रामायण धारावाहिक बनने की दिलचस्प कहानी: बात साल 1976 की है. बॉलीवुड के मशहूर फ़िल्म निर्माता-निर्देशक रामानंद सागर (Ramanand Sagar) अपनी फ़िल्म ‘चरस’ की शूटिंग के लिए स्विट्ज़रलैंड गए हुए थे. रामानंद सागर जिस होटल में ठहरे थे उसमें सभी तरह की सुविधाएं मौजूद थीं. इस दौरान उनकी नज़र टेबल पर पड़े लकड़ी के एक बॉक्स पर पड़ी. सागर साहब बड़े कौतुहल से इसे देखने लगे. वेटर को बुलाकर बॉक्स के बारे में पूछा तो उसने झट से शटर हटाकर उसमें रखा टीवी ऑन कर दिया. रामानंद सागर ये देख चकित रह गए क्योंकि उन्होंने जीवन मे पहली बार रंगीन टीवी देखा था. 

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रामानंद सागर

रामानंद सागर (Ramanand Sagar) ने रंगीन टीवी देखने के 5 मिनट बाद ही फ़ैसला ले लिया कि अब वो हमेशा के लिए सिनेमा छोड़कर टीवी के माध्यम से भगवान राम, कृष्ण और मां दुर्गा की कहानियों को जन-जन तक पहुंचाएंगे. भारत में वैसे तो टीवी की शुरुआत सन 1959 में ही हो चुकी थी, लेकिन तब ये केवल उच्च वर्ग के लोगों के पास ही हुआ करता था. सन 1975 में दूरदर्शन केवल दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता तक ही सीमित था, लेकिन 1982 के एशियाड खेलों का प्रसारण देशभर में होने लगा था. 

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सन 1984 में भारत के पहले टीवी शो ‘हम लोग’ की शुरुआत के बाद देश के कई घरों तक टीवी पहुंच चुका था. रामानंद सागर भी रामायण (Ramayan) धारावाहिक की तैयारियां में लग चुके थे. इस दौरान रामानंद सागर के साथी उन्हें टीवी में प्रवेश करना आत्महत्या करने जैसा बता रहे थे. लेकिन उन्होंने किसी की नहीं सुनी और अपने काम में लगे रहे. ‘रामायण’ धारावाहिक की शूटिंग शुरू करने से पहले उन्होंने अपने कुछ जानकार निर्माताओं से इसमें पैसा लगाने के लिए बातचीत की तो कोई पैसा लगाने को तैयार नहीं हुआ. 

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सन 1985 में रामानंद सागर टीवी पर अपना पहला धारावाहिक ‘विक्रम और बेताल’ लेकर आये. ये सीरियल बेहद सफ़ल रहा. हर आयु वर्ग के दर्शकों ने इसे सराहा. इस बीच रामानंद सागर अपने ड्रीम प्रोजेक्ट रामायण (Ramayan) सीरियल को टेलीकास्ट कराने को लेकर तैयार थे. दूरदर्शन (Doordarshan) ने ‘विक्रम और बेताल’ को तो आसानी से अनुमति दे दी, लेकिन ‘रामायण’ को लेकर चीज़ें बेहद संवेदनशील हो गयीं. इस दौरान न तो दूरदर्शन को, न ही तत्कालीन कांग्रेस सरकार को इसका कॉन्सेप्ट पसंद आया. बस यहीं से रामानंद सागर की एक कठिन परीक्षा शुरू हो गयी. 

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दरअसल, रामायण (Ramayan) के 3 पायलट एपिसोड बनने के बावजूद दूरदर्शन (Doordarshan) पर इसका प्रसारण शुरू होने में क़रीब 2 साल लग गए थे. इस दौरान रामानंद सागर के दूरदर्शन व सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में चक्कर लगाते-लगाते जूते तक घिस गए थे. रामानंद सागर को दूरदर्शन पर ‘रामायण’ के प्रसारण की अनुमति सन 1985 में ही मिल गई थी, लेकिन इसके प्रसारण को लेकर दूरदर्शन अधिकारियों से लेकर मंत्रालय स्तर तक, सभी इतने भ्रमित थे कि उन्हें कुछ समझ ही नहीं आ रहा था. इसलिए जब सागर ने ‘रामायण’ का पहला पायलट बनाकर दूरदर्शन को दिया तो दूरदर्शन ने उसे रिजेक्ट कर दिया था. 

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सीता माता के कट स्लीव्स को लेकर आपत्ति

इस दौरान दूरदर्शन को ‘रामायण’ के पायलट एपिसोड में कई आपत्तियां नज़र आयीं, जिनमें एक सीता (Sita) की भूमिका कर रही अभिनेत्री दीपिका का ‘कट स्लीव्स’ में दिखाया जाना भी था. दूरदर्शन को लगा ये देख लोग कहीं हंगामा न कर दें. सागर ने फिर से पायलट एपिसोड बनाकर दिया, जिसमें सीता की वेशभूषा में कुछ परिवर्तन किया गया, लेकिन कुछ और आपत्तियां दर्ज करते हुए दूरदर्शन ने दूसरा पायलट एपिसोड भी रिजेक्ट कर दिया. इसके बाद जब रामानंद सागर ने तीसरा पायलट एपिसोड दूरदर्शन में जमा कराया तो दूरदर्शन इसे भी रिजेक्ट कर दिया. 

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रामानंद सागर (Ramanand Sagar) इससे बेहद परेशान हो उठे थे. क्योंकि उन्होंने ‘रामायण’ धारावाहिक की शूटिंग का सेट गुजरात-महाराष्ट्र की सीमा पर उमरगाम में लगाया था. इसलिए समानन्द सागर को नए पायलट एपिसोड की शूटिंग के लिए फिर से उमरगाम जाना पड़ता था. इस दौरान कलाकारों और पूरी यूनिट को वहां ले जाने में समय और पैसा बहुत खर्च हो जाता था. रामानंद सागर का तब फ़िल्म इंडस्ट्री में बड़ा रुतबा था. इसलिए दूरदर्शन में इस तरह की स्थितियां देख उनका विचलित होना स्वाभाविक था.

रामायण (Ramayan)

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रामानंद सागर को ‘रामायण’ के प्रसारण को लेकर कड़ा संघर्ष करना पड़ा. इसके लिए उन्होंने दिल्ली के कई चक्कर लगाए, लेकिन दूरदर्शन के सरकारी घाघपन की वजह से उन्हें कोई आस नज़र नहीं आ रही थी. इस दौरान रामानंद सागर को दूरदर्शन के सरकारी अधिकारियों की एक हां के लिए मंडी हाउस में घंटों खड़े रहकर अपनी बारी का इंतज़ार तक करना पड़ता था. वो इसी उम्मीद में कभी अशोका होटल में रुक जाते कि कभी तो बुलावा आएगा. कई बार तो ‘रामायण’ के संवादों को लेकर दूरदर्शन के अधिकारियों ने उन्हें अपमानित तक किया. रामानंद सागर के बेटे प्रेम सागर ने इन बातों का ज़िक्र अपनी किताब An Epic Life: Ramanand Sagar From Barsaat to Ramayan में भी किया है.

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आख़िरकार कई महीनों की कड़ी मेहनत के बाद रामानंद सागर को एक आस नज़र आई. दूरदर्शन एक हद तक ‘रामायण’ के प्रसारण को लेकर सहमत हो गया था, लेकिन तत्कालीन कांग्रेस सरकार इस पर आनाकानी कर रही थी. इस बीच दूरदर्शन के अधिकारियों ने बड़ी मशक्क़त के बाद रामानंद सागर को स्लॉट देने के लिए सरकार से अनुमति भी ले ली. लेकिन दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में ‘रामायण’ धारावाहिक को लेकर अंतर्विरोध देखने को मिल रहा था. इस दौरान सूचना एवं प्रसारण मंत्री बी.एन. गाडगिल को डर था कि कहीं इस धारावाहिक की वजह से देश में धार्मिक मतभेद न हो जाएं. हालांकि, राजीव गांधी के हस्तक्षेप से विरोध शांत हो गया.

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सन 1986 में अजित कुमार पांजा ने भारत के नए ‘सूचना व प्रसारण मंत्री’ का पदभार संभाला. अजित कुमार पांजा की कोशिश से दूरदर्शन पर ‘रामायण’ धारावाहिक को एंट्री मिल गई. आख़िरकार 25 जनवरी, 1987 को दूरदर्शन पर इस महाकाव्य का पहला एपिसोड शुरू हो गया. ये ‘दूरदर्शन’ के सुनहरे सफ़र का महत्वपूर्ण बिंदु था. भगवान राम की कृपा से रामायण’ धारावाहिक ने दूरदर्शन के दिन बदल दिए. इस दौरान इस धारावाहिक को लेकर लोग इतने उत्साहित रहते थे कि रविवार की सुबह देश की सड़कें वीरान हो जाती थीं. तब इसके हर एपिसोड पर 1 लाख का खर्च आता था, जो उस समय दूरदर्शन के लिए बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी.

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रामायण (Ramayan) धारावाहिकने 82 प्रतिशत व्यूअरशिप के साथ रिकॉर्ड बनाया था. इस दौरान भगवान राम बने अरुण गोविल (Arun Govil) और सीता माता बनी दीपिका चिखलिया (Deepika Chikhalia) की प्रसिद्धि फ़िल्मी कलाकारों के बराबर हो गई थी.