सालों पहले एक महान पुरुष ने कहा था:

इस महान आदमी ने ये भी क्लियर कर दिया था कि एक लड़का और एक लड़की की दोस्ती क्या है:

बड़े पुराने ख़्यालों के थे ये, लेकिन अपनी बात पर कॉन्फ़िडेंस पूरा था.
इनकी बात को जिस-जिस ने Seriously लिया, वो आज तक सिंगल हैं और जिन्होंने Ignore कर दिया, उनके पास दोस्तों का ख़ज़ाना है.
इंसानी इमोशंस को उसके सबसे ख़ूबसूरत, निश्छल फ़ॉर्म में देखना है, तो दोस्ती देखिये. ख़ून का रिश्ता न होते हुए भी किसी दूसरे रिश्ते के ऐसे लगाव के कारण की कई दफ़ा दोस्ती को सबसे ऊपर रखा गया है.

मैं जब बड़ी हो रही थी, तब तक मैंने परमपूज्य मोहनीश बहल जी के मुंह से निकले ये शब्द नहीं सुने थे, इसलिए दोस्ती बड़ी Sorted थी, लेकिन फिर मेरी ज़िन्दगी में एक तूफ़ान आया. ये तूफ़ान 1998 में आया था और मैं अभी तक इसे भूल नहीं पायी हूं. इस बवंडर का नाम था, ‘कुछ कुछ होता है’.
इस फ़िल्म में एक लड़का था

एक लड़की थी

और एक दोस्त थी

जिसे आजकल लोग ‘Friendzone’ कहते हैं.

राहुल और अंजलि की सही चल रही थी.. अंजलि राहुल को बास्केटबॉल में हराती थी और राहुल उस पर सेक्सिस्ट जोक मारता था.

लेकिन दोनों की दोस्ती तगड़ी थी… Pure and Pious

दोनों सिर्फ़ दोस्त थे. अंजलि को प्यार में पड़ना नहीं था और राहुल रोज़ प्यार में पड़ता था. लेकिन
फिर बीच में आया…

एक Friendship Band
इस फ़्रेंडशिप बैंड ने सिर्फ़ राहुल-अंजलि की दोस्ती ख़राब नहीं की, हर दोस्ती का बेड़ा गर्क कर दिया.

इस फ़्रेंडशिप बैंड के आने से पहले ये क्लियर था कि दोस्ती मतलब दोस्ती, लेकिन इसके आने के बाद दोस्ती का मतलब ये भी हो गया कि ये आगे चल कर प्यार में बदलेगी ही.

दोस्ती को Celebrate करने वाले दिन लोग ज़्यादातर प्यार ढूंढ रहे थे.

और इसके लिए Responsible सिर्फ़ और सिर्फ़ कुछ कुछ होता है का वो फ़्रेंडशिप बैंड है.
इससे पहले तक कोई लड़की ये बोलती थी कि वो लड़का मेरा दोस्त है, तो घरवाले भी कुछ ग़लत नहीं सोचते थे, लेकिन इसके आने के बाद से आधे घरवाले महाराज मोहनीश बहल बन गए.

हालात उस वक़्त और ख़राब हो गए जब वैलेंटाइन्स डे पर लड़के, लड़की को एप्रोच करते हुए ‘Waana Fraandship?’ लिख कर भेजने लगे.

वो फ़्रेंडशिप बैंड तो नहीं रहा, लेकिन उसकी फ़ैलाई आग अभी भी जल रह रही है…

एक बेस्टफ्रेंड अलग है और बॉयफ्रेंड अलग है. ये बेस्टफ्रेंड को Boyfriend/ Girlfriend बनाने का ‘असंस्कारी’ काम बंद हो जाना चाहिए.
कुछ हैं, जो सच्ची ‘दोस्ती’ से क्रान्ति लेकर आएंगे. मुझे यकीन है, हमारी असली दोस्ती को ज़रूर मिलेगी आज़ादी.