बॉलीवुड फ़िल्मों में बॉडी डबल का सिलसिला शुरू से ही चला आ रहा है, जो हीरो और हिरोईन के एक्शन सीन और मुश्किल सीन करते हैं. बॉलीवुड में कुछ ऐसे स्टार्स भी हैं जो बॉडी डबल का सहारा नहीं लेते. आज की बात करें तो अक्षय कुमार और अजय देवगन का नाम सबसे ऊपर है. और पुराने ज़माने की बात करें तो लेजेंड्री एक्टर (Legend Actor) दिलीप कुमार (Dilip Kumar), जो अपने मुश्किल से मुश्किल सीन्स ख़ुद करते थे क्योंकि उनका मानना था कि अगर मेरे सींस बॉडी डबल करेगा तो मेरी क्या ज़रूरत है?
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ऐसा ही एक वाक्या है जो ये साबित करता है कि दिलीप कुमार वाकई अपने सीन बॉडी डबल से नहीं कराते थे. ये वाक्या फ़िल्म कोहिनूर के गाने ‘मधुबन में राधिका नाचे रे…की शूटिंग के दौरान का है. साल 1959 में जब इस गाने की शूटिंग की जा रही थी तो मेकर्स ने दिलीप कुमार से कहा कि आपको बॉडी डबल लेना होगा. दिलीप कुमार ने मेकर्स की ये बात सुनी और ऐतराज़ जताते हुए कहा, वह अपने सीन ख़ुद करेंगे.
दिलीप कुमार की इस ज़िद के बाद मेकर्स ने उन्हें बताया कि, ये क्लासिकल गाना है और इसमें उन्हें सितार बजाना है, जो उन्हें नहीं आता है. इसलिए डायरेक्टर एसयू सनी ने फ़ैसला लिया कि बॉडी डबल तो लेना ही पड़ेगा. हालांकि, दिलीप कुमार सीन ख़ुद करने की बात पर अड़े रहे तो निर्देशक ने उनके आगे घुटने टेक दिए और कहा कि सितार दिलीप कुमार ही बजाएंगे, लेकिन जब क्लोज़ शॉट होगा तो उसमें सितार वादक की उंगलियों के शॉट डाल दिए जाएंगे. ये सुन कर दिलीप कुमार फिर उखड़ गए और कहा, अगर यही करना है तो मेरी क्या ज़रूरत है?
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दिलीप साहब अपनी आंखों से अदाकारी करते थे, उन्हें डॉयलॉग्स की भी ज़रूरत नहीं होती थी ये कहने वाले संगीतकार नौशाद अली ने भी इस वाक्ये का ज़िक्र एक इंटरव्यू में किया था, उन्होंने कहा था,
फ़िल्म कोहिनूर में जब हम ‘मधुबन में राधिका नाचे रे’ गाना रिकॉर्ड कर रहे थे, तब सितार बजाने की बात को लेकर मामला थोड़ा अटक गया था. क्योंकि मेकर्स चाहते थे कि ये शॉट बॉडी डबल से कराया जाए, लेकिन दिलीप कुमार ये ख़ुद करना चाहते थे. दिलीप कुमार ने भी माना था कि ये सीन काफ़ी मुश्किल है, तब मैंने कहा, कि उस्ताद हलीम जाफ़र ख़ान ने सितार बजाया है, हम सीन में उनका क्लोज़अप दे देंगे.
-नौशाद अली
उन्होंने आगे बताया,
दिलीप साहब नहीं माने और क्लोज़अप सीन भी ख़ुद करने के लिए कहा. सीन ख़ुद करने के चलते उन्होंने 2 से 3 महीने सितार का रियाज़ किया. इस एक शॉट को पूरा करने में तीन महीने लगे थे. जब ये सीन शूट हो गया तो दिलीप साहर खाना खाने चले गए. जब मैं उनके पास आकर बैठा तो मैंने देखा कि उनके उंगलियों में पट्टी बंधी है उनसे पूछा तो बताया कि सितार बजाते वक़्त उनकी उंगलियां ख़ून से लथपथ हो गई थीं, इसलिए उंगलियों पर टेप लगाना पड़ा.
गाना आप नीचे देख सकते हैं:
आपको बता दें, 7 जुलाई 2021 को दिलीप साहब दुनिया को अलविदा कह कर चले गए, लेकिन इनके जैसे अदाकार कभी मरते नहीं वो अपनी बातों और काम से हमेशा लोगों के दिलों में ज़िंदा रहते हैं.