भारत और पाकिस्तान के बीच आज सरहदों के फ़ासले आ गए हैं. मगर इन्हीं सरहदों में कई प्रेम कहानियों ने अपने प्यार की उड़ान भरी है. इन प्रेम कहानियों को सरहदें हों या हुक़ूमतों की लड़ाई कोई भी नहीं रोक पाई है क्योंकि प्यार को रास्ता देना नहीं पड़ता वो अपना रास्ता ख़ुद बना लेता है. प्यार की यही कहानियां बड़े पर्दे पर भी हर दौर में कही गई हैं इन्हीं में से एक दिल को छू लेने वाली प्रोम कहानी वीर-ज़ारा की, जिसमें शाहरुख़ ख़ान और प्रीति ज़िंटा थे. इसे दिग्गज फ़िल्ममेकर यश चोपड़ा ने बनाया था. इसमें प्रीति पाकिस्तानी लड़की थीं तो शाहरुख़ भारत के रहने वाले थे. वीर-ज़ारा की इस प्रेम कहानी ने बहुत से दिलों को धड़काया भी और कई आंखों को नम भी किया.

Veer-Zaara
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फ़िल्म में प्रेम कहानी को ख़ूबसूरत गानों के ज़रिये और भी ख़ूबसूरत बनाया गया था. वीर-ज़ारा के सभी गाने लोगों के दिलों में बस गए हैं. इन गानों की धुन ने सबके दिलों के तार को छेड़ा. फ़िल्म कका गाना तेरे लिये…रुह को छूने वाला गाना था. ये गाना 1975 की फ़िल्म “मौसम” के गाने “दिल ढूंढता है” की रिजेक्टेड धुन से बनाया गया था. इसी धुन से जुड़ा एक फ़ैक्ट आपको बताएंगे जो शायद ही किसी को पता हो.

दरअसल, इस वाक्ये को हम Instagram यूज़र mecinemaan के ज़रिये लेकर आए हैं. इसके अनुसार, दिवंगत दिग्गज संगीतकार मदन मोहन के बेटे और YRF के CEO संजीव कोहली ने इस वाक्ये का ज़िक्र करते हुए बताया,

दिवंगत महान फ़िल्ममेकर यश चोपड़ा ने फ़िल्म वीर-ज़ारा के लिए 28 साल से ज़्यादा पुरानी धुनों का इस्तेमाल किया था. ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि वो अपनी फ़िल्म के लिए ऐसा बैकर्गाउंड स्कोर चाहते थे जो 22 साल से ज़्यादा पुराना लगे. इसके चलते, वो कई पुराने संगीतकारों के साथ बैठे मगर कुछ बात नहीं बन रही थी. तभी मदन मोहन के बेटे संजीव कोहली ने यश चोपड़ा से कहा उनके दिवंगत पिता ने मरने से पहले कुछ डमी ट्यूंस बनाई थी, जो सारे म्यूज़िक स्टूडियोज़ ने रिजेक्ट कर दी थीं. बस तभी आदित्य और यश चोपड़ा उन सारी धुनों को सुना और उनमें से 11 धुनें अपनी फ़िल्म के 11 गानों के लिए फ़ाइनल कीं.

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28 जुलाई को रिलीज़ करण जौहर की फ़िल्म रॉकी और रानी की प्रेम कहानी में प्रीतम ने “What Jhumka?” गाना बनाया है, जो मदन मोहन के 1966 की फ़िल्म मेरा साया के गाने “झुमका गिरा रे” से मिलता-जुलता है.

आपको बता दें, दिवंगत संगीतकार मदन मोहन का निधन 1975 में महज़ 51 साल की उम्र में हो गया था. इन्होंने बड़े बैनर, बड़े सितारों वाली फ़िल्मों में अपना संगीत दिया था लेकिन उन्हें कभी कोई पुरस्कार नहीं मिला. मदन मोहन जाने से पहले कई धुनें बना गए हैं, जों पुरानी होते हुए भी दिल को छूने की काबिलियत रखती हैं.