समय बड़ा बलवान होता है. जब ये आपका नहीं होता तो आपको बहुत कुछ सहना और सुनना पड़ता है. ऐसा ही कुछ अपने ज़माने के मशहूर एक्टर संजीव कुमार के साथ भी हुआ था. संघर्ष के दिनों में उनके रहन-सहन को लेकर भी लोग तंज कसने लगे थे. इसमें एक मशहूर अदाकारा से लेकर फ़िल्म के क्रू मेंबर भी शामिल है. इससे जुड़ा एक दिलचस्प क़िस्सा आज हम आपके लिए लेकर आए हैं.
बात 1964 की है जब संजीव कुमार इंडस्ट्री में नए-नए थे और उनकी कुछ फ़िल्में ही रिलीज़ हुई थीं. तब उन्हें बालीवुड में कोई ख़ास पहचान नहीं मिली थी. इसी बीच संजीव कुमार को निर्माता उस्मान अली की फ़िल्म पति पत्नी में काम मिल गया. इस फ़िल्म में उनकी हीरोइन थी नंदा, जो उस वक़्त की सुपरस्टार थीं.
एक दिन वो सिनेमा हॉल में फ़िल्म देखने गए. उन्होंने लोवर स्टॉल का टिकट ख़रीदा था. यहां नंदा भी फ़िल्म देखने आई थीं. दोनों की मुलाक़ात हुई, लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला कि संजीव बालकनी की जगह लोवर स्टॉल में पिक्चर में देखेंगे, तो नंदा उनसे नमस्ते किया और अपनी सीट की तरफ बढ़ गईं.
अगले दिन फ़िल्म के सेट पर जब नंदा पहुंची तो उन्होंने फ़िल्म निर्माता उस्मान अली से इस बात की शिकायत की. उन्होंने कहा ‘तुम्हारा ये हीरो फेरीवाला लगता है, न हुलिया ठीक है और न कपड़े ठीक पहनता है और तो और कल मेट्रो सिनेमा हॉल के लोवर स्टॉल में फ़िल्म देख रहा था. इसके साथ काम करूंगी तो मेरा भी स्टेट्स गिर जाएगा.’
जब ये बात हो रही थी, तभी संजीव कुमार भी आ गए. उन्होंने उस वक़्त वही कुर्ता पैजामा पहना हुआ था. वो बस से सफ़र करते थे और उसका टिकट उनकी हाथ घड़ी के नीचे से बाहर झांक रहा था.उनके लुक को देखकर एक टेक्निशियन ने तंज कसते हुए कहा- ‘भाई अगर हीरो हो तो हीरो की तरह रहना भी सीखो, कार नहीं है तो टैक्सी में आया जाया करो. अगर ये फेरीवाले की तरह ही रहना है तो फ़िल्म लाइन छोड़ो और पानी पूरी का ठेला लगा लो.’
ज़ाहिर सी बात है कि संजीव कुमार को ये बात बहुत बुरी लगी. उस वक़्त तो उन्होंने किसी से कुछ नहीं कहा, मगर बाद में उन्होंने न सिर्फ़ बड़ी-बड़ी यादगार फ़िल्में कीं, बल्कि ऐसा स्टेट्स अपनाया कि लोग उनके लुक को कॉपी करने लगे थे. संजीव कुमार ने अपने बेहतरीन अभिनय के दम पर इंडस्ट्री में ख़ूब नाम और पैसा कमाया. उनकी बेस्ट फ़िल्मों में आंधीं, अर्जुन पंडित, कोशिश, दस्तक, खिलौना, शोले, मौसम, त्रिशूल, विधाता, जैसी फ़िल्मों के नाम शामिल हैं.
उन्हें फ़िल्म ‘कोशिश’ और ‘दस्तक’ के लिए बेस्ट एक्टर का नेशनल अवॉर्ड भी मिला था. इसके अलावा भी उन्होंने कई अवॉर्ड्स जीते थे. कहते हैं कि जब संजीव कुमार एक जाने-माने कलाकार बन गए तब जब भी नंदा उनसे मिलती तो उन्हें अपने कहे पर अफ़सोस होता था.
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