इंडियन सिनेमा की शुरुआत आज़ादी से कई पहले सन 1913 में हुई थी. आज भारत में हर साल 20 भाषाओं में क़रीब 1500 से 2000 फ़िल्में बनती हैं, जो दुनिया में सबसे अधिक है. हिंदी सिनेमा का इतिहास आज बेहद पुराना हो चुका है, लेकिन तब से अब तक जो चीज़ नहीं बदली वो है फ़िल्म में हीरो और विलेन के बीच की दुश्मनी. बॉलीवुड फ़िल्मों में जितना मज़बूत किरदार हीरो का होता है उतना ही विलेन का भी होता है.

आज हम आपको 60, 70, 80 और 90 के दशक के 5 ऐसे ख़तरनाक विलन के बारे में बताने जा रहे हैं, जो फ़िल्म के हीरो से कुछ कम नहीं थे. ये वो विलेन हैं जिनके परदे पर आते ही सीटियों से हॉल गूंजने लगता था. तो चलिए जानते हैं वो कौन-कौन से विलेन हैं? 

1- जीवन  

60, 70 और 80 के दशक में जीवन हिंदी सिनेमा के सबसे बड़े ख़लनायक हुआ करते थे. साल 1977 में आई ‘अमर अकबर एंथोनी’ फ़िल्म में ‘रॉबर्ट’ का किरदार भला कौन भूल सकता है. विलेन के तौर पर जीवन के बोलने का अंदाज़, दुश्मनी निभाने का तरीक़ा और तीखी नज़रें ही उन्हें अन्य अभिनेताओं से जुदा बनाती थी. जीवन के कुछ आइकॉनिक डायलॉग्स थे ‘आदमी के जब बुरे दिन आते हैं तो उसकी अकल मारी जाती है’, ‘ज़िंदगी में कुछ एहसान ऐसे भी होते हैं जिनकी क़ीमत असल से ज़्यादा सूद में चुकानी पड़ती है’ और ‘आज या तो इंसाफ़ होगा या मामला साफ़ होगा’. 

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2- अजीत  

सारा हिन्दुस्तान इन्हें आज भी ‘लॉयन’ के नाम से जानता है. अजीत का ये डायलॉग ‘सारा शहर मुझे लॉयन के नाम से जानता है’ आज भी पहले की तरह ही फ़ेमस है. बड़े परदे पर ‘लॉयन’ और ‘मोना डार्लिंग’ की जुगलबंदी न केवल दर्शकों को एंटरटेन करती थी, बल्कि अपने षड्यंत्रों से हीरो की नाम में भी दम करके रखती थी. साल 1976 में आई फ़िल्म ‘कालीचरण’ में ‘लॉयन’ के रूप में अजीत की खलनायिकी को भला कौन भूल सकता है. इस फ़िल्म से उन्होंने ख़लनायिकी के तौर-तरीके ही बदल दिए थे. अजीत फ़िल्मों में सिर्फ़ अपने आइकॉनिक डायलॉग्स के लिए ही नहीं, बल्कि अपने यूनीक स्टाइल के लिए भी जाने जाते थे.

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3- कुलभूषण खरबंदा 

हिंदी फ़िल्मों में आपने बेशक ‘गब्बर’, ‘मोगैंबो’ और ‘कांचा चीना’ की ज़बरदस्त खलनायिकी देखी होगी, लेकिन साल 1980 में आई फ़िल्म ‘शान’ में कुलभूषण खरबंदा द्वारा निभाया गया ‘शाकाल’ का किरदार अच्छे अच्छों के पसीने छुड़ा देने वाला था. ‘शाकाल के हाथ में जितने पत्ते होते हैं, उतने ही पत्ते उसकी आस्तीन में भी होते हैं… ये डायलॉग सुनते ही ‘शान’ फ़िल्म के निहायती खूंखार विलेन ‘शाकाल’ की याद आ जाती है. फ़िल्म में ‘शाकाल’ (कुलभूषण खरबंदा) से भिड़ने के लिए अमिताभ बच्चन, शशि कपूर और शत्रुघन सिन्हा को भी कड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी. कुलभूषण खरबंदा ने इसके अलावा भी विलेन के कई दमदार किरदार निभाए हैं.   

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4- रंजीत  

रंजीत का असली नाम गोपाल बेदी है, लेकिन दर्शक इन्हें आज भी रंजीत के नाम से जानते हैं. रंजीत एकमात्र बॉलीवुड विलेन थे जिनकी ज़बरदस्त पर्सनैलिटी, स्टाइल और चार्म के कारण असल ज़िंदगी में लड़कियां उन पर फ़िदा रहती थीं. 80 और 90 के दशक में रंजीत बॉलीवुड के एक ऐसे खलनायक के तौर पर जाने जाते थे जिनके स्क्रीन पर आते ही दर्शक हीरोइन की सलामती के लिए दुआ मांगने लगते थे. रंजीत के नाम आज भी सबसे अधिक 350 ऑनस्क्रीन दुष्कर्म का रिकॉर्ड है. ‘भगवान के लिए मुझे छोड़ दो’ के जवाब में रंजीत का वो डायलॉग ‘चिल्ला! यहां तेरी चीख सुनने वाला कोई नहीं’, ‘इतनी अच्छी चीज़ भगवान के लिए छोड़ दूं…तो मैं क्या करूंगा? आज भी काफ़ी मशहूर है.

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5- अमरीश पुरी  

हिंदी सिनेमा जगत में हीरो के तौर पर जो मुक़ाम अमिताभ बच्चन ने पाया है. वही मुक़ाम विलेन के तौर पर अमरीश पुरी ने भी पाया. वो हिंदी सिनेमा के सबसे ख़तरनाक विलेन में से एक थे. साल 1987 में शेखर कपूर द्वारा निर्देशित ‘मिस्टर इंडिया’ में ‘मोगैंबो’ की नकारात्मक भूमिका निभाकर वो बॉलीवुड में छा गए. इसके बाद साल 1989 में आई फ़िल्म ‘राम लखन’ में बिशंबर नाथ, साल 1990 में ‘घायल’ फिल्म में बलवंत राय, साल 1995 में फ़िल्म ‘करन अर्जुन’ में ठाकुर दुर्जन सिंह के दमदार किरदार निभाए. मोगैंबो ख़ुश हुआ…

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इन सभी खलनायकों में से आपका फ़ेवरेट विलेन कौन था और क्यों था?