भारत रत्न भूपेन हज़ारिका एक महान गायक, संगीतकार, फ़िल्म मेकर, लेखक और डायरेक्टर थे. उन्होंने दशकों तक अपनी मखमली आवाज़ से लोगों के दिलों पर राज किया. हज़ारिका जी ने असमिया, बंगाली और हिंदी भाषा में सैंकड़ों गीत गाए हैं.
असम और बंगाल के लोकगीत-संस्कृति को देश और विश्व पटल पर ख़्याति दिलाने का श्रेय उन्हीं को जाता है. असम के लोगों के बीच वो भूपेन दा के रूप में फ़ेमस हैं. उन्हें असमिया संस्कृति का दूत भी कहा जाता है.
भूपेन हज़ारिका जी के द्वारा गाए गए गीत ‘दिल हूम हूम करे’ और ‘ओ गंगा तू बहती है क्यों’ आज भी लोग सुनते हैं. उनके गीतों में कुछ न कुछ संदेश होता था. वो अपनी गायकी के ज़रिये लोगों को शांति का संदेश देते थे. आज हम आपके लिए भूपेन हज़ारिका और दक्षिण अफ़्रीका के गांधी नेल्सन मंडेला से जुड़ा एक दिलचस्प क़िस्सा लेकर आए हैं.
बात उन दिनों की है जब दक्षिण अफ़्रीका में जश्न का माहौल था. मौक़ा था नोबल पुरस्कार से सम्मानित नेल्सन मंडेला के बतौर राष्ट्रपति शपथ लेने का. 10 मई 1994 को हुए इस समारोह में किन्हीं कारणों से इस समारोह में न भारत के राष्ट्रपति और न ही पीएम पहुंच पाए.
इस बात का उन्हें बहुत दुख था. इसके कुछ समय बाद जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल दक्षिण अफ़्रीका के दौरे पर पहुंचे थे. यहां एक समारोह में नेल्सन मंडेला ने उनसे कहा कि उनके दिल में एक मलाल है. वो ये कि उनके शपथ समारोह में भारत के पीएम और राष्ट्रपति में से कोई शामिल नहीं हुआ था.
ये कहते हुए उनका चेहरा उतर गया और पूरे कमरे में उदासी का माहौल छा गया. तब एक भारतीय प्रतिनिधि ने सिचुएशन को संभालते हुए उनसे पूछा कि आपने भारत की इतनी यात्राएं की उनमें से सबसे यादगार यात्रा कौन सी रही. इस पर उन्होंने बताया कि उनकी कोलकाता की यात्रा सबसे यादगार है. उस मौक़े पर एक गायक ने बड़ा ख़ूबसूरत गीत गाया था और उसकी धुन ऐसी थी कि वो भी उठकर थिरकने लगे थे.
तब उस प्रतिनिधि ने बताया कि वो बात कर रहे हैं भूपेन हाज़ारिका की जो देश के महान गायकों में से एक हैं. इसके बाद जो माहौल संजीदा सा हो गया था वो हल्का हो गया. कुछ ऐसे संगीतकार थे हज़ारिका जी. वो धुन ही ऐसी बनाते थे कि भाषा को न समझने वाला भी उसकी लय पर थिरकने लगता था. भूपेन हज़ारिका और नेल्सन मंडेला जी से जुड़ा ये क़िस्सा आप यहां सुन सकते हैं.
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