भूल जाओ आशुतोष! ये लगान भरने और क्रिकेट खेलने वाले आइडिया में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है. एक दोस्त के तौर पर मैं तुम्हें यही सलाह दूंगा कि तुम इस पर समय खराब मत करो. तुमने पहले भी दो फिल्में बनाईं और दोनों ही नहीं चलीं. इस बार तुम्हें कोई सुरक्षित या जो ट्रेंड मे है, वैसी फ़िल्में करनी चाहिए. ये कैसा आइडिया ले आए तुम ब्रिटिश राज के गांववाले और क्रिकेट? किसी और प्रोड्यूसर को सुना भी मत देना इसे.’
30 जुलाई 1996 को आमिर खान ने अपने दोस्त आशुतोष गोवारिकर को ये बात कही थी. दरअसल उनकी इससे पहले आई दोनों फ़िल्में, ‘पहला नशा’ और ‘बाज़ी’ पिट चुकी थी. आमिर खान के मुंह से ये सुनकर आशुतोष गोवारिकर पर क्या बीती होगी, इसका आप अंदाज़ा ही लगा सकते हैं. 1 जनवरी 1997 को उन्होंने फिर से आमिर खान से मिलने के लिए समय मांगा. इन पांच महीनों में दोनों की कोई बात नहीं हुई थी.

आमिर को जब पता चला कि आशुतोष एक बार फिर ‘लगान’ की स्क्रिप्ट के साथ पहुंचे थे, तो उन्होंने स्क्रिप्ट सुनने से साफ़ मना कर दिया. लेकिन आशुतोष चूंकि दोस्त थे, तो उन्होंने इसके लिए समय निकाला. कहानी सुनने के दौरान आमिर को एहसास हो चला था कि ये कुछ वाकई अद्भुत है. वे इस दौरान हंसे, रोएं और कई तरह के इमोशंस से भर उठे थे. उन्होंने अपना फ़ैसला बदल लिया.
लेकिन लगान एक जोखिम भरी फ़िल्म थी. आमिर को लगान पसंद तो आई, लेकिन इतने बड़े स्केल पर ऐसी जोख़िम भरी और चुनौतीपूर्ण फ़िल्म के लिए कोई प्रो़ड्यूसर नहीं मिल रहा था. आशुतोष इस दौरान शाहरुख खान के पास भी पहुंचे, लेकिन बात एक बार फिर फ़िल्म प्रोडक्शन के चलते अटक गई. आमिर खान के पिता एक कामयाब प्रोड्यूसर थे लेकिन आमिर ने कसम खाई थी कि वे कभी ज़िंदगी में प्रोड्यूसर नहीं बनेंगे. इस फ़िल्म के लिए उन्होंने प्रो़ड्यूसर बनने की ठानी और इस तरह लगान का जन्म हुआ था.

3 घंटे 42 मिनट की ये फ़िल्म अमेरिका, कनाडा, सीरिया, दक्षिण कोरिया, नॉर्वे, अफ़गानिस्तान, स्विज़रलैंड के फ़िल्म फ़ेस्टिवल्स का हिस्सा होते हुए प्रतिष्ठित ऑस्कर पुरस्कारों तक का सफ़र तय कर चुकी है. अपने कथा-विन्यास, अद्भुत सिनेमाटोग्राफ़ी और रियल लाइफ़ लोकेशन पर शूट के चलते ही लगान को बॉलीवुड की सबसे Iconic फ़िल्म के रूप में भी इसे शुमार किया जाता है.

पाकिस्तान से महज 70 किलोमीटर दूर होने की वजह से भुज नाम का क्षेत्र सुरक्षा के हिसाब से संवेदनशील था और इसी जगह बॉलीवुड की उस समय की सबसे बड़ी बजट फ़िल्म की शूटिंग को फ़िल्माया जा रहा था. गुजरात में आए भयानक भूकंप ने भुज के एक हिस्से को बंजर बना दिया था. 50 डिग्री की चिलचिलाती धूप, सिर पर लगातार उड़ते हवाईजहाज़ और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी की वजह से फ़िल्म की शूटिंग बेहद चुनौतीपूर्ण थी. खुद आशुतोष और वरिष्ठ एक्टर एके हंगल इस फ़िल्म के दौरान बुरी तरह घायल हुए थे.

आशुतोष ने तो कई दिन सेट पर लेटे-लेटे ही निर्देशन की कमान संभाली थी. शायद यही कारण था कि फ़िल्म की मेकिंग को लेकर भी एक अलग फ़िल्म का निर्माण हुआ था, जिसे ‘चले चलो’ के नाम से जाना जाता है. ‘लगान’ बनने की पूरी कहानी पहले वकील और ‘लगान’ के वक्त से फिल्मों में आए सत्यजीत भटकल ने लिखी है. इस पर उनकी किताब है ‘दी स्पिरिट ऑफ लगान’. इसी किताब पर उन्होंने चले चलो का निर्माण किया था. कई विशेषज्ञों के मुताबिक, ‘चले चलो’ फ़िल्म मेकिंग से जुड़े पैशन की अद्भुत गाथा को बयां करती है.

फ़िल्म में हिन्दुस्तानियों की कमज़ोरियां, अंग्रेज़ों के आगे सिर झुकाने की मानसिकता की झलक है तो हिम्मत, विदेशी सत्ता से टक्कर लेने की क्षमता और अपने पर विश्वास कर दुनिया जीत लेने के प्रेरणायदायक मैसेज की वजह से ही शायद देश भर के लोग इस फ़िल्म से भावनात्मक जुड़ाव महसूस कर पाए थे. क्रिकेट और देशभक्ति यूं भी भारत की रगों में दौड़ती है, ऐसे में एक आर्टहाउस सिनेमा के फ़ील के बावजूद इस फ़िल्म ने बॉक्स ऑफ़िस पर सफ़लता के झंडे गाड़े थे.

गुजरात भूकंप से हुई भारी तबाही के चलते फ़िल्म के ब्रिटिश कलाकारों समेत सभी कलाकारों ने चैरिटी की थी. आमिर खान ने भुज के एक गांव को गोद लिया था और बेघर हो चुके लोगों को टेंट और ज़रूरी सुविधाएं मुहैया कराईं थी. वहीं ब्रिटिश एक्ट्रेस रेचल शैली चार महीनों की इस चुनौतीपूर्ण लेकिन यादगार अनुभव से इतना प्रभावित हुई थीं कि उन्होंने 11 मई 2001 को दुनिया के प्रतिष्ठित अखबार ‘द गार्डियन’ के लिए अपने इस अनुभव को दिल खोलकर रख दिया था. इसे उन्होंने ‘लव इन ए हॉट क्लाइमेट’ का नाम दिया था.

लगान इन मायनों में भी खास है कि ये रील और रियल लाइफ़ में एक ही इंसान के असंभव सपनों, पैशन और कामयाबी की ज़िद को एक साथ बयां कर रही थी.

फ़िल्म में जहां भुवन अकेले दम पर अंग्रेज़ों से लोहा ले रहा था, वहीं आशुतोष लीक से एकदम अलग हटकर, हज़ार चुनौतियों के बीच अपने सपने को लेकर संघर्ष कर रहे थे. लेकिन वो कहते है न, सच और साहस है जिसके मन में. अंत में जीत उसी की होती है.