रेप… ये शब्द किसी भी औरत के लिए सबसे बड़ा डर है. हमारे समाज में ‘इज़्ज़त नहीं तो कुछ नहीं’ वाली सोच बहुत गहरी बैठ गई है. औरत की इज़्ज़त हौआ बन चुकी है. रेप के बाद कोई पीड़िता की अगर जान बच जाती है तो लोग यहां तक कह देते हैं कि ‘इससे अच्छा तो मर जाती’. रेप के बाद Survivor अगर जीना चाहे भी तो, समाज उसे चैन से जीने नहीं देता.
भारत में रेप बेहद आम घटना हो गई है. Firstpost की रिपोर्ट के मुताबिक, 2016 में भारत में हर घंटे 4 रेप हुए थे. हंसी आती है मुझे जब बड़े-बड़े पदों पर तशरीफ़ टिकाये हुए सज्जन भी महिलाओं के कपड़ों को रेप का कारण बता देते हैं.
भारत में Marital Rape भी ग़ैरक़ानूनी नहीं है. कुछ लोगों का तो मानना है कि ये पश्चिमी सभ्यता का चोंचला है. ज़्यादा जानकारी के लिए ये वीडियो देख सकते हो…
रेप को इतना नॉर्मल बनाने के लिए हम सभी कहीं न कहीं ज़िम्मेदार हैं. जाने-अनजाने छेड़खानी और कमेंटबाज़ी को हमने ‘ऐसा ही होता है’ कैटगरी में डाल दिया है. न सिर्फ़ हम और आप, बल्कि हमारे देश में बनने वाली फ़िल्मों का भी इसमें पूरा योगदान है.
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उदाहरण के तौर ये गीत, ‘अच्छी बातें कर ली बहुत, अब करूंगा तेरे साथ गंदी बात’. हमने कई बार म्यूज़िक का मज़ा लेते हुए इस गाने पर ठुमके लगाये हैं. पर इस गीत के ज़रिये कितनी ग़लत बात कही गई है, कभी सोचा है?
पत्रकारिता की क्लास में प्रोफ़ेसर ने पढ़ाया था, ‘फ़िल्में समाज का आईना होती हैं’, समाज में जो घटता है, उसे जस का तस दिखाने का ज़िम्मा फ़िल्मकारों पर होता है. हम रेस-3, सिंघम, धूम, जुड़वा जैसी फ़िल्मों की बात नहीं कर रहे. ये सिर्फ़ मनोरंजन के मकसद से बनाई जाती हैं, समाज का इससे कुछ भला नहीं होता.
हम कई बार बॉलीवुड पर सवाल दाग देते हैं कि ‘असल मुद्दों’ पर फ़िल्में क्यों नहीं बनाते? लेकिन Real Life Issues पर फ़िल्में बनती हैं, पर उन्हें दर्शक नहीं मिलते.
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बॉलीवुड में अभिनेत्रियों के प्रति होने वाले भेदभाव पर अब लोग खुलकर बात कर रहे हैं. पर हक़ीक़त यही है कि बॉलीवुड बरसों से अपनी अभिनेत्रियों के प्रति भेदभाव करता आया है. चाहे वो एक जैसे काम करने के लिए दी गई पगार हो या फिर अभिनेत्रियों पर आधारित फ़िल्में हों.
इन पर फिर कभी बात करेंगे. आज बात करते हैं बॉलीवुड में रेप संस्कृति या Rape Culture के बारे में.
Rape Culture में औरतों के अंग प्रदर्शन से लेकर, उन्हें अलग-अलग कारणों से बदनाम करने तक, सब कुछ आ जाता है. बात करते हैं कुछ फ़िल्मों की जिनमें रेप और छेड़छाड़ को बहुत ही ग़लत तरीके से दिखाया गया.
1. रेपिस्ट से शादी
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रानी मुखर्जी की पहली फ़िल्म थी, ‘राजा की आयेगी बारात’. फ़िल्म में अमीर पिता का बेटा, जवानी के नशे में चूर, हीरोईन(रानी) का रेप करता है और मामला कोर्ट पहुंचता है. कोर्ट में रानी अपने आने वाली ज़िन्दगी का हवाला देते हुए इंसाफ़ की गुहार लगाती है. जज साहब रेपिस्ट को रानी से शादी करने का आदेश देते हैं. फ़िल्म के आखिर में पति-पत्नी(रेपिस्ट-सर्वाइवर) में प्रेम भी दिखाया जाता है.
मुझे Rapist और Survivor के संबंध को इस तरह से दिखाये जाने से आपत्ति है क्योंकि असल ज़िन्दगी में ऐसा होने की संभावना 0 भी नहीं है. अगर थोपा न जाये तो शायद ही कोई औरत अपने रेपिस्ट से प्यार करेगी.
2. 3 Idiots का वो डायलॉग, जिस पर सभी ने ख़ूब ठहाके लगाये
Silencer के भाषण में रैंचो कुछ शब्दों को बदल देता है. पूरा सीन काफ़ी Funny हो जाता है. Audience में मौजूद लड़कियां भी हंसती है. ‘बलात्कार’ शब्द को मज़ाक के तौर पर इस्तेमाल करना गलत है, लेकिन आमिर ने अपनी फ़िल्म में किया. और सबने मज़े भी लिए.
आमिर ने ‘सत्यमेव जयते’ शो में रेप पर भी एक एपिसोड निकाला था. इस तरह का दोगला रवैया भी ग़लत है.
3. Item नंबर्स
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Item नंबर्स हिन्दी फ़िल्मों में पहले भी होते थे. ‘आइये मेहरबान, बैठिये जान-ए-जां’, ‘कांटा लगा, हाय लगा’ ये पुराने Item Numbers ही हैं. आज ‘शीला की जवानी’, ‘लैला तेरी ले ले गी’ जैसे गाने बनाये जाते हैं. माना कि वो ज़माना अलग था, ये अलग है, पर लोग तो वही हैं न?
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जिस तरह से Item Numbers अब फ़िल्माये जाते हैं, वो बेहद शर्मनाक है. महिलायें सिर्फ़ जिस्म की नुमाइश के लिए नहीं होती, ये बात बॉलीवुड को समझनी होगी.
4. ज़बरदस्ती के Kiss
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‘कमबख़्त इश़्क’ का वो सीन जब अक्षय कुमार, करीना को ज़बरदस्ती, बिना करीना की इजाज़त किस करते हैं. क्या औरत को चुप करवाने का ये तरीका, On Screen दिखाना सही है? आप किसी महिला से बहस करिये, नहीं कर सकते तो चुप हो जाइये, ज़बरदस्ती Kiss उसे चुप करवाने का तरीका बिल्कुल नहीं है.
‘इश्क़’ में आमिर ख़ान भी जूही को ज़बरदस्ती किस करते हैं. फिर जूही भी बदले में उसे किस करती है. इस तरह एक-दूसरे को चुप करवाना अगर इतना सही होता तो देश के नेतागण काफ़ी पहले ये काम शुरू कर चुके होते.
5. Stalking काफ़ी Cool है
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‘कुछ कुछ होता है’ से लेकर ‘रांझणा’ तक Stalking को बहुत Cool दिखा दिया गया है. ऑस्ट्रेलिया में एक व्यक्ति ने तो कोर्ट तक में ये कह दिया था कि बॉलीवुड ने उसे Stalking के लिए प्रेरित किया है.
किसी लड़की को Approach करना है, तो उससे बात भी की जाती है. बॉलीवुड की फ़िल्मों को ये बेसिक फ़ैक्ट समझ नहीं आता. अक़सर हिन्दी फ़िल्मों में हीरो, हीरोईन को हर जगह Follow करते दिखाया जाता है.
6. संस्कारी और बिगड़ी हुई लड़की
‘Cocktail’ में हमें दो तरह की लड़कियां देखने को मिलती हैं. Veronica(दीपिका) अपने हिसाब से ज़िन्दगी जीती है, वो Alcohol और लड़कों में बहुत ज़्यादा Involved है. वो अपने Comfort के अनुसार, पैर फैलाकर बैठती है. तब बमन ईरानी उसे ढंग से बैठने को कहते हैं. इन सबके कारण Veronica ‘बिगड़ी या बुरी लड़की’ है
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दूसरी तरफ़ है, मीरा(डायना पेंटी) जो खाना बनाना, घर साफ़ करना सब जानती है, पूजा-पाठ करती है, यानि वो ‘अच्छी लड़की है’.
ये जो फ़र्क अक़सर बॉलीवुड की फ़िल्मों में दिखाया जाता है, लोगों की मानसिकता पर गहरा प्रभाव डालता है. इंसान की पहचान उसके दिल से होनी चाहिए, आदतों से या Lifestyle से नहीं.
बॉलीवुड! हम पहले से ही समाज में काफ़ी नॉर्मल हो चुके रेप और छेड़छाड़ को नॉट नॉर्मल करने की कोशिश कर रहे हैं. इसमें थोड़ी हेल्प कर दो, तो सही रहेगा. वैसे भी मनोरंजन के नाम पर अजीब-ओ-ग़रीब फ़िल्में तो रिलीज़ करते ही हो, कुछ हक़ीक़त ही दिखा दो.
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