Dubbing Artist Sachin Gole: पिछले कुछ सालों से नॉर्थ इंडिया में साउथ इंडियन फ़िल्मों को बेहद पसंद किया जा रहा है. ‘बाहुबली’ से लेकर ‘KGF’ तक ने नॉर्थ इंडिया में जिस तरह की कामयाबी हासिल की है, उससे बॉलीवुड स्टार्स की नींदें उड़ी पड़ी हैं. ‘प्रभास’ हो या ‘यश’ साउथ के ये स्टार्स आज नेशनल स्टार्स बन चुके हैं. सिर्फ़ साउथ के स्टार्स ही नहीं ‘बाहुबली’ फ़िल्म में शरद केलकर और ‘पुष्पा’ फ़िल्म में श्रेयस तलपड़े अपनी आवाज़ देकर रातों-रात स्टार बन गये थे. बाहुबली से जो कामयाबी प्रभास को मिली थी, वही कामयाबी इसके हिंदी डबिंग से शरद केलकर को भी मिली थी. ठीक इसी तरह ‘पुष्पा’ ने जो कामयाबी अल्लू अर्जुन को दिलाई, ठीक उसी तरह की कामयाबी इसके हिंदी डबिंग से श्रेयस तलपड़े को भी मिली है. अब KGF के हिंदी डबिंग में अपनी आवाज़ देकर सचिन गोले का नाम भी इस लिस्ट में शामिल हो गया है.

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कन्नड़ सुपरस्टार यश की बहुचर्चित फ़िल्म ‘KGF 2’ बॉक्स ऑफ़िस पर धमाकेदार कमाई कर रही है. इस फ़िल्म के हिंदी वर्ज़न ने 5 दिन में ही 200 करोड़ रुपये की कमाई करके अब तक के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये हैं. फ़िल्म की ज़बरदस्त कामयाबी ने यश को ‘नेशनल स्टार’ बना दिया है. इसके साथ ही इस फ़िल्म के हिंदी वर्ज़न में अपनी आवाज़ देकर डबिंग आर्टिस्ट सचिन गोले (Dubbing Artist Sachin Gole) भी सुर्ख़ियों में आ गये हैं.

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चलिए जानते हैं कौन हैं डबिंग आर्टिस्ट सचिन गोले (Dubbing Artist Sachin Gole).

सचिन गोले (Sachin Gole) का नाम आपने शायद आज पहली बार ही सुना होगा, लेकिन वो इससे पहले ‘KGF 1’ में भी यश के लिए अपनी आवाज़ दे चुके हैं. इसके अलावा वो साउथ की सैकड़ों फ़िल्मों में अपनी आवाज़ दे चुके हैं. 14 साल से बतौर डबिंग आर्टिस्ट बॉलीवुड में संघर्ष करने वाले सचिन गोले के संघर्ष की कहानी बेहद प्रेरित करने वाली है.

डबिंग आर्टिस्ट सचिन गोले (Dubbing Artist Sachin Gole) 

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अमर उजाला से बातचीत में सचिन ने बताया कि, ये उन दिनों की बात है जब मैं पनवेल में रहता था. साल 2008 में हीरो बनने की ख़्वाहिश लेकर मुंबई आया तो मेरे माता-पिता ने भी मेरा साथ दिया. जब घर से निकल रहा था तब पिता जी ने कहा था ‘अगर तेरा ये सपना है, तो तू कर’. इसके बाद मैं उनका आशीर्वाद लेकर मुंबई आ गया. मुंबई आने पर बहुत स्ट्रगल किया, सैकड़ों ऑडिशन दिए, लेकिन मौका किसी ने भी नहीं दिया, बसों में धक्के खाये, कभी-कभी तो मेरे पास खाने तक के लिए भी पैसे नहीं होते थे’.

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मेरा एक दोस्त है अनिल म्हात्रे. जब मुझे एक्टिंग में काम नहीं मिला तो अनिल ने ही मेरा डबिंग की दुनिया से परिचय कराया. उन्होंने ही मशहूर डबिंग आर्टिस्ट गणेश दिवेकर से मिलवाया. इसके बाद महेंद्र भटनागर और सुमंत जामदार जैसे उस्तादों ने मुझे साउंड स्टूडियो में बिठाकर डबिंग तकनीक को समझने का मौका दिया. डबिंग सीखने के साथ-साथ मैंने अपना खर्चा चलाने के लिए कई बैंकों में होम लोन का काम भी किया.ऑफ़िस के काम से फ़्री होने के बाद में तुरंत मैं साउंड स्टूडियो पहुंच जाता था. कभी-कभी तो मैं हाजिरी लगाकर चोरी-छुपे स्टूडियो आ जाया करता था.

Dubbing Artist Sachin Gole

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जब बॉस ने पकड़ी मेरी चोरी

मैं अक्सर ऑफ़िस में हाजिरी लगाकर स्टूडियो आ जाया करता था. एक रोज मेरे बॉस ने मेरी चोरी पकड़ ली, लेकिन उन्होंने मुझे डांटने के बजाय समझाया कि जो करना है, दिल से करो. दो कश्तियों में पैर मत रखो. इसके बाद मैंने ठान लिया कि अब जो भी हो अगले 6 से 8 महीने अच्छे से डबिंग में ध्यान लगाना है. अगर इन 8 महीनों में सब कुछ ठीक नहीं रहा तो गांव वापस लौट जाऊंगा और पनवेल में रहकर ख़ुद का काम करूंगा या कोई छोटी-मोटी नौकरी पकड़ लूंगा. इसके बाद मैं फिर पूरी तरह से डबिंग में लग गया. एक स्टूडियो से दूसरे स्टूडियो के चक्कर काटने लगा. इस दौरान लोगों के खूब ताने सुनने को मिलते थे. कोई कहता आपका लहजा मराठी है, ज़ुबान साफ़ नहीं है, धीरे बोलते हो, आपके संवाद कलाकार के होठों के साथ मैच (लिप सिंक) नहीं करते. लेकिन इस बीच मुझे कुछ ऐसे भी लोग भी मिले जिन्होंने मेरा उच्चारण, मेरा बोलने का लहज़ा दुरुस्त करने में मदद की.
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साउथ की फ़िल्मों ने दिया मौक़ा

कई स्टूडियोज़ के चक्कर लगाने के बाद मुझे छोटे-मोटे डबिंग के काम मिलने लगे. इस दौरान मेरी मुलाकात डबिंग की दुनिया के कुछ नामचीन लोगों से हुई. इनमें अंजू पिंकी और डबिंग को-ऑर्डिनेटर अल्पना का नाम आता है. इसके बाद मुझे धीरे-धीरे साउथ इंडियन फ़िल्मों की डबिंग करने का मौका मिलने लगा. आज से 10 साल पहले साउथ की फ़िल्मों की डबिंग सस्ते में हो जाया करती थी, इसलिए स्टूडियोज़ ने मुझे डबिंग का काम देना शुरू कर दिया. क्योंकि तब तक मैं अच्छी डबिंग करने लगा था और फ़ीस भी कम लेता था. बस यहीं से मेरी ज़िंदगी की गाड़ी निकल पड़ी. 
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धनुष की फ़िल्मों ने बदल दी मेरी ज़िंदगी

धनुष की फ़िल्म ‘ताकत मेरा फैसला’ मेरे डबिंग करियर का पहला बड़ा ब्रेक था. बड़े प्रोडक्शन में ये मेरी पहली फ़िल्म थी. इसके बाद धीरे-धीरे धनुष की जितनी फ़िल्में आती गई, मैं उनकी हिंदी डबिंग करता चला गया. लेकिन धनुष की सुपरहिट फ़िल्म ‘मारी’ जिसका नाम हिंदी ‘राउडी हीरो’ था, उसने मेरी ज़िंदगी बदल दी. इस फ़िल्म में धनुष के किरदार के लिए मैंने एक अलग ही स्टाइल पकड़ी. ये एक मवाली का किरदार था, इसलिए मैंने इस कैरेक्टर को हिंदी फ़िल्मों का टिपिकल बंबइया टच दिया. दर्शकों को मेरी ये स्टाइल काफ़ी पसंद आई और मुझे कई लोगों की कॉल भी आयी. इसके बाद OTT का दौर आया और मैंने कई वेब सीरीज़ और कार्टून्स कैरेक्टर्स को भी अपनी आवाज़ दी.

Dubbing Artist Sachin Gole

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‘KGF 1’ बनी टर्निंग पॉइंट

मैं ‘KGF 1’ को अपने डबिंग करियर का टर्निंग प्वाइंट मानता हूं, क्योंकि ये एक बड़ी फ़िल्म थी. मैं KGF से पहले भी यश की कई अन्य फ़िल्मों की हिंदी डबिंग कर चुका था, लेकिन यश ये बात नहीं जानते थे. जब KGF की हिंदी डबिंग के लिए आवाज़ खोजने का समय आया तो मेकर्स और यश ने तमाम सैटेलाइट चैनलों और यूट्यूब पर साउथ की हिंदी डब फ़िल्मों को देखा. इसके बाद KGF के लिए कई आवाज़ों के सैंपल इकट्ठा किए गए. इसमें मेरी आवाज़ के सैंपल भी थे. लेकिन यश ने हिंदी में डब अपनी जो फ़िल्में देखीं इनमें से उनका ध्यान मेरी आवाज़ पर अटक गया. जब मैंने ऑडिशन में फ़िल्म का हिट डॉयलॉग ‘ट्रिगर पे हाथ रखने वाला शूटर नहीं होता, लड़की पे हाथ डालने वाला मर्द नहीं होता और अपुन की औकात अपुन के चाहने वालों से ज्यादा और कोई समझ नहीं सकता’ बोला तो यश ने ‘KGF’ के लिए में मेरी आवाज़ को सेलेक्ट कर लिया.
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 यश स्टूडियो में आकर मेरे साथ बैठने लगे थे

KGF की हिंदी डबिंग के कुछ ही दिन बाद यश ख़ुद आकर मेरे साथ स्टूडियो में बैठने लगे थे. अगर किसी एक इंसान को KGF की सफ़लता का श्रेय देना हो तो यश पहले इंसान होंगे. क्योंकि उन्होंने ये फ़िल्म करने से 3 या 4 साल पहले ही अपना सारा बंद कर दिया था. दाढ़ी बढ़ाने से लेकर बाल बढ़ाने, सब कुछ नैचुरल लगे, यश यही चाहते थे. डबिंग में भी वो मुझे नैचुरल रहने की सलाह देते थे. फ़िल्म में यश के दो दर्जन से अधिक दमदार डॉयलॉग हैं, जिनके लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की है. डबिंग के दौरान यश ने ख़ुद के साथ-साथ मेरे ऊपर भी काफ़ी मेहनत की.  

Dubbing Artist Sachin Gole with Yash

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सचिन गोले आज ‘डबिंग आर्टिस्ट’ की दुनिया का बड़ा नाम बन गये हैं. अब लोग उन्हें जानने लगे हैं. जो लोग पहले उन्हें भाव नहीं देते थे, वो अब इज्जत से बुलाकर बिठाते हैं. आज सचिन की आवाज़ ही उनकी पहचान बन गई है.