मनोज बाजपेयी बॉलीवुड के उन स्टार्स में से एक हैं जिन्होंने शुरुआत थिएटर से की और सिनेमा के बड़े पर्दे पर अपना एक अलग मुकाम बनाया. एक्टिंग की दुनिया में टैलेंट के पावर हाउस माने जाते हैं मनोज बाजपेयी. वो ऐसे एक्टर हैं जो अपने किरदार को जीवंत बनाने के लिए उसे असल ज़िंदगी में जीने की कोशिश करते हैं.

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अपने 25 साल के बॉलीवुड करियर में उन्होंने ‘सत्या’, ‘शूल’, ‘स्पेशल 26’, ‘गैंग्स ऑफ़ वासेपुर’, ‘राजनीति’, ‘पिंजर’, ‘अलीगढ़’ जैसी सुपरहिट फ़िल्मों में काम किया है. लेकिन मुंबई में अपने सपने को साकार करना उनके लिए आसान कतई नहीं था. मनोज बाजपेयी को यहां कई सालों तक काम नहीं मिला और ऐसे भी दिन आए जब उनके पास खाना खाने तक के पैसे नहीं थे.

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मनोज बाजपेयी ने हाल ही में अपने एक इंटरव्यू में अपने संघर्ष भरे दिनों को याद किया. उन्होंने बताया कि जहां वो आज हैं यहां तक पहुंचने के लिए उन्हें कितना स्ट्रगल करना पड़ा.

काम नहीं था और खाने तक के नहीं थे पैसे

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‘बेंडिट क्वीन’ के बाद हम में से कई एक्टर मुंबई शिफ़्ट हो गए थे. यहां की ज़िंदगी बहुत मुश्किल थी. दिल्ली में कम से कम हम थिएटर तो कर रहे थे. वहां पैसा नहीं मिलता था, लेकिन दोस्त मदद करने के लिए तैयार रहते थे. एक-दूसरे को खाना खिला दिया करते थे. मुंबई में हमारे पास काम ही नहीं था. खाना खाने के पैसे नहीं थे. हम जानते ही नहीं थे कि हमें खाना कब मिलेगा. शुरुआत के 4-5 साल काफ़ी मुश्किल भरे निकले. पहले तीन तो बहुत ज़्यादा कठिन थे. पर्सनली और प्रोफे़शनली दोनों तरफ से.

-मनोज बाजपेयी

मुंबई में एक फ़िल्म मिलना बहुत मुश्किल काम था

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मनोज बाजपेयी ने अपने संघर्ष भरे दिनों को याद करते हुए कहते हैं- ‘उस दौरान पिताजी की तबियत ठीक नहीं चल रही थी. परिवार को भी आर्थिक मदद की ज़रूरत थी. घर के सबसे बड़े बेटे होने के नाते मुझे ही सारी ज़िम्मेदारियां संभालनी थीं. मेरे पास मुंबई में कोई जॉब नहीं थी. फ़िल्म पाना तो बहुत ही मुश्किल था. उस ज़माने में कास्टिंग डायरेक्टर्स नहीं हुआ करते थे. काम ढूंढने के लिए हम लोग फ़िल्म के सेट पर जाते थे. कभी फ़िल्म के डायरेक्टर्स और प्रोड्यूसर्स के ऑफ़िस जाते थे. मैं मुंबई में सर्वाइव करने के लिए काफ़ी मेहनत कर रहा था. मैं कह सकता हूं कि वो समय मेरे लिए बहुत मुश्किल भरा था, जब मैं घर से दूर था.’

फ़िल्मों को बिज़नेस से नहीं क्वालिटी के लेंस से देखते हैं

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मनोज बाजपेयी ने बताया कि वो अपनी फ़िल्मों को बिज़नेस से नहीं, बल्कि क्वालिटी से आंकेते हैं. उनकी ऐसी बहुत सी फ़िल्में हैं जो बॉक्स ऑफ़िस पर चली लेकिन उन्हें वो नहीं पसंद. वहीं कुछ ऐसी फ़िल्में हैं जो भले ही कमाई के मामले में पीछे हों लेकिन उन्हें पसंद हैं. उनकी वजह से दर्शक उन्हें जानते हैं. वो उनकी पहचान बनीं.

फ़िल्म अवॉर्ड्स में होने वाले पक्षपात से हैं ख़फा

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नेशनल अवॉर्ड विनर एक्टर मनोज बाजपेयी का कहना है कि वो कभी अवॉर्ड की आशा नहीं करते. उनका कहना है कि यहां पक्षपात होता है, जिससे उन्हें बहुत दुख होता है. इससे एक कलाकार का मनोबल टूटता है. फ़िल्म अवॉर्ड्स अपनी विश्वसनीयता खो चुके हैं.

सेलिब्रिटी इमेज की नहीं करते परवाह

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उनका कहना है कि उन्होंने कभी सेलिब्रिटी इमेज की परवाह नहीं की और ना ही आज करते हैं. मनोज कहते हैं कि उन्हें पसंद नहीं कि कोई उन्हें सिर्फ़ इसलिए सम्मान दे की वो एक सेलेब हैं. इसकी बजाए वो ख़ुद के काम से लोगों का सम्मान अर्जित करना पसंद करते हैं. उन्हें अपनी आज़ादी से भी बहुत प्रेम है. वो बेफ़िक्र होकर घूमना और अपनी पसंद के कपड़े पहनना पसंद करते हैं.

सच में मनोज बाजपेयी ने इस मुक़ाम तक पहुचने के लिए बहुत मेहनत की है.