पिछले कुछ सालों में ख़बरों से गायब रहने वाले सेंसर बोर्ड ने अचानक ही सुर्ख़ियां बटोरी हैं. बात-बात पर फ़िल्म में इतने कट लगाना कि फ़िल्म, फ़िल्म न रह कर एक शॉर्ट फ़िल्म बन कर रह जाती है. कुछ ऐसी ही ख़बरों की वजह सेंसर बोर्ड ने अपनी जगह उन लोगों के बीच भी बना ली, जिन्हें इससे शायद ही कोई फ़र्क पड़ता हो.

अगर आप सोचते हैं कि पिछले जमाना ही ठीक था, जब फ़िल्में बिना किसी कट के पास हो जाया करती थीं, तो अब उस ज़माने को याद करना छोड़ दीजिये. 286 हफ़्तों तक सिनेमघर की शान रही ‘शोले’ को भी सेंसर बोर्ड की वजह से अपना क्लाइमेक्स यानि लास्ट सीन बदलना पड़ा था.

दरअसल फ़िल्म के ओरिजनल कॉन्सेप्ट के मुताबिक, ठाकुर साहब को फ़िल्म के आखिर में गब्बर को मारना होता है, जबकि फ़िल्म में पुलिस गब्बर को पकड़ कर ले जाती है. 

हाल ही में फ़िल्म के डायरेक्टर रमेश सिप्पी ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए गए अपने इंटरव्यू में कहा कि ‘हमने फ़िल्म का एन्ड भी शूट कर लिया था, पर सेंसर बोर्ड का मानना था कि जब ठाकुर के हाथ ही नहीं है, तो वो कैसे गब्बर को मार सकता है? इसके साथ ही उन्हें फ़िल्म में ज़्यादा मार-धार हिंसा लग रही थी, इसलिए मुझे भी इसका क्लाइमेक्स बदलना पड़ा, जिसे हमने दोबारा शूट किया. मैं ख़ुद इससे ख़ुश नहीं था, पर न चाहने के बावजूद मुझे क्लाइमेक्स बदलना पड़ा.’

इस वीडियो में आप भी फ़िल्म का ओरिजनल क्लाइमेक्स में देख सकते हैं, जिसमें ठाकुर साहब ने गब्बर को नाकों चने चबवा दिए थे.