चार दशक से भी लम्बे फ़िल्मी करियर में 40 बार फ़िल्म फ़ेयर के लिए बेस्ट गीतकार का नॉमिनेशन हासिल किया. 4 हज़ार से अधिक गाने लिखे और सरल भाषा में भी गंभीर बात कह जाते थे. बात हो रही है लिरिक्स राइटिंग की दुनिया के दिग्गज आनंद बख्शी साहब की.

उनके द्वारा लिखे गए ‘बड़ा नटखट है किशन कन्हैया’, ‘परदेसियों से ना अखिंयां’, ‘कुछ तो लोग कहेंगे’, ‘आदमी मुसाफिर है’, ‘चिंगारी कोई भड़के’, ‘दम मारो दम’, ‘तुझे देखा तो ये जाना सनम’ जैसे गीत सैंकड़ों गीत आज भी हर ज़ुबां की पसंद बने हुए हैं.

cinestaan

आनंद बख्शी यूं तो सिंगर बनने के लिए मुंबई आए थे और उनका ये सपना पूरा भी हुआ, मगर उन्हें पूरी दुनिया आज भी एक बेहतरीन गीतकार के रूप में याद करती है. ऐसा गीतकार जिसके गाने सरल होते हुए भी बहुत गहरी बात कह जाते हैं. इन गानों में प्रकृति से प्रेम है, तो मज़दूरों के जज़्बात भी.

twitter

फ़िल्मी दुनिया में कदम रखने से पहले आनंद बख्शी भारतीय सेना में काम कर चुके थे. मगर दिल में अभी भी फ़िल्मों में काम करने की चाह थी. इसलिए नौकरी छोड़ इंडस्ट्री में हाथ आज़माने लगे. उन्हें पहला मौक़ा दिया था भगवान दादा ने. फ़िल्म ‘भला आदमी’ के लिए उन्होंने 4 गीत लिखे थे. फ़िल्म तो नहीं चली मगर बतौर गीतकार आनंद का करियर चल पड़ा.

patrika

हुआ यूं कि इस फ़िल्म का गीतकार कहीं चला गया था, इससे भगवान दादा परेशान थे. इत्तेफ़ाक से आनंद बख्शी भी काम की तलाश में वहां पहुंचे थे. उन्होंने आनंद से पूछा क्या करते हो. तब आनंद ने कहा कि वो गीतकार हैं और काम की तलाश है. भगवान दादा ने कहा गीत लिख कर दिखाओ.

तब आनंद बख्शी ने वहीं बैठे-बैठे एक नहीं, चार गीत लिख डाले. करियर तो चल पड़ा था मगर उन्हें पहचान मिली फ़िल्म ‘जब जब फूल खिले’ के गाने ‘परदेसियों से न अंखियां मिलाना’ से. इसके बाद उन्होंने ‘आराधना’, ‘कटी पतंग’, ‘शोले’, ‘अमर अकबर एंथनी’, ‘कर्मा’, ‘खलनायक’, ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’, ‘ताल’, ‘गदर’ जैसी कई सुपरहिट फ़िल्मों के गाने लिखे.

pinterest

एक इंटरव्यू में उनकी तारीफ़ करते हुए फ़ेमस म्यूज़िक डायरेक्टर लक्ष्मीकांत-प्यारे लाल ने कहा था, जहां दूसरे गीतकार एक गाना लिखने में 7-8 दिन लगाते थे वहीं आनंद बख्शी 8 मिनट में ही गाना लिख देते थे. वो जीवन की सरल और छोटी-छोटी चीज़ों से प्रेरित होकर बैठे-बैठे गीत की रचना कर देते थे. आनंद बख्शी साहब का सिंगर बनने का सपना भी पूरा हुआ था. 

cinestaan

उन्होंने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जी के साथ फ़िल्म ‘मोम की गुड़िया’ के लिए गाने गाए थे. उनका पहला गीत था ‘मैं ढूंढ रहा था सपनों में’. इसके बाद उन्होंने की फ़िल्मों में गीत गाए पर उनका सिंगिंग करियर इतना ख़ास नहीं रहा. उनके बारे में कहा जाता है कि आनंद बख्शी ने हज़ारों गीत लिखे मगर कभी अपनी डेडलाइन मिस नहीं की.

Entertainment के और आर्टिकल पढ़ने के लिये ScoopWhoop Hindi पर क्लिक करें.