ये महलों, ये तख़्तों, ये ताजों की दुनिया,
साहिर लुधियानवी द्वारा लिखे इस गीत को फ़िल्माया गया था एक्टर गुरु दत्त पर. हिंदी सिनेमा की क्लासिक फ़िल्म प्यासा के इस गीत को आज भी लोग अपने ग़मों को भुलाने के लिए गुनगुनाया करते हैं. इस फ़िल्म के गाने ही नहीं, कहानी भी कालजयी थी. इसलिए आज भी इस मूवी की गिनती हिंदी सिनेमा की क्लासिक फ़िल्मों में की जाती है.
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प्यासा को बनाया था बॉलीवुड के दिग्गज डाययेक्टर्स की लिस्ट में शुमार गुरु दत्त ने. वो ऐसे डायरेक्टर हैं जिनकी फ़िल्में आज भी इस फ़ील्ड में काम करने की इच्छा रखने वालों को प्रेरणा देती हैं. बिमल रॉय के बाद जिस डायरेक्टर की फ़िल्में उन्हें सब्जेक्ट(टेक्निकल) के तौर पर पढ़ाई जाती हैं उसमें इस फ़िल्म का नाम भी शामिल है. 1957 में रिलीज़ हुई इस क्लासिक फ़िल्म से जुड़े कुछ दिलचस्प और अनोखे क़िस्से हम आपके लिए लेकर आए हैं. इनके बारे में जानकर आपको भी इस फ़िल्म को देखने की ललक जाग उठेगी.
1. दिलीप कुमार थे पहली पसंद
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इस फ़िल्म के लिए गुरु दत्त की पहली पसंद दिलीप कुमार थे, लेकिन किन्हीं अज्ञात कारणों की वजह से वो इसमें काम न कर सके. इससे गुरु दत्त निराश हो गए थे क्योंकि इसके लीड कैरेक्टर को वो हमेशा दिलीप कुमार के रूप में ही देखा करते थे. बाद में उन्होंने ख़ुद इस किरदार को निभाने का फ़ैसला किया था.
2. कशमकश था नाम
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गुरु दत्त ने जब पहली बार इस फ़िल्म का ड्राफ़्ट लिखा था तब उन्होंने इसका नाम ‘कशमकश’ रखा था. मज़े की बात ये है कि इस फ़िल्म में इस पर एक गीत भी था, जिसके बोल थे, ‘तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम’.
3. कवि नहीं चित्रकार था नायक
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इस फ़िल्म की कहानी गुरु दत्त ने अपने मुफ़लिसी के दिनों में लिखी थी. तब उन्होंने एक चित्रकार के रूप में अपने हीरो को इमैजिन किया था. मगर जब इसकी स्क्रिप्ट लिखने की बारी आई तो अबरार अल्वी ने उसे चित्रकार की जगह कवि-शायर का रूप दे दिया था.
4. फ़िल्म के लिए पहली बार कोठे पर गए थे गुरु दत्त
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गुरु दत्त इस फ़िल्म में अपने किरदार को पर्दे पर हमेशा-हमेशा के लिए अमर कर देना चाहते थे और ऐसा हुआ भी. मगर इसके लिए उन्होंने कई प्रयोग भी किए थे. इस फ़िल्म के लिए ही वो पहली बार किसी कोठे पर गए थे. यहीं से उन्हें फ़िल्म के गाने ‘जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहां हैं’ के लिए सीन का आइडिया मिला था.
5. प्यासा और जॉनी वॉकर
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अपने किरदार विजय के दोस्त के लिए गुरु दत्त ने जॉनी वॉकर को कास्ट किया था. लेकिन बाद में उन्होंने ये रोल श्याम कपूर को दे दिया था. उन्हें लगा था कि एक हास्य कलाकार को लोग विलेन के रूप में देख नहीं पाएंगे.
इस फ़िल्म से जुड़े ये सभी क़िस्से लेखक अबरार अलवी की बुक ‘टेन ईयर्स विद गुरुदत्त’ में विस्तार से बताए गए हैं.