सेक्सी लिबास में थिरकती अदाकारा और उसके आगे-पीछे दौड़ते अधेड़ और युवा मर्द. ये लोग यूं ताक में रहते हैं मानो सेट पर सीधा टेस्टोस्टेरोन के इंजेक्शन लगाकर पहुंचे हों. इस दौरान जो डांस स्टेप्स होते हैं वो अगले कुछ महीनों के लिए लोगों के लिए शादी में नाचने के लिए स्टेप्स के तौर पर तैयार हो जाते हैं. लिरिक्स में भौंडापन लिए करीना कपूर खान तंदूरी मुर्गी बनने को तैयार रहती हैं, मुन्नी बदनाम हो जाती है, शीला जवान हो जाती है.

ऊपर दिया गया उदाहरण किसी भी बॉलीवुड आइटम सॉन्ग का आम नज़ारा है. महिला प्रधान फ़िल्मों की पैरवी करने वाले बड़े-बड़े सितारे भी अक्सर इन फ़िल्मों का हिस्सा होते हैं. आम जन के लिए एंटरटेनमेंट बोलकर इन्हें प्रचारित किया जाता है और बड़ी ही सफ़ाई से महिलाओं को किसी वस्तु या चीज़ में समेट दिया जाता है. भारत में यूं भी कल्चर और परंपरा की जुगाली के बीच औरतें पिसती रहती हैं, ऐसे में ये गाने और वीडियोज़ आग में घी का ही काम करते हैं.

भारत के टॉप फ़िल्मकारों में शुमार करण जौहर भी ये ‘गलती’ कर चुके हैं. कम से कम वो तो इसे अपनी गलती ही मानते हैं. करण ने हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान कहा –

‘जैसे ही आप एक महिला को केंद्र में रखते हैं और उसके आसपास हवस भरी निगाहों वाले सैंकड़ों लोग मौजूद रहते हैं तो ये कहीं न कहीं गलत उदाहरण पेश करता है. एक फ़िल्मकार के तौर पर मैंने ये गलतियां की हैं और अब से ऐसा मैं कभी नहीं करूंगा.’

उन्होंने आगे कहा -‘जब आप फ़िल्म में किसी शख़्स को एक महिला का पीछा करते हुए दिखाते हैं तो ये सब देखने में बेहद पैशनेट लव का हिस्सा लग सकता है लेकिन ये कहीं न कहीं लोगों को पीछा करने जैसे कामों के लिए भी प्रेरित करता है. जब आप फ़िल्म में दिखाते हैं कि एक व्यक्ति किसी महिला को गाली दे रहा है तो भले ही लगे कि वो गुस्सा हो रहा है लेकिन ये सही नहीं है. स्क्रीन पर जो आप दिखाते हैं, वो कहीं न कहीं लोगों के बीच उदाहरण पेश करता है. कई बार जो आप लिख और सोच रहे होते हैं, उसके बारे में आपको पता नहीं होता कि ये लोगों को किस हद तक प्रभावित कर सकता है, लेकिन सच ये है कि फ़िल्मों से बड़े स्तर पर लोग प्रभावित होते हैं, ऐसे में एक फ़िल्मकार के तौर पर संवेदनशीलता बरतना हमारी ज़िम्मेदारी बनती है.’

करण जौहर की पहली फ़िल्म ‘कुछ कुछ होता है’ ब्लॉकबस्टर साबित हुई और करण का फ़िल्मी सफ़र चल निकला था. हालांकि आज वे खुद इस फ़िल्म को वाहियात बताते हैं. वो खुद कहते हैं कि आज के दौर में वे इस तरह की फ़िल्म अब लिख ही नहीं सकते. फ़िल्म में शाहरूख एक हॉट लड़की के लिए अपनी बेस्ट फ़्रेंड को छोड़ देते हैं और कुछ सालों बाद जब उसकी बेस्ट फ़्रेंड खूबसूरत हो जाती है, तो वो उसे दिल दे बैठता है. वो खुद मानते हैं कि ये कई स्तर पर superficial है. लेकिन अच्छी बात ये है कि एक निर्देशक के तौर पर वे इवॉल्व हुए हैं, ज़रूरत पड़ने पर खुद को ढालने की क्षमता रखते हैं, ऐसे में उनका ये फ़ैसला वाकई काबिलेतारीफ़ है और चूंकि वे एक प्रभावशाली फ़िल्मकार हैं तो ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि उनके फ़ैसले को बाकी निर्माता निर्देशक भी फ़ॉलो करने की कोशिश करेंगे.