‘श्याम बेनेगल’ 

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बॉलीवुड का वो नाम, जिन्होंने लीक से हट कर फ़िल्में बनाने का साहस जुटाया और ऐसे विषयों पर फ़िल्में बनाई, जिन पर कोई शायद ही कोई डायरेक्टर हाथ लगाने की सोचेगा. इसे श्याम बेनेगल का जादू ही कहेंगे, जो उनकी हर फ़िल्म बिना किसी ताम-झाम के दर्शकों का दिल जीत ले जाती थी. कई शानदार फ़िल्मों के इस निर्देशक ने बॉलीवुड के इतिहास में एक ऐसी फ़िल्म बनाई, जिसने ख़ुद में एक नया इतिहास रच दिया.  

‘मंथन’ 

ये वही फ़िल्म है जिसका डायरेक्शन तो श्याम बेनेगल ने किया, पर निर्माता थे गुजरात के 500,000 किसान! हांलाकि, जो लोग अब तक इस बात से अंजान थे, उनके लिये ये बात चौंकने वाली हो सकती है. इसके अलावा ये भी सच है कि डॉ. कुरियन की ‘श्वेत क्रान्ति’ पर बनी ‘मंथन’, प्रदर्शित होने वाली दुनिया की पहली ऐसी फ़िल्म थी, जिसके इतने सारे प्रोड्यूसर थे.  

कहां से हुई शुरुआत? 

कहा जाता है कि देश की आज़ादी के बाद स्वतंत्रता सेनानी, त्रिभुवनदास पटेल गुजरात के खेड़ा ज़िले के किसानों के साथ काम करते थे. यहीं से उन्हें किसानों का साथ मिला और भारत में सहकारी समितियों की शुरुआत हो गई. त्रिभुवनदास पटेल के इस अभियान का असर डॉ.वर्गीज़ कुरियन पर हुआ, जो कि 1949 में अमेरिका से स्नातक करके भारत लौटे थे और यहीं से हुआ श्वेत क्रांति का जन्म.  

कुरियन ने काफ़ी अच्छे से सहकारी समिति की ज़िम्मेदारी संभाली, जिसके बाद 1955 तक वो एशिया की सबसे डेयरी बन गई. ये डेयरी आज ‘अमूल’ के नाम से दुनियाभर में लोकप्रिय है. डॉ. कुरियन के सपने काफ़ी बड़े थे, इसलिये देशभर में इसे प्रसिद्ध करने के लिये उन्होंने 1970 में ऑपरेशन फ़्लड का मोर्चा खोला, जिसके बाद दुनियाभर में हिंदुस्तान दूध का सबसे बड़ा उत्पादक बन सबके सामने आया.  

कुरियन और डायरेक्टर की मुलाक़ात इस बड़ी सफ़लता के बाद डॉ. कुरियन ने इस पर डाक्यूमेंट्री बनाने के लिये श्याम बेनेगल से संपर्क किया, ताकि फ़िल्म से देश-दुनिया के तमाम किसानों को प्रेरित किया जा सके. इस मुलाक़ात के बाद डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म बनाने के लिये बेनेगल ने गुजरात का कोना-कोना देख मारा और इस दौरान उन्होंने श्वेत क्रान्ति की छोटी-छोटी चीज़ों को भी काफ़ी नज़दीक से जाना.   

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बेनेगल साहब ने ऑपरेशन फ़्लड पर बहुत सी डॉक्यूमेंट्रीज़ बनाई, लेकिन ऐसा करके वो ख़ुद ख़ुश नहीं थे. क्योंकि वो एक ऐसी फ़िल्म बनाना चाहते थे, जिसकी चर्चा देशभर में हो, लेकिन इसके साथ ही वो ये भी सोच रहे थे कि भला कोई इस तरह की फ़िल्म के लिये पैसे क्यों लगाएगा. हांलाकि, उन्होंने इस पर डॉ. कुरियन से बात की.. बेनेगल साहब की बात सुनने के बाद डॉ. कुरियन से पूछा कि फ़ीचर फ़िल्म बनाने के लिये कितने पैसे चाहिये होंगे, तो डायरेक्टर ने जवाब देते हुए कहा यही करीब 10-12 लाख.  

किसानों की मदद से साकार हुआ सपना!

श्याम बेनेगल की राय जानने के बाद डॉ. कुरियन सभी सहकारी समितियों को मैसेज भिजवाते हुए कहा कि सुबह किसानों से विनती करें कि वो सिर्फ़ आज भर दूध 8 रुपये की जगह 6 रुपये में दें, ताकि 2-2 रुपये से सभी किसानों पर पिक्चर बनाई जा सके. उस समय सहकारी समिति से करीब 5 लाख से ज़्यादा किसान जुड़ चुके थे.  

सभी किसानों ने इस मुद्दे पर डॉ. कुरियन का साथ दिया और इस तरीके से 500,000 किसान ‘मंथन’ के निर्माता बन दुनिया के सामने आये. यही नहीं, फ़िल्म रिलीज़ वाले दिन गांव-गांव से ट्रक भर के किसान सिनेमा हॉल तक पहुंचे. 1976 में ‘मंथन’ को राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार भी दिया गया. इसके साथ ही आज इसकी गिनती भारत की सर्वश्रेष्ट फ़िल्मों में होती है.