धनतेरस के दिन रिलीज़ हुई साउथ इंडियन फ़िल्म (South Indian Film) जय भीम’ (Jai Bhim) में आदिवासियों के हक़ और अधिकार के बारे में दिखाया गया है. इसके लिए लड़ाई करते हुए साउथ फ़िल्म इंडस्ट्री (South Film Industry) के सुपरस्टार सूर्या शिवकुमार (Suriya Shivakumar) नज़र आ रहे हैं. इन्होंने फ़िल्म में एक वक़ील की भूमिका निभाई है, जो ग़रीब और आदिवासी लोगों के हक़ के लिए हमेशा आवाज़ उठाता है. सूर्या के इस किरदार की चारों ओर सरहाना की जा रही है. दरअसल, ये किरदार असल ज़िंदगी में मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) के रिटायर्ड जज के. चंद्रू (Retr. Justice K. Chandru) से प्रभावित है, जिन्होंने कई सालों तक वक़ील के तौर पर आदिवासियों के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई और उन्हें न्याय दिलवाया.
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कौन हैं रिटायर्ड जज के. चंद्रू?
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96 हज़ार मामलों की सुनवाई कर चुके हैं
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जस्टिस के चंद्रू सबसे पहले एक कार्यकर्ता थे फिर वो वक़ील बने और इसके बाद मद्रास हाई कोर्ट के जज. जस्टिस के. चंद्रू भारत के प्रतिष्ठित न्यायाधीशों में से एक हैं. ऑनलाइन रिपोर्ट्स के अनुसार, जज रहते हुए उन्होंने कई ऐतिहासिक फ़ैसले लिए और 96,000 मामलों का निपटारा किया, जो एक रिकॉर्ड है. क्योंकि आमतौर पर कोई भी जज अपने करियर में 10 या 20 हज़ार मामलों की ही सुनवाई कर पाते हैं. इनके ऐतिहासिक फ़ैसलों में सामान कब्रिस्तान की उपलब्धता का फ़ैसला भी शामिल है. इनकी एक ख़ास बात ये है कि के. चंद्रू ने मानवाधिकारों से जुड़े मामलों में महिलाओं, ग़रीबों और कमज़ोर लोगों से कभी भी कोई पैसा नहीं लिया.
साधारण जीवन जीते हैं जस्टिस चंद्रू
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जस्टिस के. चंद्रू 2006 में मद्रास हाईकोर्ट के एडिशनल जज और 2009 में स्थायी जज बने. वो लोगों से कहते थे कि अदालत में उन्हें ‘माई लॉर्ड’ न कहा जाए. इतने प्रतिष्ठित व्यक्ति होने के बावजूद भी वो एक साधारण जीवन जीते थे. इन्होंने अपनी कार से लाल बत्ती भी हटवा दी थी और सुरक्षा के लिए गार्ड भी रखने से मना कर दिया था.
आपको बता दें, इनके एक फ़ैसले के चलते मिड डे मील बनाने वाली 25 हज़ार औरतों को आय का एक स्थायी स्रोत मिल सका था.