‘दंगल’ और ‘बधाई हो’ जैसी सुपहिट फ़िल्मों में काम कर चुकीं एक्ट्रेस सान्या मल्होत्रा के लिए बॉलीवुड में कदम रखना इतना आसान नहीं था. उन्होंने अपना पहला रोल पाने के लिए काफ़ी संघर्ष किया है. अपने स्ट्रग्लिंग डेज़ की कहानी सान्या ने हाल ही में ह्यूमन्स ऑफ़ बॉम्बे के साथ शेयर की है.
बचपन से था डांस करने का शौक
मैं उन बच्चों में से थी, जिसे शादियों में डांस करने के लिए किसी को कहने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी. मेरे पेरेंट्स भी मुझे इसीलिए शादियों में ले जाते थे, ताकी मैं खुलकर डांस कर सकूं. मैंने स्कूल में भी बहुत से कॉम्पिटिशन्स में डांस किया था.
एक्टर बनने का देखती थी सपना
जब मैं कॉलेज में आई तो मैं कोरियोग्राफ़ी सोसाइटी का हिस्सा बन गई. हम दिन में 8 घंटे डांस करते थे. ये मेरा पैशन बन चुका था, लेकिन अंदर ही अंदर मेरे मन में एक्टिंग करने का सपना भी पल रहा था.
DID में किया था पार्टिसिपेट
मैंने कभी अपने घरवालों को भी इसके बारे में नहीं बताया, क्योंकि मुझे लगता था कि सभी मेरा मज़ाक उड़ाएंगे. आख़िरकार ये एक बहुत बड़ा सपना था. पर मैंने सोचा शायद मैं डांस के माध्यम से एक्टिंग कर पाऊं. इसलिए मैंने डांस इंडिया डांस शो में पार्टिसिपेट किया.
मैं टॉप 100 में सेलेक्ट भी हो गई थी, लेकिन उससे आगे के राउंड में मुझे रिजेक्ट कर दिया गया. तब मुझे अपने ऊपर थोड़ा डाउट हुआ. मुझे लगा शायद मैं डांस में पफ़ॉर्म करने के लिए बनीं ही नहीं हूं इसलिए मैं मुंबई आ गई. यहां मैंने एक्टिंग के लिए ऑडिशन देना शुरू कर दिया.
घरवालों ने दिया पूरा सपोर्ट
बॉम्बे पहुंचने से पहले मैंने अपने पिता को अपने इस सपने के बारे में बताया. मुझे ये जानकर हैरानी हुई कि मेरे पैरेंट्स ने मुझे डांटने की जगह, मेरा पूरा सपोर्ट किया. मगर मायानगरी की ये राह इतनी आसान न थी.
6 रूमेट्स के साथ रहती थीं
मैं एक अपार्टमेंट में 6 रूममेट्स के साथ रहती थी. शुरू-शुरू के दिन काफ़ी इरिटेटिंग थे. वो लोग काम पर जाते थे और मैं घर में बैठी रहती थी. कभी-कभी सब कुछ छोड़कर घर जाने का मन करने लगता था.
विज्ञापन से हुई शुरुआत
मगर मैंने हार नहीं मानी और ऑडिशन देती रही. फिर ये समझ आने लगा कि इस इंडस्ट्री में कैसे सर्वाइव करना है. मैंने कास्टिंग डायरेक्टर्स के संपर्क में रहना शुरू कर दिया. इस तरह मुझे कई विज्ञापनों में काम करने का मौका मिला. हां इस बीच काम मिलने में काफ़ी समय लग जाता था और मुझे अपने घटते बैंक बैलेंस की चिंता सताने लगती थी लेकिन मैंने ठान लिया था कि इस बार मैं हार नहीं मानूंगी और मैदान में डटी रही.
दंगल के लिए 30 लड़कियों ने दिया था ऑडिशन
एक साल तो मैंने 10 विज्ञापनों में काम किया था. इसने मेरा आत्मविश्वास बढ़ाया और मुझे डटे रहने का हौसला दिया. इसके कुछ महीनों बाद मुझे अपनी पहली फ़िल्म दंगल के लिए ऑडिशन देना का मौका मिला. मुझे याद है कि ऑडिशन के लिए तकरीबन 30 लड़कियां आई थीं. मैं बहुत नर्वस थी, लेकिन मुझे अंदर ही अंदर विश्वास था कि ये रोल मुझे ही मिलेगा.
मुझे याद है कि मैं किसी से कह रही थी कि मैं पक्का इस फ़िल्म में हूं. और ऐसा हुआ भी क्योंकि मुझे ख़ुद पर इतना विश्वास था. मुझे ये फ़िल्म मिल गई.
आज भी सीख रही हूं
मैं आज भी अपने संघर्ष के दिनों को याद करती हूं. मैं बिग स्क्रीन पर आना डिज़र्व करती थी. इसलिए आज मैं यहां हूं. अभी तक जितने भी रोल मैंने किए, उनसे कुछ न कुछ सीखा है और आज भी सीख रही हूं. मुझे अब अपने ऊपर कोई शक नहीं है. कोई भी परफ़ेक्ट नहीं होता, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आपको कोशिश करनी छोड़ देनी चाहिए.
ये तो बस शुरुआत है, मुझे अभी और आगे जाना है. अब मैंने अपने डांसिंग गलव्ज़ पहन लिये हैं और मैं पूरी तरह तैयार हूं.
ऐसे ही आगे बढ़ती रहो!