90 के दशक की ख़ूबसूरत अदाकारा मनीषा कोइराला ने अपने दम पर एक बेहतरीन अभिनेत्री के रूप में अपना सिक्का जमाया. सफ़लता के एक के बाद एक पायदान पर चढ़ती मनीषा वो ज़िन्दगी जी रही थीं, जो उन्होंने सपनों में देखी थी. उन्हें लगा था कि सब कुछ हमेशा ऐसे ही चलता रहेगा, लेकिन तभी ज़िन्दगी ने उन्हें आसमान से ज़मीन पर ला कर पटक दिया. असफ़ल करियर और असफ़ल शादी से वो जूझ ही रही थीं कि जानलेवा कैंसर ने उन्हें अन्दर तक तोड़ दिया. पिछले दिनों जयपुर में हुई Tedx Talk में उन्होंने बताया कि किस तरह सकारात्मक सोच और हिम्मत के बल पर उन्होंने न सिर्फ़ कैंसर की जंग जीती, बल्कि अपनी ज़िन्दगी को पहले से भी बेहतर बनाया.
मनीषा के लिए कैंसर एक गिफ़्ट था. उनका मानना है कि अगर उन्हें कैंसर न होता, तो वो ज़िन्दगी और स्वास्थ्य की क़ीमत कभी नहीं समझ पातीं. उनके लिए कैंसर उस टर्निंग पॉइंट की तरह था, जिसके आने पर उन्हें एहसास हुआ कि वो अभी तक अपने स्वास्थ्य, करियर और अपनों की अनदेखी कर रही थीं.
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कैंसर ने उन्हें अपनी अब तक की ज़िन्दगी के बारे में सोचने और अपनी कमियों पर विचार करने के लिए मजबूर किया.
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उन्होंने इस बात के महत्व को समझा कि क्वांटिटी से ज़्यादा क्वालिटी महत्वपूर्ण है. फिर चाहे वो फ़िल्में हों, या दोस्त.
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कैंसर से लड़ते-लड़ते वो और भी मज़बूत हो गईं. उन्हें यह बात समझ आई कि आगे बढ़ने के लिए चुनौतियों का सामना करना बहुत ज़रूरी है.
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जब इलाज के दौरान उनसे अस्पताल में मिलने बहुत कम लोग आते थे, तब एक बहुत व्यस्त डॉक्टर हर रविवार को पूरा दिन उनके साथ बिताती थी. वो न ही मनीषा की फैन थी, न ही उनकी कोई पुरानी दोस्त. जब मनीषा ने उससे इसका कारण पूछा, तो वो बोली कि वो ऐसा इसलिए करती है, ताकि मनीषा भी एक दिन किसी के लिए ऐसा करे. तब मनीषा को एहसास हुआ कि दूसरों के लिए जीना ही असली ज़िन्दगी है.
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कैंसर की जंग जीतने के बाद अब मनीषा कैंसर पीड़ितों को हौसला बंधाती हैं और अपना उदाहरण दे कर उन्हें हिम्मत देती हैं.
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मनीषा ने समझा कि हमारे साथ घटने वाली हर एक बात का एक मतलब है, जिसे समझना ज़रूरी है.
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मौत से जूझते-जूझते अब वो ज़िन्दगी की अहमियत समझ चुकी हैं और अब वो हर किसी को इसकी अहमियत समझने का सन्देश देती हैं.
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कैंसर ने उन्हें सीख दी कि ज़िन्दगी को खुल कर जीना चाहिए और दूसरों की नकल करने के लिए यह बहुत छोटी है. इसे अपने हिसाब से जीना चाहिए.
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मनीषा की हंसती-खेलती ज़िन्दगी में कैंसर ने आकर उन्हें समझाया कि ज़िन्दगी हमेशा हमारी योजनाओं के हिसाब से नहीं चलती और समय-समय पर हमें सरप्राइज़ करती रहती है. हमें हर स्थिति का सामना सकारात्मक रवैये के साथ करना चाहिए.अपने अनुभव से वो दुनिया को सन्देश देना चाहती हैं कि अगर इंसान चाहे, तो बुरी से बुरी स्थिति में हिम्मत और दिमाग से काम ले कर उसे अपनी बेहतरी के लिए प्रयोग कर सका है. उनका कहना है कि आत्म-निरीक्षण बहुत ज़रूरी है. अब वो खुद से हमेशा सवाल करती रहती हैं कि ज़िन्दगी को और बेहतर कैसे बनाया जाए.
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आज मनीषा कोइराला कैंसर से मुक्त हैं और बिल्कुल स्वस्थ हो कर कैंसर से लड़ रहे लाखों लोगों के लिए एक आदर्श बन कर खड़ी हैं. ये मनीषा की सकारात्मक सोच का ही जादू था कि कैंसर जैसी घातक बीमारी ने भी उनके आगे अपने घुटने टेक दिए. ज़िन्दगी और मौत के बीच झूलते हुए उन्होंने जो कुछ भी सीखा, उससे हर किसी को सीख लेने की ज़रूरत है. ज़िन्दगी रहते ही ज़िन्दगी की कद्र कर ली जाए, तो इससे अच्छा क्या होगा.