V Shantaram: 50s और 60s का दौर कितना आइकॉनिक था, इस बारे में बताने की ज़रूरत नहीं है. आज भी अगर हम किसी से पूछें कि उन्होंने फ़िल्म ‘दो आंखें बारह हाथ‘ का गाना ‘ऐ मालिक तेरे बंदे हम‘ सुना है? तो उसका जवाब ‘हां’ में ही आएगा. ये गाना आज भी लोगों की जुबां पर है. ऐसी ही कई फ़िल्मों और उनके गानों को हमेशा अमर बनाने वाले निर्माता और निर्देशक थे शांताराम राजाराम वनकुद्रे यानि वी शांताराम (V. Shantaram).

उन्हें सिने जगत के ‘पितामह’ के नाम से भी जाना जाता था. अपने उसूलों के पक्के वी शांताराम ने कई सामाजिक समस्याओं को अपनी फ़िल्मों के ज़रिए पर्दे पर उतारने का प्रयास किया. उन्होंने 7 दशक फ़िल्म इंडस्ट्री में बिताए और इस दौरान 90 से ज़्यादा फ़िल्में बनाईं. उन्हें 1985 में भारत सरकार की तरफ़ से दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के अवार्ड से भी सम्मानित किया गया. आज 18 नवंबर को उनके जन्मदिन के मौके पर हम आपको उनसे जुड़ी कुछ रोचक बातें बताएंगे. 

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शुरुआती जीवन में की थी मजदूरी

18 नवंबर 1901 को एक मराठी परिवार में जन्मे वी शांताराम का परिवार आर्थिक तौर पर मज़बूत नहीं था. इसी वजह से शुरुआत में उन्हें मजदूरी भी करनी पड़ी थी. फिर कुछ सालों तक मराठी थिएटर ग्रुप में उन्होंने पर्दा गिराने वाले के रूप में भी काम किया. 16 साल की उम्र में उन्होंने टिन के नीचे चलने वाले सिनेमाघर में भी काम करना शुरू किया.

उनका एक्टिंग के प्रति इस कदर जूनून था कि उन्होंने 1920 में बतौर अभिनेता अपने करियर की शुरुआत की. इसके बाद महाराष्ट्र फ़िल्म कंपनी में लम्बे अरसे तक फ़िल्ममेकिंग सीखने के बाद उन्होंने बेटे प्रभात के नाम पर अपनी प्रभात फ़िल्म कंपनी बनाई. लेकिन फिर उन्होंने इस कंपनी को छोड़ दिया और बाद में राजकमल स्टूडियो की स्थापना की. 

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संगीत की भी थी अच्छी समझ 

कहा जाता है कि वो वी शांताराम ही थे, जिन्होंने पहली बार अपनी फ़िल्मों में क्लोज़-अप का इस्तेमाल किया. कहा जाता है कि जब तक उनकी अगली फ़िल्म तैयार होती थी, तब तक उनकी पिछली फ़िल्म सिनेमाघरों में लगी रहती थी. उन्हें संगीत की भी बहुत अच्छी समझ थी 60 के दशक में उन्होंने रामलाल नाम के संगीतकार की ज़िन्दगी बदल दी थी.

वी शांताराम ने उनसे मुलाकात कर अपनी फ़िल्में ‘सेहरा’ और ‘गीत गाया पत्थरों ने’ उन्हें दीं. इन फ़िल्मों के गाने काफ़ी लोकप्रिय हो गए और वी शांताराम की ज़िंदगी बदल गई.  

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जब अपनी बेटी को दिखाया बाहर का रास्ता

वी शांताराम को फ़िल्मों के अलावा समय के पाबंद रहने के लिए भी जाना जाता था. वो हमेशा अपने बनाए नियमों पर ही चलते थे. उन्हें काम में लेटलतीफ़ी बिल्कुल भी पसंद नहीं थी. इसी के चलते फ़िल्म ‘बूंद बन गयी मोती‘ में अपनी बेटी राजश्री के देरी से आने के चलते शांताराम ने उन्हें फ़िल्म से बाहर कर दिया था. इसके बाद उन्होंने मुमताज़ को साइन किया.

लेकिन इस फ़िल्म के हीरो जितेंद्र, मुमताज़ के साथ काम नहीं करना चाहते थे. लेकिन शांताराम अपने उसूलों के पक्के थे और जितेन्द्र को ये भी पता था कि अगर वो अपनी बेटी को बाहर निकाल सकते हैं तो उन्हें भी बाहर निकाल सकते हैं. जिसके बाद जितेन्द्र ने मुमताज़ के साथ फ़िल्म की और बाद में मुमताज़ एक सफ़ल स्टार बनीं.

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