मृणाल सेन ऐसे फ़िल्म-मेकर थे जिन्होंने अपनी फ़िल्मों के दम पर पूरी दुनिया में शोहरत हासिल की. शायद ही कोई ऐसा कोई फ़िल्म फ़ेस्टिवल हो जिसने मृणाल सेन जी को सम्मानित न किया हो. वो ऐसी फ़िल्में बनाते थे जो यथार्थवादी होती थीं. ये सामाजिक मुद्दों के साथ ही उसका राजनीतिक नज़रिया भी पेश करती थीं.

तभी तो मृणाल सेन की गिनती सत्यजीत रे और ऋत्विक घटक जैसे महान बंगाली फ़िल्ममेकर्स के साथ की जाती है. उन्हें पदम भूषण और दादा साहब फाल्के जैसे अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया था. 

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मृणाल सेन का जन्म अविभाजित बंगाल के फरीदपुर(बांग्लादेश) में हुआ था. वहां से वो कोलकाता चले आए जहां से उन्होंने अपनी ग्रेजुएशन की. इसके बाद उन्होंने एक फ़िल्म स्टूडियो में ऑडियो टेक्निशियन के रूप में काम करना शुरू कर दिया. यहीं से उनके फ़िल्मी करियर की शुरूआत हुई. मृणाल सेन ने काम के दौरान कई बुक्स पढ़ीं जो फ़िल्म मेकिंग के बारे में थीं.

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इससे उनके अंदर भी फ़िल्में बनाने का सपना पनपने लगा. 1955 में उन्होंने अपनी पहली फ़िल्म ‘रातभोर’ बनाई. ये कुछ ख़ास नहीं चली जिससे उनका मन टूट गया. कुछ समय के ब्रेक के बाद उन्होंने फ़िल्म ‘नील आकाशेर नीचे’ बनाई. इस फ़िल्म ने उन्हें बतौर निर्देशक फ़िल्म इंडस्ट्री में नई पहचान दी. उनकी तीसरी फ़िल्म ‘बाइशे श्रावण’ ने मृणाल सेन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध कर दिया. 

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उन्होंने बंग्ला भाषा में ही नहीं, बल्कि हिंदी, उड़िया और तेलगु भाषा में भी कई फ़िल्में बनाई थीं. उन्होंने अपने करियर में क़रीब 20 नेशनल अवॉर्ड भी हासिल किए थे. यही नहीं साल 2000 में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने अपने देश के सबसे बड़े सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ़ फ़्रेंडशिप’ से मृणाल सेन को सम्मानित किया था. ये सम्मान पाने वाले वो अकेले भारतीय फ़िल्म मेकर हैं. 

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उनकी कुछ सुपरहिट फ़िल्में हैं ‘भुवन शोम’, ‘मृगया’,’आकाश कुसुम’, बाइशे श्रावण’, नील आकाशेर नीचे’, ‘बैशे श्रावणा’, ‘अकालेर संधाने’, ‘खंडहर’, ‘खारिज’, ‘ओका उरी कथा’,’कोरस’, ‘जेनेसिस’, ‘एक दिन अचानक’. एक बार उनकी एक फ़िल्म पर सरकार ने बैन भी लगा दिया था. इस फ़िल्म नाम था ‘नील आकाशेर नीचे’. 

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1958 में रिलीज़ हुई इस फ़िल्म की कहानी एक चीनी फेरीवाले और एक बैरिस्टर की पत्नी की स्टोरी पर आधारित थी. ये फ़िल्म दर्शकों को ख़ूब पसंद आई, लेकिन जब भारत और चीन के बीच सरहद पर तनाव बढ़ने लगा तो इसे बैन कर दिया गया था. दो महीने बाद इस पर लगा बैन हटा दिया गया था.

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मृणाल सेन 1998-2003 तक राज्यसभा के सांसद भी रहे. 2005 में उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने दादा साहब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित किया था. इसके बाद जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि वो कैसा महसूस कर रहे हैं, तो उन्होंने कहा था कि- ‘आजकल जिस तरह से लोग मुझसे मिल रहे हैं और मेरा सम्मान कर रहे हैं, उसे देख कर मेरी पत्नी को ज़रूर इस बात का एहसास हो गया होगा कि उसने किसी काबिल इंसान से शादी की है.’

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मृणाल सेन को लोग प्यार से मृणाल दा कहकर बुलाते थे. उनकी फ़िल्में आज भी बड़े-बड़े फ़िल्म इंस्टीट्यूट दिखाई जाती हैं ताकि स्टूडेंट्स उनसे फ़िल्म मेकिंग के गुर सीख सकें.
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