बॉलीवुड एक ऐसी जगह जो किसी को भी अपनी तरफ़ खींच ले तो इंसान अपना सब कुछ त्याग कर उसके रंग में रंगने को तैयार हो जाता है. सपनों की नगरी मुंबई ने कई लोगों के सपने पूरे किये हैं तो कई के अधूरे भी छोड़े हैं. कई लोगों ने अपने सपनों को पूरा करने के लिए सब कुछ दाव पर लगा दिया था कुछ लोगों को आसानी से भी रोल मिल गए. आज मशहूर हुए एक्टर्स में कितने एक्टर ऐसे हैं, जो अपनी पिछली ज़िंदगी में नौकरी, घर तो कभी कुछ न कुछ अहम छोड़कर इस बॉलीवुड में आए हैं.

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आज ऐसे ही एक दिग्गज कलाकार के बारे में बताएंगे जिन्होंने अपनी सरकारी की नौकरी छोड़ दी बॉलीवुड में आने के लिए फिर भी कभी लीड रोल का हिस्सा नहीं बन पाए. इनका नाम अशोक सराफ़ (Ashok Saraf) है, भले ही इन्हें लीड रोल नहीं मिले लेकिन अपनी दमदार कॉमिक टाइमिंग और एक्टिंग से इन्होंने हमारे दिलों में जगह बना ली है. इसलिए इन्हें आज किसी भी पहचान की ज़रूरत नहीं है. अपने दमखम से इन्होंने अपना नाम बनाया है. हिंदी फ़िल्मों में सह कलाकार का किरदार निभाने वाले अशोक सराफ़ मराठी इंडस्ट्री के ‘कॉमेडी किंग’ के रूप में जाने जाते हैं.

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अशोक सराफ़ की एक्टिंग और करियर की बातें ख़ूब होती हैं इस करियर को उन्होंने कैसे पाया आज उस पर बात करते हैं साथ ही पर्सनल लाइफ़ पर भी नज़र डालते हैं. 4 जून 1947 को जन्में अशोक सराफ़ साउथ मुंबई, चिखलवाड़ी में रहते थे. इन्होंने अपनी पढ़ाई डीजीटी स्कूल से की थी. इनके माता-पिता ने इनका नाम दिग्गज अभिनेता अशोक कुमार के नाम पर अशोक सराफ़ रखा था. आज वो मराठी और बॉलीवुड इंडस्ट्री का एक जाना-माना नाम हैं.

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हालांकि हर माता-पिता के तरह इनके पिता भी चाहते थे कि अशोक अपनी पढ़ाई पूरी करके एक स्थाई नौकरी करें. जबकि अशोक को थियेटर में रुचि थी फिर भी उन्होंने अपने पिता की बात मानी और भारतीय स्टेट बैंक में बैंकर की नौकरी कर ली. मगर कहते हैं न अगर सपनों को पूरा करने का जज़्बा हो तो वो पूरे हो ही जाते हैं. अशोक सराफ़ ने बैंकर की नौकरी करते हुए अपने एक्टिंग के सपने को भी पूरा करना चाहा और उन्होंने मराठी फ़िल्म में डेब्यू किया. अपने डेब्यू के दौरान भी उन्होंने बैंकर के तौर पर काम किया मगर जब फ़िल्मों के ऑफ़र आने लगे तो अशोक सराफ़ ने बैंक की नौकरी छोड़ दी.

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अशोक सराफ़ ने अपने करियर की शुरुआत 1969 में आई मराठी फ़िल्म ‘जानकी’ से की थी. इसके बाद इन्होंने 250 से अधिक फ़िल्मों में काम किया, जिनमें से 100 व्यावसायिक रूप से सफल रहीं. 1970 और 80 के दशक में अशोक ने ऐसी दमदार कॉमेडी करके दिखाई कि मराठी सिनेमा में कॉमेडी की लहर चस पड़ी. इनकी बेस्ट कॉमेडी फ़िल्मों में ‘आशी ही बनावा बनवी’, ‘अयात्या घरत घरोबा’, ‘बालाचे बाप ब्रम्हचारी’, ‘भूतचा भाऊ’ और ‘धूम धड़ाका’ शामिल हैं.

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मराठी फ़िल्मों में अपनी पहचान बनाने के बाद अशोक सराफ़ ने हिंदी फ़िल्मों का रुख़ किया और इन्होंने जॉनी लीवर, कादर ख़ान और गोविंदा जैसे दमदार कॉमेडी अभिनेताओं को कड़ी टक्कर दी. हालांकि, वो कभी मुख्य भूमिका में नहीं दिख पाए लेकिन साइड में होते हुए भी वो अपनी एक्टिंग से मुख्य कलाकार को खा गए और ख़ुद उभरकर सामने आए. अशोक सराफ़ की कुछ बेहतरीन बॉलीवुड फ़िल्मों की बात करें तो उनमें ‘सिंघम’, ‘प्यार किया तो डरना क्या’, ‘गुप्त’, ‘कोयला’, ‘यस बॉस’, ‘जोरू का ग़ुलाम’ और ‘करण अर्जुन’ जैसी फ़िल्मों के नाम शामिल हैं.

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फ़िल्में करते हुए इन्होंने टीवी में भी हाथ आज़माया और इनके कई शो हिट रहे, जिनमें ‘छोटी बड़ी बातें’, ‘हम पांच’ और 1990 के दशक में आया कॉमेडी शो ‘डोंट वरी हो जाएगा’ शामिल हैं.

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पर्सनल लाइफ़ की बात करें तो अशोक सराफ़ ने 1990 में अभिनेत्री निवेदिता जोशी सराफ़ से शादी की थी. दोनों का एक बेटा है जिनका नाम अनिकेत सराफ़ है और वो एक्टर नहीं बल्कि एक शेफ़ हैं.

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आपको बता दें, अशोक सराफ़ को आख़िरी बार 2022 में आई मराठी फ़िल्म ‘वेड’ में देखा गया था. इसमें रितेश देशमुख और जेनेलिया डिसूज़ा देशमुख मेन लीड में थे. अशोक सराफ़ ने रितेश के पिता का किरदार निभाया था.