फ़िल्में देखने की जो फील थिएटर में जा कर देखने में है, वो दुनिया के सबसे महंगे टीवी में भी नहीं. और कुछ फ़िल्में ऐसी होती हैं, जिन्हें अगर टीवी या लैपटॉप में देखा जाए, तो ये उनका अपमान कहलाया जाएगा.
मैं जब भी फ़िल्म देखने जाती हूं, तो न मुझे किसी से बात करना पसंद है, न ही पॉपकॉर्न खाते हुए भर-भर के आवाज़ करना. पूरा अटेंशन फ़िल्म पर. लेकिन हर बार मेरा पाला ऐसे लोगों से पड़ता है, जो घर से ये Plan बना कर आये होते हैं कि आज किसी को फ़िल्म नहीं देखने देंगे.
आपको भी मिले हैं ऐसे लोग?
मैंने अपनी एक्सपीरियंस के हिसाब से इन एंटी-फ़िल्म तत्वों की कैटेगरी बनायी है. अगर आपको अपने आस-पास कोई ऐसा दिखे, फ़ौरन कट लेना, या तो सीट चेंज कर लेना:
मैं फ़िल्म देखने आया हूं
ये वो लोग होते हैं जिन्हें हर दो मिनट में कोई न कोई कॉल आती है और ये ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला कर पूरी दुनिया को को बता देते हैं कि ये फ़िल्म देखने आये हैं. इन्हें जितनी कॉल्स आती हैं, ये उतनी बार उस इंसान को बताते हैं कि अभी बात नहीं पाएंगे, क्योंकि ये फ़िल्म देखने आये हैं. इनकी पहचान है फ़ोन का वाइब्रेशन मोड पर न होना.
बिन बुलाया मेहमान
ये वो आदमी होता है, जिसके शरीर में उत्साह दोगुनी गति से भरा होता है. इसका मकसद हर 5 मिनट में आपकी तरफ़ देख कर हंसना होता है. ये सबसे पहले आप से पानी मांगेगा और हो सकता है इसके साथ पॉपकॉर्न भी शेयर करना पड़ जाए.
फ़िल्म क्रिटिक
इस आत्मा को फ़िल्म के स्क्रीनप्ले से लेकर हीरोइन के दुप्पटे गिरने तक में कमी लगती है. हीरो को कैसे भागना चाहिए, कहानी में किस जगह इंटरवल होना चाहिए था, यहां तक कि कास्टिंग डायरेक्टर पर भी इनकी अपनी राय होती है. फ़िल्म खत्म होने तक वो उसे 2-3 स्टार दे चुका होता है.
हम तो तेरे आशिक़ हैं
जो कपल्स मेकआउट करने के लिए थिएटर का चुनाव करते हैं, वो वैसे तो सोच कर ही ऐसी फ़िल्म देखने आते हैं, जिसे देखने कोई नहीं आता. लेकिन कई बार इनसे गलती भी हो जाती है और इनका शिकार बनते हैं आप. जैसे जैसे फ़िल्म बढ़ती जाती है, इनका रोमांस भी. ये शर्म की पट्टी को बैगेज काउंटर पर छोड़ आये होते हैं, इसलिए बेहतर हो आप इन्हें देखते ही सीट बदल लें.
Sherlock Holmes
ये वो प्राणी होते हैं, जिनको जो फ़िल्म शुरू होने से लेकर फ़िल्म के एंड तक सिर्फ़ अपनी सीट ढूंढते रहते हैं. जैसे ही फ़िल्म का सबसे इम्पॉर्टेन्ट सीन आने वाला होता है, ये अपनी सीट से उठ खड़े हो, फ़ोन की लाइट चमकाते रहते हैं. ऐसा कोई पास में हो, तो पहले ही सीट से उठ कर उसकी मदद कर देना, वरना पूरे टाइम डिस्टर्ब होते रहोगे.
Seat का शहंशाह
इस आदमी को फ़िल्म देखने से ज़्यादा सीट ठीक करने में इंटरेस्ट रहता है. जैसे ही आप थोड़ा फ़ैल कर बैठने की कोशिश करते हैं, इसकी सीट धड़ाम से पीछे हो जाती है और आप के पैरों पर ऐसा झटका लगता है कि पूछो मत. इस प्रजाति की सीट से हर वक़्त आवाज़ आती रहेंगी, कभी आगे होने की, कभी पीछे. आप इनको कुछ बोल भी नहीं सकते, क्योंकि सीट के पैसे दिए हैं भाई! इसके लिए मेंटली तैयार रहना.
अगली बार आप जब भी फ़िल्म देखने जाएं, पता है न क्या करना है?
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