बॉलीवुड (Bollywood) एक्ट्रेस विद्या बालन की फ़िल्म ‘शेरनी’ (Sherni) 18 जून को Amazon Prime पर रिलीज़ हो चुकी है. मध्य प्रदेश के जंगलों पर आधारित इस फ़िल्म में विद्या एक फॉरेस्ट ऑफ़िसर का क़िरदार निभा रही हैं, जो एक बाघिन को ज़िंदा पकड़ने के लिए जद्दोजहद कर रही है. हालांकि उनके रास्ते में गांव वाले, सरकारी महकमा और स्थानीय राजनेता संग अन्य परेशानियां खड़ी हैं.
हालांकि, हम यहां फ़िल्म शेरनी के बारे में बात नहीं करने जा रहे, बल्कि आपको उस महिला अधिकारी की कहानी बताने जा रहे हैं, जिससे विद्या बालन का फ़िल्मी क़िरदार प्रेरित है.
शेरनी, जिसने बिना दहाड़े किया पुरुषवादी मानसिकता का शिकार
भारतीय वन सेवा की स्थापना के बाद से क़रीब 14 सालों तक पुरुष अधिकारियों का ही वर्चस्व रहा. साल 1980 में तीन महिला अधिकारी भी इस सेवा से जुड़ीं, जिसके बाद आज वन सेवा में 284 महिला अधिकारी और लगभग 5,000 महिला फ्रंटलाइन कर्मी हैं. इन्ही में से एक 2013 बैच की अधिकारी के.एम. अभर्णा भी हैं.
Meet the real life #Sherni
— Ramesh Pandey (@rameshpandeyifs) June 18, 2021
K. M. Abharna IFS officer from 2013, Maharashtra cadre who handled the T1 Tiger (popularly known as Avni) conflict management on ground. @LadyIFSOfficers @CentralIfs pic.twitter.com/AVRDPVxeaQ
के.एम. अभर्णा ने न सिर्फ़ वन्य जीव संरक्षण की दिशा में काम किया, बल्कि कई पितृसत्तात्मक रूढ़ियों को भी तोड़ा. इसके बावजूद उनके नाम और काम से ज़्यादा लोग परिचित नही हैं.
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आपको जानकर आश्चर्य होगा कि अवनि नाम की जिस बाघिन की साल 2018 में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, उस मामले की प्रभारी के.एम. अभर्णा ही थीं.
Women who walk the forest
— GREENQUEENS (@LadyIFSOfficers) June 18, 2021
#29 Meet the real Life Sherni –
K. M. Abharna 2013 MH who handled the T1 Tiger (popularly known as Avni)Conflict Management on ground. Here is a tale of an officer on field who dealt the crisis with utmost courage. pic.twitter.com/1RUaEk8gf0
उन्होंने पंढरकावड़ा संभाग के उप वन संरक्षक का जिस वक़्त कार्यभार संभाला था. उस समय स्थिति बेहद तनावपूर्ण थी. मानव-पशु संघर्ष जारी था और इसके बीच नाराज़ लोग वन विभाग की लापरवाही को लेकर आंदोलन कर रहे थे. हालांकि, अभर्णा ने इस तनाव को ख़ुद पर हावी नहीं होने दिया और नए तरीकों से स्थिति पर नियंत्रण स्थापित किया.
जिस वक़्त लोगों को लगता था कि जंगलों में महिलाएं, पुरुषों जितनी कुशलता से काम नहीं कर पाएंगी, उस वक़्त उन्होंने महिला वन रक्षकों की टीम बनाई. उन्होंने ग्रामीणों के लगातार संपर्क स्थापित किया. इसके अलावा, 24/7 निगरानी और ग्रिडवाइज कैमरा ट्रैप तक लगाने के ले कदम उठाए. मानव-पशु संघर्ष को कम करने के क्षेत्र में उनके काम की जितनी तारीफ़ की जाए कम है.
दरअसल, उन्होंने लोगों को शिक्षित करने और महाराष्ट्र में मारेगांव और पंढरकवाड़ा रेंज के बाघ-आबादी वाले क्षेत्रों में जागरूकता बढ़ाने के लिए वन रक्षकों की एक महिला टीम बनाई थी.
पशुओं के साथ पर्यावरण संरक्षण के लिए भी किया काम
महाराष्ट्र में बाघ संकट से निपटने से पहले अभर्णा को काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के सेंट्रल रेंज के प्रभारी के रूप में तैनात किया गया था. ये उद्यान एक सींग वाले गैंडे के लिए मशहूर है. अपनी पोस्टिंग के दौरान उन्होंने सेंट्रल रेंज में एक-सींग वाले गैंडे के शिकार पर सराहनीय तरीके से रोक लगाई. उन्होंने सुनिश्चित किया कि एक भी गैंडे का शिकार वहां न होने पाए.
इतना ही नहीं, उन्होंने इस क्षेत्र में अवैध मछली पकड़ने के नेटवर्क को भी बेअसर कर दिया और 2016-17 में क्षेत्र को प्लास्टिक मुक्त बनाने के लिए प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया.
एक सहायक संरक्षक वन (ACF) के रूप में उन्होंने एक समुदाय-आधारित अध्ययन में योगदान दिया. उन्होंने 2015 में स्थानीय समुदाय को शामिल करके बंदरों के खतरे पर विस्तृत रिपोर्ट दी, ताकि असम के 40 गांवों में मानव-बंदर संघर्ष को कम किया जा सके.
BRTC Heartily Welcomes Our New Director,
— Bamboo Research And Training Centre (@BRTC_Chandrapur) August 17, 2020
Smt.K.M.Abharna, I.F.S. pic.twitter.com/1ZSrYcbsqG
वर्तमान में के.एम. अभर्णा महाराष्ट्र में बांस अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र के निदेशक के रूप में तैनात हैं. इतना कुछ करने के बावजूद ज़्यादातर लोग उनकी राष्ट्र सेवा और वन्यजीव संरक्षण के लिए किए गए प्रयासों से अनजान हैं. ऐसे में ये ज़रूरी है कि लोगों तक उनकी ये कहानी पहुंचें, ताकि दूसरी महिलाओं संग पुरुष अधिकारी भी उनसे प्रेरणा ले सकें.