फ़िल्में केवल समाज का आईना ही नहीं होती, बल्कि मनोरंजन के साथ ही सम्मोहित कर देने वाले आर्ट के रूप में भी इनका नाम लिया जा सकता है. जैसे किताबों के सहारे इंसान हज़ार तरीके के किरदार अपने दिमाग़ में गढ़ सकता है, उसी तरह फ़िल्मों के सहारे भी लोग कुछ देर के लिए ही सही लेकिन एक अलग दुनिया में पहुंचने में कामयाब होते हैं और इनमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं फ़िल्मों के सेट्स. बॉलीवुड में पिछले कुछ अर्से से महंगे सेट्स बनाने का चलन बढ़ा है. एक नज़र डालते हैं बॉलीवुड के सबसे महंगे और ख़ास सेट्स पर:

बाहुबली

एस. एस. राजामौली की फ़िल्म बाहुबली ने न केवल रिकॉर्डतोड़ कमाई की, बल्कि अपनी हैरतअंगेज़ सिनेमाटोग्राफ़ी से लोगों को बांध कर रख दिया था. भल्लालदेव का 125 फुट स्टैचू बनाने के लिए 200 कारीगरों की मदद ली गई थी. इस स्टैचू का वज़न 8000 किलो था और इसे उठाने के लिए चार क्रेन की ज़रूरत पड़ती थी. इसके अलावा एक और दिलचस्प बात ये है कि फ़िल्म सिटी में 110 एकड़ की ज़मीन को इन सेट्स के निर्माण के लिए इस्तेमाल किया गया था. फ़िल्म के सेट्स आलीशान थे और फ़िल्म की ज़्यादातर शूटिंग हैदराबाद के रामोजी फ़िल्म सिटी में हुई थी. खास बात ये है कि फ़िल्म के खत्म होने के बाद ये जगह एक टूरिस्ट स्पॉट में तब्दील कर दी गई थी.

बॉम्बे वेलवेट

अनुराग कश्यप की सबसे महंगी फ़िल्म यूं तो भारतीय दर्शकों को पसंद नहीं आई लेकिन फ़िल्म अपने आलीशान सेट्स के चलते सुर्खियों में रही. कोलंबों में 9.5 एकड़ ज़मीन पर ओल्ड मुंबई को क्रिएट करने की कोशिश की गई थी. इस सेट को बनाने में ही 11 महीनों का समय लग गया था. इस सेट की बिल्डिंग, सड़कें और इंफ़्रास्ट्रक्चर ओल्ड मुंबई की फ़ील दे रहे थे. दिलचस्प बात ये है कि अब ये सेट श्रीलंका में पर्यटकों के लिए टूरिस्ट स्पॉट बना दिया गया है.

मुग़ल-ए-आज़म

मुंबई के एक स्टूडियो में मुग़ल-ए-आज़म के निर्देशक के.आसिफ़ ने लाहौर किले में शीश महल को बनाने की अद्भुत कोशिश की थी. यही नहीं, मुग़ल-ए-आज़म में मौजूद पैलेस को बनवाने में दो साल का समय लग गया था. बेल्जियम से मंगाए गए इस ग्लास का बजट उस समय की फ़िल्मों से भी ज़्यादा था.

सांवरिया

सांवरिया एक ऐसी फ़िल्म थी, जो शुरुआत से लेकर अंत तक केवल सेट्स पर ही शूट की गई थी और इस फ़िल्म में किसी भी तरह की रियल लोकेशन मौजूद नहीं थी. रूस के महान साहित्यकार Dostoevsky की शॉर्ट स्टोरी पर बनी इस फ़िल्म को हालांकि मसाला फ़िल्मों के फ़ैंस ने पसंद नहीं किया, लेकिन फ़िल्म के स्वप्न सरीखे सेट्स एक खूबसूरत कविता की तरह लोगों को दूसरी दुनिया में ले जाने में कामयाब रहते हैं. तालाब, स्ट्रीट, दुकानें, क्लॉक टॉवर इस फ़िल्म में जितनी खूबसूरत लगती है, उतनी शायद किसी और फ़िल्म में नहीं.

प्रेम रतन धन पायो

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संजय लीला भंसाली के अलावा सूरज बड़जात्या की फ़िल्में भी अपने आलीशान सेट्स के लिए जानी जाती हैं. ‘प्रेम रतन धन पायो’ के साथ ही सूरज ने फ़िल्म सेट के स्तर को एक कदम और बढ़ा लिया था. मुगल-ए-आज़म के 55 साल बाद सूरज बड़जात्या ने अपने आर्ट निर्देशक नितिन चंद्रकांत देसाई को करजत स्टूडियो में शीश महल बनाने की कमान सौंपी थी. इस फ़िल्म में मौजूद रॉयल पैलेस 100,000 स्कवायर फ़ीट में फ़ैला हुआ था.

रामलीला

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फ़िल्म रामलीला के गाने ‘नगाड़ा संग ढोल’ का सेट इतना महंगा था कि दीपिका पादुकोण को घायल होने के बाद भी शूटिंग को जारी रखना पड़ा था. ये सेट मुंबई के फ़िल्म सिटी में बना था. यही नहीं, निर्देशक संजय लीला भंसाली ने रणवीर सिंह के लिए जिम भी फ़िल्म के सेट में ही फ़िट करा दिया था, ताकि वो शूटिंग पर पहुंचने में लेट न हों.

कभी ख़ुशी कभी ग़म

फ़िल्म के सेट डिज़ाइनर्स ने मुंबई के फ़िल्म सिटी स्टूडियो को दिल्ली का चांदनी चौक बनाया था. रायचंद मैंशन को भीतर से सजाने के लिए कई महंगी पेंटिंग्स का सहारा लिया गया ताकि इसे एक रसूखदार लुक दिया जा सके. इस फ़िल्म के लिए शर्मिष्ठा रॉय ने 18 से 19 सेट डिज़ाइन किए थे, जिसके लिए उन्हें बेस्ट आर्ट डायरेक्शन का फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड भी मिला था.

देवदास

देवदास के सेट्स भव्यता की पराकाष्ठा थे और इस फ़िल्म के लिए संजय लीला भंसाली ने कई प्रयोग किए थे. मसलन इस फ़िल्म में चंद्रमुखी का कोठा एक लेक के पास बनाया गया था. बनारस के घाट को दर्शाने के लिए मुंबई के एक स्टूडियो में एक कृत्रिम लेक का सहारा लिया गया था. इसके अलावा पारो के ग्लास हाउस के लिए 12,20,00,008 शीशों का इस्तेमाल किया गया था और सेट डिज़ाइनर्स को इसे बनाने में 7 महीनों का समय लगा था.  

भले ही आपको ये फ़िल्में पसंद आएं न आएं, लेकिन इन फ़िल्मों के भव्य सेट्स को देखकर तो हर शख़्स इन फ़िल्मों को कम से कम एक बार ज़रूर देखना चाहेगा.