जॉन अब्राहम की आने वाली फ़िल्म रोमियो अकबर वॉल्टर का ट्रेलर हाल ही में रिलीज़ हुआ है. इस फ़िल्म की कहानी एक RAW एजेंट पर बेस्ड है, जो देश की रक्षा के लिए पाकिस्तान में बस जाता है. चलिए आपको आज उस RAW एजेंट की रीयल स्टोरी भी बता देतें हैं, जिस पर ये फ़िल्म बनाई जा रही है.
इस भारतीय जासूस का नाम है रविंद्र कौशिक उर्फ़ ब्लैक टाइगर. ये 23 साल के ऐसे नौजवान थे जिन्हें RAW ने ख़ुद अपना एजेंट बनने का ऑफ़र दिया था. रविंद्र भारत के सबसे सफल जासूस के तौर पर जाने जाते हैं, जो पाकिस्तानी आर्मी में मेजर के पद तक पहुंचने में कामयाब हुए थे.
थिएटर का था शौक
राजस्थान के श्रीगंगानगर से ताल्लुक रखने वाले रविंद्र को थिएटर का शौक था. थिएटर का शौक ही उन्हें लखनऊ ले आया. यहां उन्हें RAW के एक अधिकारी ने देश के लिए काम करने का ऑफ़र दिया. उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया और दिल्ली में उनकी ट्रेनिंग शुरू हो गई. ट्रेनिंग के दौरान उन्हें उर्दू भाषा और मुस्लिम तौर तरीकों से रहना सिखाया गया.
नबी अहमद के नाम से रहे पाकिस्तान में
1975 में उन्हें पाकिस्तान भेज दिया गया. पाकिस्तान में उनका नाम था नबी अहमद. उनके पाकिस्तान जाने के बाद भारत में उनके नाम पर मौजूद सभी सूबूत और दस्तावेज़ मिटा दिए गए. पाकिस्तान पहुंच कर उन्होंने कराची यूनिवर्सिटी से एलएलबी की. इसके बाद उन्होंने पाकिस्तानी आर्मी में भर्ती होने की परीक्षा दी.
उन्हें आर्मी में रिक्रूट कर लिया गया. बाद में वो अपनी मेहनत के दम तक मेजर के पद तक पहुंचे थे. रविंद्र ने पाकिस्तान में शादी भी की थी. उनकी पत्नी का नाम अमानत था और उनकी एक बेटी भी थी.
भारत भेजी कई खुफ़िया रिपोर्ट्स
पाकिस्तान में रहते हुए रविंद्र ने बहुत सी अहम जानकारियां भारतीय सेना को दी. 1979 से लेकर 1983 के बीच पाकिस्तान ने राजस्थान के रास्ते कई बार भारत पर हमला करने की कोशिश की लेकिन रविंद्र द्वारा समय पर दी गई खूफ़िया रिपोर्ट्स के चलते हमेशा पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी.
इंदिरा गांधी ने दिया था नाम ब्लैक टाइगर
रविंद्र भारत में ब्लैक टाइगर के नाम से जाने जाते थे. कहते हैं कि ये नाम उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दिया था. 1983 में RAW ने उनसे मिलने एक और भारतीय एजेंट इनायत मसीहा को भेजा लेकिन पाकिस्तानी आर्मी ने उसे पकड़ लिया. बाद में मसीहा पाकिस्तानी आर्मी के थर्ड डिग्री टॉर्चर के चलते रविंद्र का नाम उनको बता दिया.
इसके बाद पाकिस्तानी आर्मी ने रविंद्र को पकड़ लिया और उन पर देशद्रोह-जासूसी का मुकदमा चलाया. पाक आर्मी ने जेल में उन्हें काफ़ी यातनाएं दी, लेकिन रविंद्र कभी नहीं टूटे और अपनी ज़बान से RAW के बारे में एक भी शब्द नहीं कहा.
दुखद अंत
1985 में पाकिस्तान में उन्हें जासूसी के आरोप में आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई. इसके बाद उन्हें कई सालों तक पाकिस्तानी जेल में रहना पड़ा. 2001 में टी.बी. और दमे की बीमारी के चलते उनकी मौत हो गई. उन्हें मुल्तान की जेल के पीछे ही दफ़ना दिया गया था.