विद्या बालन आज ऐसी अभिनेत्रियों में शुमार होती हैं, जो अपने अभिनय के दम से किसी भी किरदार में जान फूंक देती हैं. मगर बात करें शुरुआती दिनों की तो विद्या को भी इस इंडस्ट्री में पैर जमाने में काफ़ी मेहनत करनी पड़ी है. ये बात बताई उनकी पहली फ़िल्म ‘परिणीता’ के संगीतकार शांतनु मोइत्रा ने. इसके निर्देशक प्रदीप सरकार थे. ये फ़िल्म शरत चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा इसी नाम से लिखे गए बंगाली उपन्यास का हिंदी रूपांतरण थी. इसमें सैफ़ अली ख़ान, संजय दत्त और दीया मिर्ज़ा भी मुख्य भूमिका में थे.

News18 के अनुसार, शांतनु ने बताया,

फ़िल्म ‘परिणीता’ के किरदार के लिए विद्या को 75 बार ऑडिशन देना पड़ा था. इस फ़िल्म की सबसे अच्छी बात ये थी कि ऑडिशन में एक असाधारण सी लड़की विधु विनोद चोपड़ा के ऑफ़िस में बैठी थी, जिसके बाद हम धीरे-धीरे दोस्त बन गए.
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शांतनु ने आगे बताया,

जब हमारी बात शुरू हुई थी, तो मैंने उनसे पूछा कि वो यहां क्यों आई हैं? तो उन्होंने बताया कि वो यहां ऑडिशन के लिए आई हैं. मैं विद्या बालन की बात कर रहा हूं. ये बात मैं उन लोगों के लिए बात रहा हूं, जो सोचते हैं बस बहुत हो गया. और हार मान लेते हैं. मगर विद्या ने 75 बार ऑडिशन दिया और हर बार रिजेक्ट हुईं, लेकिन हार नहीं मानी. इसके बाद प्रदीप ने विनोद से नए लुक टेस्ट पर काम करने को कहा, क्योंकि पहले वाला लुक किरदार के साथ मैच नहीं हो रहा था. उस वक़्त विद्या के साथ-साथ कई बड़ी अभिनेत्रियां भी ऑडिशन दे रही थीं, उन्हें किरदार के लिए कॉल भी किया जा रहा था. 
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उन्होंने बताया,

जब 75वीं बार रिजेक्ट हुई तो विद्या ने कहा मैं ब्रायन एडम्स के कॉन्सर्ट में जा रही हूं, जो मुंबई में चल रहा था. तभी प्रदीप ने विद्या से एक आख़िरी बार ऑडिशन देने के लिए कहा. उस वक़्त क़रीब 3:30 बजे थे, विद्या तुरंत ऑडिशन देने के लिए तैयार हो गई और इस विश्वास के साथ ऑडिशन दिया कि इस बार हो ही जाएगा और टेस्ट के बाद वो कॉन्सर्ट के लिए चली गईं. 
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यादों के झरोखे से शांतनु ने आगे बताया,

इसके बाद जो हुआ वो हर इंसान में एक उम्मीद जगा देगा. उस दिन मैं अपने गाने पिया बोले के लिए गया था. गाना बज रहा था, सब कुछ सही जा रहा था, तभी अचानक प्रदीप ने अपना लैपटॉप खोला और विनोद से कहा कि हमें एक और टेस्ट लेना होगा, लेकिन विनोद ने प्रदीप और लैपटॉप की ओर देखते हुए कहा, उन्हें आख़िरकार परिणीता मिल गई है. इसके बाद कॉन्सर्ट में गई विद्या को ये ख़ुशख़बरी देनी थी, लेकिन कॉल देखकर वो फ़ोन स्विचऑफ़ करना चाह रही थी क्योंकि उसे लग रहा था इस बार भी कॉल रिजेक्शन के बारे में ही होगा. फिर किसी ने उसे मैसेज करके ये ख़ुशख़बरी दी, कि दोस्त इंतज़ार ख़त्म हुआ, तुम ही परिणीता हो. मुझे लगता है कि मैसेज पढ़ने के बाद वो कॉन्सर्ट से बाहर आकर घुटनों पर बैठकर रोई होगी क्योंकि वो परिणीता बन चुकी थी. फ़िल्म के बाद विद्या एक बेहतरीन अभिनेत्री के साथ-साथ एक सशक्त महिला बनकर उभरीं. 
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इसके बारे में बात करते हुए, विद्या ने कहा,

मुझे परिणीता में शांतनु के साथ काम करने का मौका मिला. हम परिणीता के लिए एक ऑडियो बोर्ड बना रहे थे और दादा ने कहा कि ये एक सीन है, जहां सैफ़ कहते हैं कि ‘एक शब्द है, इसमें एक धुन डाल दो’ और मैं ऑडियो बोर्ड के लिए गाऊंगी, उन्होंने ये कहा और मैंने निर्देशों का पालन किया. दादा ने जब शांतनु से कहा कि विद्या के गाने से क्या प्रॉब्लम है तो शांतनु का चेहरा फीका हो गया. मैंने उनसे पूछा कि मैंने क्या ग़लत किया है और मैंने दोबारा कोशिश भी करनी चाहिए, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया शायद उन्हें मेरा गाया हुआ गाना अच्छा नहीं लगा था. 

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