ले जाएंगे ले जाएंगे दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’,
इन सभी सुपरहिट गानों में एक बात समान(कॉमन) है. वो है इनके संगीत देने वाले रवींद्र जैन जी. वही रवींद्र जैन जी, जिन्हें ईश्वर ने आंखें तो नहीं दी लेकिन मन की आवाज़ इतनी बुलंद कर दी कि उन्हीं के भजनों और कहानियों को अपनी सुरीली आवाज़ और संगीत के ज़रिये अमर कर दिया.
रामानंद सागर की रामायण इसका सटीक उदाहरण है जिसे बिना रवींद्र जैन के संगीत और आवाज़ के आज कोई शायद पहचानता या पसंद ही नहीं करता. आधुनिक संगीत की दुनिया के सूरदास कहलाए जाते थे रवींद्र जैन जी. उनके गीत-संगीत के बारे में तो आप जानते ही होंगे. आज हम आपको उनके जीवन से जुड़े कुछ यादगार क़िस्से लेकर आएं हैं.
1. भीख
जैसा कि सभी को पता है रवींद्र जैन जी को बचपन से ही गाने का शौक़ था. वो अकसर अपने दोस्तों के साथ गाते-बजाते थे. एक दिन वो ऐसे ही अपनी मंडली के साथ अलीगढ़ रेलवे स्टेशन पर पहुंच गए. यहां उन्होंने गाना शुरू कर दिया. उनकी मधुर आवाज़ सुन लोगों ने उन्हें पैसा देना शुरू कर दिया. वो ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर गए उन्होंने सोचा कि उन्हें इनाम मिला है. ये बात पिताजी(इंद्रमणी जैन) को बताई, तो पिताजी हो गए गुस्सा. उन्होंने तुरंत भीख में मिले इन पैसों को उन्हीं लोगों को लौटाने को कहा. अब रेलवे स्टेशन पर मिलने वाले लोग भला दोबारा कैसे मिलते. सो सभी बच्चों ने सोचा क्यों न इससे पार्टी की जाए. हुआ भी ऐसा सब बच्चों ने रवींद्र जी के साथ मिलकर उन पैसों से चाट-पकौड़ियां खाई थी.
2. भूख
रवींद्र जैन जी ने राज कपूर जी की फ़िल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ में संगीत दिया था. तब से दोनों की अच्छी दोस्ती हो गई थी. एक बार राज कपूर ने उन्हें भोजन पर अपने पूना वाले फ़ार्म हाउस पर बुलाया. रवींद्र जी पहुंचे तो देखा की राज कपूर ख़ुद ही खाना बना रहे हैं. खाने में बैंगन का भर्ता बन रहा था, प्याज़-लहसुन डाल कर. जिसे जैन समुदाय के लोग छूते ही नहीं. अब राज कपूर ने उन्हें खाने को कहा लेकिन वो खा नहीं सकते. इस दुविधा से उन्हें निकाला एक्टर ओमप्रकाश जी ने, जो वहीं मौजूद थे. डाइनिंग टेबल से जैसी ही राज कपूर कुछ लेने को उठे, रवींद्र जी ने तुरंत अपनी थाली से बैंगन का भर्ता ओमप्रकाश की थाली में रख दिया.
3. भजन
जब रवींद्र जी बंगाल में लोगों को संगीत की शिक्षा देते थे तो उनकी मधुर आवाज़ के चर्चे हो गए थे. कोलकाता में उनके भजन काफ़ी मशहूर होने लगे. तो ऐसे ही एक शख़्स ने उन्हें भोजन पर आने का निमंत्रण दिया. रवींद्र जी गए और ख़ूब भजन गाए. अब उन्हें भूख सताने लगी. जब किसी ने नहीं पूछा तो उन्होंने ख़ुद ही कह दिया कि भई भोजन कब मिलेगा. तब उन्हें पता चला कि निमंत्रण तो ‘भजन’ का था जिसे बंगाली भाषा के चलते ‘भोजन(भोजोन)’ समझ लिया गया था.