है, इन्हीं के मेल से राग बनते हैं.

वैसे तो सभी रागों की अपनी एक विशिष्ट पहचान है लेकिन रंगों की तरह इनमें से कुछ सबके पसंदीदा बन जाते हैं. या यूं कहें कुछ राग ऐसे होते हैं जिन पर सबसे ज़्यादा Experiment किये जाते हैं. राग भैरव, राग मल्हार, राग भीम पलासी, राग यमन कुछ ऐसे ही राग हैं, जिन्हें लोग ज़्यादा जानते हैं.

राग की पहचान

 

हर राग की अपनी एक पहचान या कहें प्रॉपर्टी होती है, जैसे कि उसमें इस्तेमाल होने वाले स्वर, उसे गाने का तरीका और उसका चलन.

चलिए आपकी दोस्ती करवाते हैं कुछ रागों से:

राग यमन

 

भारतीय शास्त्रीय संगीत में जिस राग को सबसे पहले सिखाया जाता है, वो है यमन. ये कल्याण ठाट का एक राग है. बॉलीवुड के गानों में इसका इस्तेमाल सबसे ज़्यादा हुआ है. इसकी पहचान होती है तीव्र म, यानि म और प के बीच का स्वर.

इस राग को समझने के लिए उस्ताद राशिद खान और पंडित हरी प्रसाद चौरसिया की आवाज़ में आप ये बंदिश सुन सकते हैं:

 

 

पाकीज़ा फ़िल्म का वो गाना, ‘इन्हीं लोगों ने ले लीना’ भी इसी राग पर है.

https://www.youtube.com/watch?v=EDwvnOkDqSg

 

मेहंदी हसन की वो खूबसूरत ग़ज़ल ‘रंजिशें ही सही’, भी राग यमन पर बनी है.

 

राग भीमपलासी

 

ये राग सबसे खूबसूरत रागों में से एक है और इसकी पहचान है कोमल नि और ग स्वर. ये काफी ठाट का राग है और इसे दिन के तीसरे पहर यानि Late Afternoon में गाया जाता है. इसकी बंदिश बहुत खूबसूरत हैं, जिनमें से एक है:

जा जा रे अपने मंदारवा

 

अश्विनी भिड़े देशपाण्डेय की आवाज़ में आप ये सुन सकते हैं:

 

खिलते हैं गुल यहां, ये गाना इसी राग पर बना है.

 

वैसे तो आपको भीमपलासी पर कई गाने और बंदिशें मिल जाएंगी, लेकिन जो बंदिशें भक्ति पर बनी हैं, वो सबसे खूबसूरत हैं.

राग भैरव

 

सुबह गए जाने वाले रागों में सबसे महत्वपूर्ण राग है राग भैरव. इसे सीरियस राग भी कहते हैं क्योंकि इसमें जो भाव होता है, वो बेहद गम्भीर और सुबह के वातावरण के हिसाब से होता है. ये राग सीखना और इसे गाना दोनों ही बहुत मुश्किल है. बहुत कम लोग राग भैरव को प्रेजेंट पर पाते हैं. भैरव में कोमल रे (ऋषभ) और ध (धैवत) लगते हैं, जिस वजह से इसको गम्भीरता मिलती है. भैरव में भक्ति आ जाये तो वो अहीर भैरव कहा जाता है.

राग भैरव पर पंडित जसराज की आवाज़ में ये बंदिश ज़रूर सुनें:

 

जागो मोहन प्यारे, ये गाना भी राग भैरव पर आधारित है.

 

भारतीय शास्त्रीय संगीत का हर राग अपने आप में सम्पूर्ण है और इतना व्यापक कि उसे जितना समझो, कुछ नया पता चलेगा. फिलहाल ये तीन राग और इनसे जुड़ी बंदिशें आपसे साझा की हैं, अगर आपको ये संस्करण पसंद आया हो, तो आगे बाकी और रागों के बारे में भी बात करेंगे.

भारतीय शास्त्रीय संगीत पर कुछ लिखने का ये पहला Attempt है, अपनी राय, कमेंट्स ज़रूर शेयर करें.