हमारे देश में एक्टर्स के लिए पागलपन बहुत हद तक सीमाएं पार कर जाता है और अपने फ़ैंस के पागलपन को देख कर कई बार एक्टर्स राजनीति की तरफ़ रुख कर जाते हैं. कई एक्टर्स को इसमें भी फ़ैंस का प्यार मिलता है और राजनीति के सिरमौर बन जाते हैं. लेकिन कई एक्टर्स ऐसे में भी हैं, जो फ़िल्मों में तो हीरो होते हैं, लेकिन राजनीति में आते ही जैसे ज़ीरो बन जाते हैं. कौने हैं ऐसे स्टार्स चलिए एक नज़र डालते हैं.  

रजनीकांत

साऊथ फ़िल्मों के मेगा स्टार रजनीकांत, जिसकी फ़िल्में रिलीज़ होने से पहले ही हिट हो जाती हैं, जिनके पोस्टर्स को दूध से नहलाया जाता है. वो रजनीकांत पॉलिटिक्स में आएं तो क्या होगा, पार्टियों की ज़मानत ज़ब्त हो जाएगी. ऐसी बातें कि जाती थी, जब रजनीकांत सर की बात होती थी. लेकिन इसके उलट उनका राजनीतिक करियर शुरु होने से पहले ही ख़त्म हो गया. साल 2019 में जब उन्होंने अपनी पार्टी बनाने के लिए बनाए गए संगठन तैयार किया था, लेकिन 2021 में उसे भंग कर दिया.  

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कमल हासन

एक और साउथ के मेगा स्टार कमल हसन को राजनीति में अपने फ़ैंस का प्यार नहीं मिला. 2019 में कमल हसन ने अपनी पार्टी को 39 सीटों पर उतारा था, जहां उनके हाथ एक भी सीट नहीं आई. उन्हें सिर्फ़ 3.72 प्रतिशत वोट ही हासिल हुए. जिसके बाद हर किसी ने ये मान लिया कि कमल हसन का पॉलिटिकल करियर इसी के साथ समाप्त हो गया. अपनी हिट फ़िल्मों वाला जादू पॉलिटिक्स में कमल दिखाने में नाकाम रहे

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अमिताभ बच्चन

गांधी परिवार से अच्छे संबंध ने अमिताभ को पॉलिटिक्स में आने पर मजबूर किया था. राजीव गांधी ने उन्हें 1984 में लोकसभा का टिकट भी दिया, जिसके बाद उन्होंने बड़े वोट मार्जिन से जीत भी हासिल हुई. लेकिन बोफ़ोर्स घोटाले में राजीव गांधी का नाम आने के बाद अमिताभ को काफ़ी दुख पहुंचा था और उन्होंने राजनीति को अलविदा कह दिया. 

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गोविंदा

हालांकि गोविदा 2004 में एक बार सांसद चुने जा चुके हैं. कांग्रेस की टिकट पर लड़े चुनाव में उन्हें फ़ैंस ने काफ़ी प्यार दिया. लेकिन हीरो से नेता बने गोविंदा ज़्यादा दिन नेता का रोल नहीं निभा पाए. कई बार उनकी झड़पों की ख़बर उनके साथियों के बीच से ही आती थी. जिसके बाद गोविंदा को राजनीति ख़ुद टाईम की बर्बादी गलने लगी थी और इसी कारण उन्होंने राजनीति को छोड़ दिया.

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राजेश खन्ना

अपने वक़्त के सुपर स्टार राजेश खन्ना को भी गांधी परिवार ने चुनाव लड़वाया था. राजेश खन्ना 1991 में लाल कृष्ण आडवाणी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ा और मात्र करीब 1500 वोटों से चुनाव हारे. उसके बाद कांग्रेस के टिकट से दोबारा उन्होंने चुनाव लड़ा और फिर हारे, जिसके बाद उन्होेंने राजनीति को छोड़ दिया.

HT

इन सुपर स्टार्स के राजनीतिक फ़्लॉप शो से ये साफ़ हो गया कि फ़िल्मों में सुपर स्टार होने से राजनीति में कोई फ़ायदा नहीं मिलता और जनता काम को देख कर वोट करती है न की चेहरा.