‘मुग़ल-ए-आज़म’, ‘दीदार’, ‘आन’, ‘देवदास’ जैसी उम्दा फ़िल्मों का तोहफ़ा मिला हमें मोहम्मद युनुस ख़ान उर्फ़ ‘दिलीप कुमार’ से.


1960 के दशक में हिन्दी फ़िल्मों पर दिलीप साहब का ही दबदबा था. हिन्दुस्तान की जनता दिलीप साहब की दिवानी थी. अपने करियर के शीर्ष पर थे दिलीप साहब. 

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Times Now ने उन्हीं दिनों दिलीप साहब के साथ हुआ एक वाक़या साझा किया. दिलीप साहब और जेआरडी टाटा आस-पास बैठे फ़्लाइट से सफ़र कर रहे थे.   

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जैसा की अमूमन दिलीप साहब को आदत थी फ़्लाइट में सफ़र कर रहे बाक़ी लोग दिलीप साहब को देखकर पगला गए. दिलीप साहब को भी अपनी महत्वपूर्णता का एहसास हुआ.  

मेरे बगल में सिंपल शर्ट-पैंट पहना एक उम्रदराज़ शख़्स बैठा था. देखने में मिडिल क्लास व्यक्ति पर शिक्षित लग रहा था. सारे यात्री मुझे मुड़-मुड़कर देख रहे थे पर इन जनाब को मुझ से कोई मतलब नहीं था. वो अख़बार पढ़ रहे थे और खिड़की से बाहर देख रहे थे. जब चाय आई तो उन्होंने शांति से चाय पी. 

-दिलीप कुमार

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दिलीप साहब ने उस उम्रदराज़ शख़्स से बात-चीत शुरू की. दिलीप साहब की हल्की मुस्कान का जवाब उन्होंने ‘हेलो’ से दिया. बात-चीत के दौरान ही दिलीप साहब ने पूछ लिया कि क्या वो फ़िल्में देखते हैं. जवाब मिला, ‘बहुत कम… सालों पहले एक देखी थी.’ 

जब दिलीप कुमार ने ये बताया कि वो फ़िल्मों में काम करते हैं तो बगल में बैठे शख़्स ने कहा, ‘वाह! बहुत ख़ूब’

जब फ़्लाइट लैंड हुई तब दिलीप कुमार और उस शख़्स ने हाथ मिलाया. दिलीप कुमार ने अपना पूरा नाम बताया, जिस पर उस शख़्स ने कहा, ‘शुक्रिया, मेरा नाम जेआरडी टाटा है.’  

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जेआरडी टाटा ने टाटा ग्रुप के टर्नओवर को 5 बिलियन डॉलर के पार पहुंचा दिया था. 14 एंटरप्राइज़ेज़ के साथ उनके हाथ में टाटा ग्रुप आई थी जिसमें उन्होंने 81 एंटरप्राइजेज़ मर्ज करवाए.


दिलीप कुमार की जीवनी में भी इस घटना का ज़िक्र है. इस घटना को याद करते हुए दिलीप साहब कहते हैं,
‘आप कितने भी बड़े हो जाओ, कोई होगा जो आपसे भी बड़ा होगा. विनम्रता दिखाइए, इसमें आपका कुछ नुकसान नहीं होगा.’  

Hindustan Times

दिलीप साब की जीवन की ये कहानी आपको कैसी लगी हमें कमेंट बॉक्स में बताइए. Entertainment की और कहानियां पढ़िए ScoopWhoop हिंदी पर.