साउथ फ़िल्मों की दुनिया में अल्लू अर्जुन (Allu Arjun) एक बड़ा नाम हैं. लोगों में उनके प्रति दीवानगी इस कदर है कि एक्टर की फ़िल्म को ऑन लूप चालीसों बार भी चलाया जाए, तो भी लोगों की निगाहें स्क्रीन से हटेंगी नहीं. अब धीरे-धीरे उनका क्रेज़ बॉलीवुड लवर्स के सिर भी चढ़कर बोल रहा है. हाल ही में आई उनकी फ़िल्म ‘पुष्पा: द राइज़’ के हिंदी वर्ज़न को बोरिया भर-भर के मिल रहे प्यार को देख़कर ये बात तो आप समझ ही गए होंगे.

अमेज़न प्राइम वीडियो पर रिलीज़ हुई इस मूवी का लुत्फ़ लोग थिएटर में न उठा सके. लेकिन ‘Pushpa’ ने लगभग हर घर को थिएटर में तब्दील कर दिया. जिस-जिस ने भी ये मूवी देखी, उनके मुंह से इसके लिए तारीफ़ों की फुलझड़ी के अलावा और कुछ भी न सुनाई दिया. 2 घंटे 55 मिनट की इस मूवी में अल्लू अर्जुन के मुंह से निकला डायलॉग ‘पुष्पा…फ्लावर नहीं फ़ायर है मैं’ जब लोगों के कानों में पड़ता है, तो लोग जोश में घरों में ही ज़ोरदार सीटियां मारने से खुद को रोक नहीं पाते. 

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हालांकि, जितना Pushpa फ़िल्म को देखने की शुरुआत में जोश हाई था, अंत तक आते-आते वो सारा ठंडा पड़ गया. मूवी में ऐसी कई ग़लतियां दिखीं, जो शायद आपने नोटिस नहीं की होंगी. तो आइए आपको फ़िल्म में उन्हीं 5 ग़लतियां के बारे में बताते हैं. 

1. लगा जैसे KGF चैप्टर 1 का रीमेक देख लिया हो

फ़िल्म ‘KGF‘ चैप्टर 1 तो ज़रूर देखे होंगे, नहीं देखे तो बता देते हैं कि इस मूवी की कहानी सोने की खदान के इर्द-गिर्द घूमती है. फ़िल्म के लीड कैरेक्टर रॉकी के सिर पर पिता का साया नहीं होता है. वो अनाथ और ग़रीब है. अगर देखे हो, तो ‘पुष्पा’ देखने की ग़लती बिल्कुल न करना. ऐसा इसलिए क्योंकि ‘पुष्पा’ और रॉकी दोनों की कहानी मिलती जुलती है. बस अल्लू अर्जुन स्टारर इस फ़िल्म में सोने की खदान की जगह चन्दन की स्मगलिंग दिखा दी गई है. पुष्पा नाजायज़ है. उसकी मां भी अकेले ही अपने बेटे का पेट पालती है. दोनों ही बड़ा आदमी बनने के लिए बड़े-बड़े गुंडे-माफ़िया के अंडर काम करते हैं. फ़िर अपनी चालाकी और सूझबूझ से पूरे धंधे पर उनका सिक्का चलने लगता है. फ़िल्म के अंत तक आते-आते पक्का यकीन हो गया कि पुष्पा मूवी का डायरेक्टर ‘KGF‘ का जबरा फैन है. ऐसे में एडवांस्ड सिनेमाटोग्राफ़ी के अलावा लोगों को मूवी में अलग क्या लगा, ये तो वहीं बता सकते हैं. 

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2. फ़ीमेल कैरेक्टर को बहुतई कमज़ोर दिखा दिए

फ़िल्म में रश्मिका मंदाना ने पुष्पा की क्रश ‘श्रीवल्ली‘ का कैरेक्टर प्ले किया है. अब नेशनल क्रश होने का कुछ तो फ़ायदा उठाना बनता है. वो सब तो ठीक है, लेकिन फ़िल्म में पुष्पा ‘श्रीवल्ली’ को पाने के लिए अपनी सारी हदें भूल जाता है. श्रीवल्ली उसे घास भी नहीं डालती, इसलिए पुष्पा का दोस्त श्रीवल्ली को 1000 रुपये देता है और Pushpa की तरफ़ देखकर हंसने के लिए कहता है. श्रीवल्ली इस बात के लिए हामी भर देती है. यहां तक पुष्पा को किस करने के लिए भी वो 5000 रुपये लेती है. ये बात कुछ हज़म नहीं हुई. एक साधारण परिवार में बिना किसी दबाव के ऐसी कौन सी लड़की ये सब करने को राज़ी हो जाती है. इसके विपरीत श्रीवल्ली धाकड़ हो सकती थी. फ़िल्म में कई बार वो मोटरसाइकिल चलाते हुए भी दिखाई दी. लेकिन डायरेक्टर के पैसे देने वाले एंगल के पीछे का लॉजिक सर के ऊपर से चला गया.  

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3. नाज़ायज़ औलाद के नाम पर इमोशनल फैक्टर दिखाने में हुए फ़ेल

फ़िल्म में पुष्पा के नाज़ायज़ औलाद वाली चीज़ को पूरी मूवी में घसीटा गया. पुष्पा को स्कूल में सरनेम के लिए बेइज्ज़त किया जाना, शादी के समय इस बात का बीच में आना, कमिश्नर का ये टॉपिक लाकर पुष्पा की हिम्मत तोड़ने की कोशिश करना. अब बस भी करो यार. लगता है कि इमोशनल टच के नाम पर डायरेक्टर के पास बचा-कुचा सिर्फ़ यही टॉपिक था. बॉलीवुड के इतिहास में नाज़ायज़ वाला कॉन्सेप्ट कई फ़िल्मों में दर्शाया गया है. ये इमोशन इतना गहरा है जिसे हमने कई मूवीज़ में फ़ील भी किया है. लेकिन फ़िल्म में इस कॉन्सेप्ट के बावजूद वो इमोशन मिसिंग लगा. ऐसा लगा मानो कुछ भी इमोशनल डालना था. माता-रानी का नाम लेकर दिमाग़ में सबसे पहले नाज़ायज़ वाला कॉन्सेप्ट आया और लो स्वाहा डाल दिए मूवी में. इस पर थोड़ा और बारीकी से काम किया जा सकता था. 

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4. विलेन साबित हुए फ़िसड्डी

फ़िल्म में मुख्य विलेन तीन रेड्डी भाई होते हैं, जिनका स्मगलिंग की दुनिया में गज़ब का रौला है. जॉली रेड्डी, जक्का रेड्डी और कोंडा रेड्डी. फ़िल्म की शुरुआत में जिस तरीके से इनका इंट्रो दिया गया. लगा जैसे हीरो और विलेन में टक्कर का मामला है. लेकिन तीनों की स्थिति एकदम पंक्चर टायर की तरह दिखाई दी. छोटा भाई जॉली रेड्डी अय्याश और लड़कीबाज़ दिखाया है, जिसका दिमाग़ी लेवल निल बटा सन्नाटा है. उसका क़िस्सा तो Pushpa ने एक ही फ़ाइट में ख़त्म कर दिया. बीच वाला भाई जक्का रेड्डी बिज़नेस का सारा हिसाब-क़िताब रखता है. आधी फ़िल्म में तो ये लापता दिखा. आख़िर में वो पुष्पा के अंडर काम करता दिखाई दिया. अब आते हैं बड़े भाई कोंडा रेड्डी पर. फ़िल्म के कुछ हिस्सों में इसने विलेन वाला फ़ील दिया, लेकिन कुछ ख़ास डरावना ये भी न दिखा. फ़िल्म का एक अन्य विलेन श्रीनू थोड़ा दमदार नज़र आया. हालांकि, पुष्पा के आगे उसकी भी हवा टाइट दिखी. फ़िल्म में ऐसा कहीं भी नहीं दिखा कि विलेन पुष्पा को मात देने में सक्षम है. 

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5. भंवर शेखावत को क्या उनकी बेइज़्ज़ती करवाने लाए थे?

इंटरवल तक कहानी एकदम मस्त थी. पुष्पा धंधे में बढ़िया कर रहा था. विलेन भी जैसे-तैसे फ़िल्म का समां बांध रहे थे. तब तक फ़हाद फ़ासिल यानी पुलिस इंस्पेक्टर भंवर सिंह शेखावत की एंट्री हुई. ऐसा लगा कि कहानी में फ़िर से जान आ गई. लगा जैसे पुष्पा का खेल ख़त्म. फ़िल्म में भंवर सिंह के टपकने से वक्त, हालात और जज़्बात सब बदल गए. लेकिन बाद में भंवर भी पुष्पा के पैरों की धूल चाटता दिखा. दोनों पक्के यार बन गए. कहानी के अंत में पुष्पा अपनी शादी के दिन भंवर से दुश्मनी मोल ले लेता है. बस अब आगे के लिए पार्ट 2 का इंतज़ार करो. अरे एंडिंग को कुछ तो इंट्रेस्टिंग रख देते. भंवर सिंह का कैरेक्टर काफ़ी कंफ्यूज़िंग लगा. इसे क्यों लाया गया था, वो ख़ुद में एक पहेली है. माना कि उसकी कहानी पार्ट 2 के लिए बचा कर रखी है. लेकिन इस फ़िल्म से लगाई गई दिलचस्प एंडिंग की उम्मीदों पर तो पानी फ़िर चुका है.

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अब सारी आस फ़िल्म के दूसरे पार्ट ‘पुष्पा: द रूल’ से है.