दिसंबर 2012 की वो भयावह रात कोई नहीं भूल सकता जिस दिन दिल्ली में एक लड़की के साथ बड़ी ही बेरहमी से सामूहिक बलात्कार किया गया था. इस केस को पूरी दुनिया ‘निर्भया केस’ के नाम से जानती है. इसी केस पर आधारित है, नेटफ़्लिक्स की वेब सीरीज़ ‘दिल्ली क्राइम’. इसमें दिल्ली पुलिस को विक्टिम को न्याय दिलाने में किन-किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा था, ये बखुबी दिखाया गया है. डायरेक्टर रिची मेहता ने पुलिस इन्वेस्टिगेशन और उसकी प्रकिया को हू-ब-हू दर्शकों के सामने पेश किया है.

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इस वेब सीरीज़ की मुख्य किरदार हैं एक्ट्रेस शेफ़ाली शाह, जिन्होंने दिल्ली पुलिस की जांबाज़ महिला ऑफ़िसर छाया शर्मा का रोल अदा किया है. पूर्व डीसीपी छाया शर्मा ने इस केस को हल करने में दिन-रात एक कर दिया था.

चलिए आपको मिलवाते हैं निर्भया को न्याय दिलवाने वाली दिल्ली पुलिस की इस पूरी टीम से.

5 दिनों में सॉल्व कर लिया था केस

छाया शर्मा के सुपरविज़न में इस केस को 5 दिनों में ही सॉल्व कर लिया गया था. उनकी टीम में कुल 41 पुलिस अधिकारी थे. कोर टीम में 8 अधिकारी थे. इन्होंने छोटे-से छोटे सबूत इकट्ठा किए, डीएनए सैंपल तैयार किए और 1000 पन्नों की चार्जशीट तैयार की वो भी 2 हफ़्तों में. 

Additional Deputy Commissioner पी.एस. कुशवाहा एसआईटी की टीम को लीड कर रहे थे. उनकी टीम ने आरोपियों के ख़िलाफ़ सबूत इकट्ठा करने के लिए ज़िम्मेदार थी. ताकि कोर्ट में उन्हें किसी तरह की परेशानियों का सामना न करना पड़े. 

पहली बार किसी केस में सबूतों का डीएनए टेस्ट कराया गया था

इस बारे में डीएनए अख़बार से बात करते हुए उन्होंने कहा- ‘हमने सारे सुबूतों को डीएनए टेस्ट कराया था. इसमें दातों से लेकर अभियुक्त के कपड़े तक शामिल हैं. किसी केस में ऐसा पहली बार किया गया था. आरोपियों ने सबूतों को नष्ट करने के इरादे से विक्टिम के कपड़ों को जला दिया था. जले हुए कपड़ों के टुकड़ों के डीएनए परीक्षण से ही पुष्टी हुई थी कि वो विक्टिम के ही थे.’ 
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इनकी टीम ने उस बस से भी सबूत इकठ्ठा किए जहां इस अपराध को अंजाम किया गया था. आरोपियों ने अपराध करने के बाद इसे धो डाला था, लेकिन दिल्ली पुलिस वहां से भी ख़ून और डीएनए सैंपल एकत्र करने में कामयाब हुई.

विक्टिम ने भी की पूरी मदद

विक्टिम ने भी इस केस को हल करने में पुलिस की पूरी मदद की. उन्होंने भारी जख्मों और असहनीय दर्द के बावजूद पुलिस को अपराधियों का डिटेल्ड डिस्क्रिप्शन दिया था. छाया शर्मा ने क्विंट को दिए एक इंटरव्यू में निर्भया को बहुत ही साहसी महिला बताया था. 

2017 के इस इंटरव्यू में छाया शर्मा ने बताया है कि कैसे एक ब्लाइंड केस को, जिसमें कोई भी सुराग उनके पास नहीं था, वो इसे हल करने में कामयाब हुईं. 

300 बसों में से तलाशी थी बस

निर्भया और उसके साथी ने बस की डिटेल्स पुलिस से शेयर की थीं. इसके आधार पर एसआईटी हेड राजेंद्र सिंह ने बस को ढूंढ निकाला था. बस का जैसा डिस्क्रिप्शन दिया गया था, वैसी करीब 300 बसें दिल्ली-एनसीआर में चल रही थीं. 

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ये भूंसे के ढेर में से सूई तलाशने जैसा था. लेकिन फिर भी राजेंद्र की टीम दिल्ली के होटल के सीसीटीवी से उस बस की फ़ुटेज निकालने में कामयाब हुई. इस फ़ुटेज से ये कन्फ़र्म हो गया कि क्राइम के वक़्त वो बस संभावित रूट पर ही थी.

इस बारे में दिल्ली पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार ने डेक्कन हेराल्ड को दिए इंटरव्यू में कहा- ‘सीसीटीवी की फ़ुटेज की मदद से हम बस को ट्रैक करने में कामयाब हुए. इसके अगले ही दिन हमने बस ड्राइवर राम सिंह को भी गिरफ़्तार कर लिया. उसने पूछताछ में कबूल कर लिया था कि वही उस रात बस को चला रहा था.’ 
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राजस्थान और बिहार जाकर भी पकड़े अपराधी

इसके बाद एक के बाद एक क्लू मिलते गए और दिल्ली पुलिस बिहार से एक और अभियुक्त आलोक शर्मा को पकड़ने में कामयाब हुई. इसी बीच इस केस की ख़बर टीवी और अख़बारों में छा गई. ख़बर के वायरल होने के बाद एक आरोपी राजस्थान भाग गया था. उसे एसआईटी के अधिकारी बिना लोकल पुलिस की मदद के पकड़ने में कामयाब रहे. 

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कमिश्नर नीरज कुमार के अनुसार, ख़बर फैलने के बाद उनके ऊपर राजनैतिक प्रेशर भी आना शुरू हो गया. वो इस केस का राजनैतिक फ़ायदा उठाना चाहते थे और उन्हें बलि का बकरा बनाने की फ़िराक में थे.

लोगों का आक्रोश लगातार बढ़ रहा था

लोगों का आक्रोश बढ़ता जा रहा था और वो वसंत विहार पुलिस स्टेशन के बाहर विरोध प्रदर्शन करने लगे थे. इसने पुलिस की मुश्किलें और बढ़ा दीं और उन्हें मजबूरन फ़्रंट गेट बंद कर पड़ा. पुलिस पीछे के गेट से चुपके से थाने में एंटर हो रही थी.

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सभी 6 आरोपियों को पकड़ने के बाद पुलिस का काम ख़त्म नहीं हुआ था. उनके सामने सभी मुजरिमों को सही सलामत अदालत में पेश भी करना था. लेकिन मुख्य आरोपी राम सिंह ने तिहाड़ जेल में फ़ांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. 

कोर्ट ने सुनाई फ़ांसी की सज़ा

एक नाबालिक अपराधी को अदालत मात्र 3 साल की सज़ा दे पाई और उसे सुधार ग्रह में भेज दिया गया. मगर बाकी के चारों अरोपियों को फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट ने फ़ांसी की सज़ा सुनाई और अभी तक इस सज़ा पर अमल नहीं हो पाया है. 

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इस पूरे केस के दौरान एसआईटी की टीम को कई दिनों तक अपने घर जाने की भी फ़ुर्सत नहीं मिली. कम वेतन, अपर्याप्त फ़ंड, फ़ोरेंसिक एक्सपर्ट की कमी जैसी खामियों के बाद भी पुलिस अपने काम में जुटी रही. इन सब के बावजूद जिस तरह से टीम ने केस को अंजाम तक पहुंचाया उसकी तारीफ़ की जानी चाहिए.