भाईसाब! संस्कृत बड़ी ही क्यूट लैंग्वेज है. इत्ती क्यूट की उसने हम जैसे लोगों को कभी मुंह ही न लगाया. ग़लती से हमसे कोई संस्कृत के बारे में पूछ बैठे तो ‘अयम्, यूयम्, मय्यम्’ कहकर खींसे निपोर देते हैं. इसका मतलब मत पूछिएगा काहे कि ये शोध का विषय है.   

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सवाल ये है कि आजकल जिस भाषा में बात नहीं की जाती है, उस पर बात क्यों हो रही. दरअसल, ट्विटर पर भसड़ मचाने वालों की कोई कमी नहीं है. यहां संस्कृत और उर्दू के बीच ज़बरदस्ती का लफ़ड़ा पैदा करने की कोशिश होती रहती है.   

हाल ही में भारतीय जनता पार्टी के नेता संबित पात्रा ने देहरादून स्टेशन के साइन बोर्ड की एक तस्वीर शेयर की, जिसमें देहरादून को संस्कृत में देहरादूनम् लिखा हुआ है. साइनबोर्ड पर उर्दू को छोड़कर हिंदी और अंग्रेज़ी में देहरादून लिखा हुआ दिख रहा है. हालांकि उनके दावे को रेलवे अधिकारियों ने ख़ारिज कर दिया.  

लेकिन सोशल मीडिया ज़ोराबाई की महफ़िल से कम थोड़े ही है. यहां प्रोग्राम हुज़ूर की मर्ज़ी पर शूरू ज़रूर होता है, लेकिन ख़त्म ज़ोराबाई के घुंघरू टूटने के बाद ही होता है. तो बस एक पत्रकार महोदय ने बुझ रही चिंगारी में फूंक मार दी और फिर जो मस्त आग लगी है कि मज़ा ही आ गया.  

दरअसल, भाई ने 1975 में आई ‘शोले’ मूवी का संस्कारी वर्ज़न ट्विटर पर शेयर कर दिया, वो भी संस्कृत में. अमा सच कह रिया हूं भाई. एकदम विद्या रानी क़सम. पहले हमें भी यक़ीन नहीं हुआ था, लेकिन ये वीडियो बहुत ग़ज़ब है बे. ये देखो…  

अब इस वीडियो को जो भी देख रहा वो मारे खुशी के गदगदाया जा रहा है. भयंकर लोटपोट मची है. एक से बढ़कर एक रिएक्शन्स आ रहे हैं.  

चलो वीडियो और रिएक्शन तो ठीक हैं, लेकिन यार मन में आज भी एक बात बहुत चुभती है. अबे ये संस्कृत वाली टीचर इतना मारती काहे हैं बे?