बिमल रॉय को ‘दो बीघा ज़मीन’ को हिंदी सिनेमा की क्लासिक फ़िल्मों में गिना जाता है. जब ये फ़िल्म रिलीज़ हुई थी तब इस मूवी को देख दुनिया हक्की-बक्की रह गई थी कि कोई भारतीय भी रियलिस्टिक फ़िल्म बना सकता है.

इस मूवी में बलराज साहनी और निरुपा रॉय ने लीड रोल निभाया था. इस फ़िल्म को नेशनल और इंटरनेशनल स्तर पर कई अवॉर्ड भी मिले थे. इसकी कहानी लिखी थी सलील चौधरी ने जो रवींद्रनाथ टैगोर की एक कविता पर बेस्ड थी.

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एक लाचार किसान शंभू महतो जो अपनी दो बीघा ज़मीन को ज़मींदार से छुड़ाने के लिए बहुत जद्दोजहद करता है. इस किरदार को बलराज साहनी साहब ने बड़े ही करीने से निभाया था. मगर क्या आप जानते हैं इस मूवी के लिए पहली बार में रिजेक्ट हो गए थे बलराज साहनी. चलिए आपको ये क़िस्सा भी बता देते हैं

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दरअसल, जब बिमल रॉय इस फ़िल्म को बनाने की तैयारी में थे तो उन्हें एक किसान जैसे दिखने वाले एक्टर की तलाश थी. मगर जब इस रोल के लिए बलराज साहनी उनके पास पहुंचे तो वो उन्हें देख कर निराश हो गए. उन्होंने बलराज से कहा कि ये रोल उनके लिए नहीं है.

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अरे भई बलराज साहनी तब अंग्रेज़ जैसे गोरे चिट्टे दिखाई देते थे. किसी भी एंगल से वो न तो किसान लगते थे न ही मज़दूर. तब बलराज साहनी ने उस चैलेंज को स्वीकार किया और कुछ दिनों की मोहलत मांगी. इसके बाद वो कोलकाता चले आए. यहां उन्होंने हाथ से खींचे जाने वाला रिक्शा लिया और उसे लेकर कोलकाता की सड़कों पर सवारियां ढोने लगे. सड़कों पर नंगे पैर रिक्शा ढोने के कारण उनके पैरों में छाले तक पड़ गए थे.

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यही नहीं वो किसानों की बस्तियों में भी गए. वहां पर उन्होंने किसानों के रहन-सहन और उनकी बातचीत करने के तरीके को ग़ौर से देखा. अपने कैरेक्टर के लिए पर्याप्त मेहनत और रिसर्च करने बाद वो फिर से बिमल रॉय के पास पहुंचे. इस बार उन्हें देख वो हैरान रह गए और आख़िरकार बलराज साहनी जी को शंभू मेहतो के रोल के लिए सेलेक्ट कर लिया गया.

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फ़िल्म जब रिलीज़ हुई थी तो सभी ने बलराज साहनी की एक्टिंग की ख़ूब तारीफ़ की और कहा इस फ़िल्म की असली जान तो वही थे.
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