पिछले कुछ समय से निर्देशक अनुराग कश्यप फिल्में बनाने से ज़्यादा उन्हें रिलीज़ करवाने को लेकर संघर्ष कर रहे हैं. ‘उड़ता पंजाब’ फिल्म से शुरु हुआ ये सफर अब फिल्म ‘पद्मावती’ तक जा पहुंचा है. हाल ही में फिल्म पद्मावती के सेट्स पर फिल्मकार संजय लीला भंसाली के साथ हाथापाई करने वाली करणी सेना की पूरे बॉलीवुड ने जमकर आलोचना की है. अनुराग ने तो एक कदम आगे बढ़ते हुए इसे हिंदू आतंकवाद का नमूना तक करार दे दिया.

गौरतलब है कि संजय लीला भंसाली राजस्थान के जयगढ़ फोर्ट में अपनी फिल्म ‘पद्मावती’ की शूटिंग कर रहे थे. तभी वहां राजपूत करणी सेना वाले पहुंच गए, भंसाली के साथ हाथापाई की और साथ ही सेट पर तोड़-फोड़ भी की. करणी सेना वालों का कहना है इस फिल्म में इतिहास के तथ्यों के साथ छेड़छाड़ की गई है.

Indian Express

 

Tollywood

 

करणी सेना का दावा था कि रानी पद्मावती को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है. जिस रानी ने देश और कुल की मर्यादा के लिए 16 हज़ार रानियों के साथ जौहर कर लिया, उसे इस फिल्म में खिलजी की प्रेमिका के रूप में दिखाना आपत्तिजनक है. इसके बाद संजय लीला भंसाली को शूटिंग रोक कर पुलिस बुलानी पड़ी. महज़ एक अफ़वाह पर यकीन कर एक निर्देशक के साथ मारपीट करना कहां तक जायज़ था? वहीं अनुराग ने भी एक ट्वीट शेयर कर ये बताने की कोशिश की थी कि भंसाली रानी पद्मावती और उनसे जुड़े इतिहास के बारे में क्या विचार रखते हैं.

गौरतलब है कि रानी पद्मावती चित्तौड़गढ़ के राजा रतन सिंह की पत्नी थीं. कई जगह उनका नाम पद्मिनी भी मिलता है. कहा जाता है कि अलाउद्दीन खिलजी पद्मावती से प्रेम करता था. इसके लिए उसने चित्तौड़गढ़ पर चढ़ाई कर दी थी. लेकिन पद्मावती ने जौहर कर लिया था. इस कहानी पर ही ज़्यादा विश्वास किया जाता है.

quoraacdn

 

ये कहानी पूरी तरह से सही हो, ऐसा नहीं कहा जा सकता. अलाउद्दीन खिलजी के चित्तौड़गढ़ अभियान का लिखा एकमात्र स्तोत्र अमीर ख़ुसरो का ‘खज़ा-इन-उल-फुतूह’ है. इसमें इसे बस एक सैनिक अभियान की तरह दिखाया गया है. तब राजा रतन सिंह नए-नए मेवाड़ की गद्दी पर बैठे थे. खिलजी इसे जीतना चाहता था. ख़ुसरो ने किसी भी रानी पद्मिनी का कोई ज़िक्र नहीं किया है. कुछ लोग मलिक मोहम्मद जायसी की ‘पद्मावत’ को इस कहानी का सोर्स मानते हैं, लेकिन जायसी ने पद्मिनी को श्री लंका के एक राजा की बेटी बताया है.

Indian Express

 

इससे पहले भी संजय लीला भंसाली ने फिल्म बाजीराव मस्तानी में क्रिएटिव फ्रीडम लेते हुए हांडी और कमर पर झाड़ू बंधवाने वाले पेशवा बाजीराव को अपनी फ़िल्म में एक महान व्यक्ति और प्यार की मिसाल के तौर पर पेश किया था, लेकिन बहुजन समाज को इस फिल्म से जो भी आपत्ति थी, वह उन्होंने सभ्य तरीके से आलोचना करते हुए दर्ज कराई थी. भंसाली ने भी इस आलोचना का सनद लेते हुए साफ किया था कि फिल्म के कुछ पात्र इतिहास से प्रेरित हैं और फिल्म का ज्यादातर हिस्सा काल्पनिक है.

दरअसल हम एक ऐसे दौर से गुज़र रहे हैं जहां हर बात, हर फिल्म किसी न किसी की भावनाएं आहत करने का ज़रिया बनती जा रही हैं. पाकिस्तानी कलाकार, फ़वाद खान की मौजूदगी की वजह से करण जौहर को लोगों के सामने आकर गिड़गिड़ाना पड़ा, फिल्म ‘ए दिल है मुश्किल’ की शूटिंग के समय पीएम मोदी भी पाक के दौरे पर थे, लेकिन अनुराग कश्यप ने फिल्म पर प्रतिबंध लगाने और उनकी पीएम की यात्रा पर सवाल उठाए तो खुद अनुराग को ही कई ट्रोल्स का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला.

ndtv

 

अपनी फिल्म रईस के सिलसिले में शाहरुख़ को भी राज ठाकरे से जाकर इजाज़त लेनी पड़ी. इसके बावजूद बीजेपी के नेता कैलाश विजयवर्गीय ने खुलकर शाहरुख़ खान की फिल्म को बॉयकॉट करने और ऋतिक रोशन की फिल्म को देखने की अपील की थी.

अनुराग कश्यप और ऐसे ही फिल्मकारों की निराशा का एक कारण यह भी है कि ऐसे ज़्यादातर मामलों में प्रशासन हुडदंगियों पर कोई कार्यवाई नहीं करता है. प्रशासन की शह का ही फायदा उठाते हुए लोग हिंसक तरीकों को अपनाते हैं. फिल्म के कटेंट से आपत्ति है तो उसके लिए सेंसर बोर्ड है और अगर आप सेंसर के फैसले से भी खुश नहीं हैं, तो फिल्मकार को कोर्ट में घसीटा जा सकता है. लेकिन एक सभ्य समाज में हाथापाई द्वारा अपनी बात मनवाने की कोशिश करना आखिर कहां तक जायज़ है?

फिल्म में अलाउद्दीन खिलजी का रोल कर रहे रणवीर सिंह और पद्मावती का रोल कर रही दीपिका पादुकोण ने जो ट्वीट किए हैं, उनको पढ़ कर समझा जा सकता है कि संजय भंसाली की कहानी को जाने बिना ही लोग महज़ कयासों के सहारे ही हाथापाई पर उतारू हो गए.

इतिहास की अलग-अलग व्याख्याएं होती हैं और एक लोकतांत्रिक समाज में कलाकार अपनी क्रिएटिवटी द्वारा प्रयोग के लिए आज़ाद है. किसी भी चीज़ से समस्या होने पर उसका उपाय हिंसा तो बिल्कुल नहीं हो सकता और विरोध और प्रतिरोध के अलग तरीकों द्वारा अपनी बात रखी जा सकती है. करणी सेना राजस्थान के ज्वलंत मुद्दों पर कितना विरोध जताती है और इतिहास के अलावा वर्तमान से इस सेना का कोई सरोकार क्यों नहीं है, ये जानना भी काफी दिलचस्प होगा.