20वीं सदी की शुरुआत में एक कमाल के म्यूज़िक कंपोज़र का जन्म हुआ, नाम था सलिल चौधरी. उन्हें आम लोगों का कंपोज़र कहा जाता था. वजह थी उनके गानों और संगीत में आम आदमी के दर्द और सपनों की झलक. इसके अलावा वो एक कमाल के स्क्रिप्ट राइटर और कवि भी थे. लोग उन्हें प्यार से सलिल दा कहकर बुलाते थे.

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सलिल चौधरी का जन्म 19 नवंबर को पश्चिम बंगाल के गाज़िपुर में हुआ था. बंगाल के लोगों में संगीत को लेकर एक अलग दबदबा होता था. सलिल भी उसी दबदबे को कायम रखने वाले संगीतकार थे. उनके गाने लोगों के दिलों को छू जाते थे. ‘ज़िन्दगी कैसी है पहेली’, ‘ए मेरे प्यारे वतन’, ‘जाने मन जाने मन तेरे दो नयन’, ‘हाल चाल ठीक ठाक है’, ‘कोई होता जिसको अपना’, ‘तस्वीर तेरी दिल में’, ‘न जाने क्यों’, ‘मैंने तेरे लिए ही’, ‘कहीं दूर जब’, जैसे कई क्लासिक गाने भारतीय सिनेमा को भेंट किए हैं सलिल दा ने.

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आज उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर हम आपके लिए दिलीप कुमार और उनसे जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा लेकर आए हैं.

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ये वो क़िस्सा है जिसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं. क़िस्सा यूं है कि एक बार सलिल चौधरी ने लेज़ेंड्री एक्टर दिलीप कुमार से भी गाना गवाया था. इस गीत को गाने से पहले दिलीप कुमार को इसके लिए ब्रांडी के तीन पेग भी लगाने पड़े थे. इस क़िस्से का ज़िक्र यतींद्र मिश्रा द्वारा लिखी गई बुक ‘लता सुर गाथा’ में ख़ुद स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने बयां किया है. 

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बात उन दिनों की है जब फ़िल्म ‘मुसाफ़िर’ के लिए एक गाना रिकॉर्ड किया जाना था. इसके लिए सलिल दा ने दिलीप कुमार को चुना. इसे याद करते हुए लता जी कहती हैं- ‘जब भी दिलीप साहब गाना शुरू करते थे, तो उनकी आंखें बंद हो जाती थीं. वो इससे बेख़बर हो जाते की कब रुकना है और कब गाना है.’

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‘मुझे याद है इस गाने को गाने के लिए उन्हें ब्रांडी का सहारा लेना पड़ा था. वो आंखें बंद कर जोर-जोर से आलाप गाते थे. उनसे तालमेल बिठाकर गाना बहुत मुश्किल था. सलिल दा न होते मैं गाना कंप्लीट ही न कर पाती. सलील दा इशारा करते तब मैं गाना शुरू करती. हमने कैसे ये गाना रिकॉर्ड किया था, हम ही जानते हैं.’

सलिल दा को भारतीय सिने जगत की दुनिया का बुद्धिजीवी संगीतकार भी कहा जाता है.

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