ना तलवार की धार से,
ना गोलियों की बौछार से
बंदा डरता है तो
सिर्फ़ परवर दिगार से
राज कुमार 

ये दमदार डायलॉग सुनते ही चेहरे के सामने एक ऐसे शख़्स का चेहरा उभरकर सामने आता है जो गले में हाथ फेरते हुए शब्दों में सब कुछ कह जाते थे. जी हां हम बात बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता राज कुमार (Raj Kumar) की कर रहे हैं. राज कुमार आज भी अपने स्टाइल और डायलॉग के लिए याद किये जाते हैं. वो हिंदी सिनेमा के एक ऐसे सुपरस्टार थे जिन्होंने अपनी शर्तों पर ज़िंदगी जी.

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बॉलीवुड के लेजेंड्री एक्टर राज कुमार अपने अनोखे अंदाज़ के लिए जाने जाते थे. राज कुमार आज भले ही हमारे बीच न हों, लेकिन उनसे जुड़े ढ़ेरों क़िस्से कहानियां आज भी सुने और सुनाई जाती हैं. राज कुमार को लोग आज भी उनके ज़बरदस्त डायलॉग डिलीवरी और तुनकमिजाजी के लिए जानते हैं. कभी अपने को-एक्टर को थप्पड़ मार देना हो या कभी किसी डायरेक्टर का मज़ाक उड़ाना हो, राज कुमार की तुनकमिजाजी के ऐसे ही क़िस्से इंडस्ट्री में तब काफ़ी मशहूर थे.

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राज कुमार (Raj Kumar) से जुड़ा ऐसा ही एक क़िस्सा आज हम आपको बताने जा रहे हैं जो उन्हें इंडस्ट्री के अन्य कलाकारों से अलग बनाती थी. दरअसल, 70 और 80 के दशक में राज कुमार इंडस्ट्री के इकलौते स्टार हुआ करते थे जिनकी फ़िल्में फ़्लॉप होने के बावजूद वो अपनी फ़ीस बढ़ा लिया करते थे. चलिए जानते हैं वो आख़िर ऐसा क्यों करते थे?

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असल ज़िंदगी में कौन थे राज कुमार

राज कुमार (Raj Kumar) का जन्म 8 अक्टूबर, 1926 को बलूचिस्तान के लोरलाई (पाकिस्तान) में हुआ था. उनका असल नाम कुलभूषण पंडित था. सन 1940 के दशक में मुंबई शिफ़्ट होने के बाद वो मुंबई पुलिस में सब-इंस्पेक्टर बन गये. उन्होंने जेनिफ़र पंडित से शादी की थी, जो एक एंग्लो-इंडियन थीं. जेनिफ़र से उनकी मुलाक़ात फ़्लाइट में हुई थी, जहां वो एयर होस्टेस थीं. राज कुमार और जेनिफ़र के 3 बच्चे हैं. बेटा पुरु राज कुमार अभिनेता हैं. बेटी पाणिनी राज कुमार और वास्तवविता पंडित भी बॉलीवुड फ़िल्मों में नज़र आ चुकी हैं.

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एक्टर बनने के लिए छोड़ी पुलिस की नौकरी

राज कुमार (Raj Kumar) फ़िल्मों में आने से पहले मुंबई पुलिस में सब-इंस्पेक्टर थे. लेकिन एक्टिंग उनका पहला प्यार था. इसलिए फ़िल्मों में आने के लिए अपनी पुलिस ऑफ़िसर की नौकरी छोड़ दी. राज कुमार ने सन 1952 में ‘रंगीली’ फ़िल्म से बॉलीवुड में डेब्यू किया था. इसके बाद उन्होंने ‘मदर इंडिया’, ‘पैग़ाम’, ‘सौदागर’, ‘तिरंगा’, ‘वक़्त’, ‘दिल एक मंदिर’, ‘काजल’, ‘मरते दम तक’, ‘नील कमल’, ‘पाकीजा’, ‘धरम कांटा’ समेत कई बेहतरीन फ़िल्में भी की. राज कुमार की आख़िरी फ़िल्म साल 1995 में आई God And Gun थी.

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आख़िर फ़्लॉप फ़िल्मों के बावजूद क्यों बढ़ाते थे फ़ीस?

राज कुमार (Raj Kumar) के बारे में कहा जाता है कि वो फ़िल्म फ़्लॉप होने के बावजूद अपनी फ़ीस बढ़ा देते थे. राज कुमार ने अपने एक इंटरव्यू में इस सवाल का जवाब अपने अंदाज़ में देते हुए कहा कि, ‘फ़िल्म फ़्लॉप हुई है मैं नहीं, पिक्चर भले ही ना चली हो, लेकिन मैं फ़ेल नहीं हुआ हूं’. यही कारण है कि मैं हर फ़िल्म के बाद अपनी फ़ीस बढ़ा लेता हूं. फिर चाहे फ़िल्म हिट हो या फ़्लॉप’.

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