पांच दशकों तक अपने शानदार अभिनय से अभिनेत्री दुर्गा खोटे ने फ़िल्मी पर्दे पर अपनी धाक जमाई. इन्होंने फ़िल्मों में उस वक़्त क़दम रखा जब लड़कियों का फ़िल्मों में काम करना अच्छा नहीं माना जाता था और लड़कियों की भूमिका भी लड़के ही भेष बदलकर निभाते थे. उस दौर में दुर्गा खोटे ने फ़िल्मों में क़दम रखकर बाकी लड़कियों को फ़िल्मों में आकर अपने सपने पूरे करने की हिम्मत दी. 

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फ़िल्मी करियर की शुरुआत

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1931 में पहली बार उन्होंने साइलेंट फ़िल्म फ़रेबी जलाल में अभिनय किया. इसके बाद उन्होंने विधुर, अमर ज्योति और वीर कुणाल जैसी फ़िल्मों में भी अभिनय किया. फ़िल्म अमर ज्योति में उनके द्वार किए गए अभिनय के लिए उन्हें काफ़ी सराहना मिली. दुर्गा खोटे ने लीड एक्ट्रेस के अलावा मां के रोल्स करने के साथ-साथ नेगेटिव रोल्स भी किए. इन्होंने दिलीप कुमार की फ़िल्म मुग़ल-ए-आज़म में उनकी मां का रोल अदा किया था.

निजी जीवन आसान नहीं था

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भारतीय सिनेमा की सबसे पावरफ़ुल लेडी दुर्गा खोटे का निजी जीवन बहुत ही संघर्षोंभरा था. ज़्यादा संपन्न परिवार ने होने के चलते कम उम्र में ही उनकी शादी कर दी गई थी. फिर 24 साल की उम्र में ही वो विधवा हो गई थीं. उस वक़्त उनके दो बच्चों थे. इस कठिन समय से गुज़रने के लिए ही उन्होंने फ़िल्मों का रुख़ किया. इसके बाद दुर्गा ने दुसरी शादी की, लेकिन वो शादी भी ज़्यादा दिन नहीं चली. उसी दौरान इनके छोटे बेटे हरिन की मृत्यु भी हो गई थी.

थियटर से भी रहीं जुड़ीं

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1934 में साथी फ़िल्म का निर्माण और निर्देशन किया. इस दौरान वो थियेटर से भी जुड़ी रहीं.

200 से ज़्यादा फ़िल्में कीं

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50 साल के लंबे करियर में 200 से भी ज़्यादा फ़िल्में कीं. दुर्गा खोटे ने हिंदी फ़िल्मों के अलावा कई मराठी फ़िल्में भी कीं. इन्होंने राज तिलक, मिर्ज़ा ग़ालिब, मुग़ल-ए-आज़म, दादी मां, आनंद, मुसाफ़िर, बावर्ची, बॉबी, भरत मिलाप, नमक हराम और कर्ज़ जैसी फ़िल्मों में काम किया.

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आपको बात दें, फ़िल्म इंडस्ट्री में उनके शानदार योगदान के लिए इन्हें दादा साहब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था. साथ ही इन्हें पद्मश्री से भी नवाज़ा जा चुका है. 14 जनवरी 1905 को जन्मीं दुर्गा खोटे ने 22 सितंबर, 1991 को दुनिया को अलविदा कह दिया था.