फ़िल्मों की दुनिया कितनी अलग होती है न! कुछ असल और कुछ बनावटी चीज़ों को मिलाकर एक मायावी संसार की रचनी की जाती है. ये काम इतनी बारीकी से होता है कि देखना वाला अंतर नहीं कर पाता कि जो वो दिख रहा है, वो है या है भी नहीं!
हमारे और सिनेमा के बीच का जो पर्दा है, अगर उसे हटा दिया जाए, तो सब ठीक-ठीक समझ आ जाता है. ये अंतर और बड़ा लगता है जब आप हॉलीवुड की फ़िल्मों के प्रोडक्शन देखते हैं. हरे पर्दे(या ब्लू) और स्पेशल इफ़ेक्ट्स के सहारे लोगों को कहां से कहां पहुंचा दिया जाता है. हिन्दी फ़िल्मों में तो फिर भी एक बार झूठ पकड़ में आ जाए कि ये असली नहीं हो सकता.

अब मैं कहूं कि Life Of Pie फ़िल्म, जिसमें एक बाघ कहानी का प्रमुख हिस्सा है और लगभग पूरी फ़िल्म में दिखाया गया है, दरअसल वो एक ब्लू टेडी बियर है, तो आप इस बात को मानेंगे?

300 फ़िल्म तो पूरी की पूरी ‘ग्रीन स्क्रीन’ पर ही शूट हुई थी, चूंकी वो एक पीरियड कहानी थी, जिसे अब के समय में लोकेशन या सिर्फ़ स्टूडियो सेट पर नहीं शूट किया जा सकता था, लेकिन कम से कम खुले मैदान की लड़ाई को को बाहर शूट कर सकते थे.

क्या है ग्रीन स्क्रीन?
ये एडिटिंग का बहुत ही बेसिक सी तरीका है, इसे न्यूज़ रूम में भी यूज़ करते हैं. फ़िल्मों में इसे बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करते हैं.
ग्रीन/ब्लू पर्दे को कंप्युटर पर एडिटिंग टूल के इस्तेमाल से मनचाही तस्वीर लगाई जा सकती है. इसे तकनीकी भाषा में VFX भी कहते हैं. सुनने में ये बात आसान लगी होगी लेकिन इसमें परतें होती हैं और इसे कई लोग मिलकर करते हैं.
अब इन फ़िल्मों के सीन के देखिए, जिसे आप शायद असल लोकेशन या किरदार समझते थे, वो VFX का कमाल था.
Infnity War

इस सीन में भारी मात्रा में तबाही होते दिखाई गया है लेकिन असलियत कैसी दिखती है, आप देख लीजिए.
A Good Day To Die Hard

फ़िल्म में हीरो एक हेलिकॉप्टर से बच कर भागता हुआ दिखता है, लेकिन वो है कहां?
Tron

इस सीन की लाइटिंग और थीम इतनी सही थी कि इस पर किसी का ध्यान ही नहीं गया होगा.
Narnia

ये है Narnia की नकली दुनिया.
Wolf Of Wall Street

हालांकि इस सीन को असली लोकेशन पर भी शूट किया जा सकता था, लेकिन स्टूडियो के भीतर हरे पर्दे के सहारे ऐसा करना आसान और किफ़ायती होता है.
Superman

जब Superman ही नकली होता है, तो वो असली में उड़ कैसे सकता है?
इन पर्दों को देखकर आपकी आखों से भी पर्दा हट गया होगा.