1947 से पहले का पंजाब, जहां ल्यालपुर के एक बड़े से घर में एक लड़के का जन्म हुआ. बेशुमार धन-दौलत के बीच पले इस लड़के का नाम पृथ्वीराज रखा गया. तहज़ीब और ऊंची तालीम के लिए इस लड़के को पेशावर के Edwardes College भेजा गया, जहां ये लड़का गलत संगति का शिकार हो कर थिएटर से इश्क़ कर बैठा. थिएटर को गलत संगत इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि ये वो दौर था, जब नाटक और थिएटर भले घरों में नीच समझे जाते थे. पर इश्क़ तो इश्क़ ठहरा, जिसमें दुनियादारी की परवाह ही कौन करता है.
पृथ्वीराज का यही इश्क़ उन्हें बॉम्बे ले आया. ये वो दौर था, जब बॉलीवुड में साइलेंट फ़िल्मों का बोलबाला था. इसी दौर में बॉलीवुड भी अभी अपने पैरों पर खड़ा होना सीख रहा था. इस दौर में जब किसी कलाकार के लिए उसके एक्सप्रेशन ही सबसे ज़्यादा मायने रखते थे, पृथ्वीराज कपूर ने अपने एक्सप्रेशन से पर्दे पर अपनी छाप छोड़ी. लगातार 9 साइलेंट फ़िल्में करने के बाद आख़िरकार वो वक़्त भी आ गया, जब पृथ्वीराज कपूर के साथ बॉलीवुड को उसकी पहली बोलती फ़िल्म ‘आलमआरा’ मिली.
इस फ़िल्म के ज़रिये लोग पृथ्वीराज कपूर को जानने लग गए थे, पर उन्हें असली पहचान फ़िल्म ‘विद्यापति’ से मिली. इस फ़िल्म में पृथ्वीराज को लोगों के साथ-साथ आलोचकों की भी प्रशंसा मिली. इसके बाद तो पृथ्वीराज कपूर के लिए हर नया दिन नई चुनौतियों की तरह बन गया, जिसे उन्होंने बखूबी स्वीकार किया.
चाहे वो ‘सिकन्दर’ फ़िल्म का ‘एलेग्जेंडर द ग्रेट’ हो या ‘मुगल-ए-आज़म’ का अकबर, उन्होंने जिस भी किरदार को निभाया, वो उनकी पहचान बन गया. उनके अभिनय का आलम यह बन गया कि आज भी लोग अकबर को पृथ्वीराज कपूर के रूप में ही पहचानते हैं.
फ़िल्मों से जुड़े होने के बावजूद पृथ्वीराज देश के राजनीतिक हालातों से बखूबी वाकिफ़ थे. देश में आज़ादी की लौ जल चुकी थी, उन्होंने इस लौ को मशाल में बदला और ‘पृथ्वी थिएटर’ की स्थापना की. आज़ादी के समय में इस थिएटर ग्रुप ने देशभर में घूम-घूम कर यात्राएं कीं और लोगों को आज़ादी की लड़ाई से जोड़ने का काम किया. 1947 में उनके द्वारा किये गए नाटक ‘पठान’ को इतनी प्रसिद्धि मिली कि अकेले मुम्बई में इस नाटक को 600 बार से भी ज़्यादा खेला गया.
आज पृथ्वीराज कपूर को लोग सिर्फ बॉलीवुड के लिए पहचानते हैं, जबकि पृथ्वीराज कपूर ने सिर्फ बॉलीवुड के लिए नहीं बल्कि कला के लिए काम किया. ‘नानक नाम जहाज़ है’ उनके द्वारा निर्मित वो पंजाबी फ़िल्म थी, जिसकी टिकट के लिए लोग रात से ही सिनेमाघरों की लाइन लगाना शुरू कर देते थे.
कला को जीवित रखने के लिए पृथ्वीराज कपूर ने दुनिया के सबसे बड़े नाटककार शेक्सपियर के नाम पर भी एक थिएटर ग्रुप की शुरुआत की, जिसका नाम ‘Shakespeareana’ रखा गया. पृथ्वीराज कपूर खुद भी IPTA (Indian People’s Theatre Association) के उन सदस्यों में से एक रहे हैं, जिन्होंने इसकी नींव रखी.
आज भले ही पृथ्वीराज कपूर हम सब के बीच न हों, पर सिनेमा के लिए दिया गया उनका योगदान उनके अभिनय और पृथ्वी थिएटर के रूप में आज भी ज़िंदा है. जो हमेशा उनकी यादों को लोगों के दिलों में ताज़ा रखेगा.
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