बॉलीवुड फ़िल्मों के शौक़ीन सिर्फ़ भारत में ही नहीं है, बल्कि आज पूरे विश्व भर में हिन्दी फ़िल्मों को देखा जाता है. वहीं, दक्षिण भारतीय फ़िल्में भी आज कई देशों में देखी जाती हैं. भारत के दुश्मन मुल़्क पाकिस्तान में भी भारतीय फ़िल्मों को पसंद किया जाता है. इसी क्रम में हम आपको इतिहास के पन्नों से निकाला गया वो क़िस्सा सुनाते हैं जब पाकिस्तान में भारतीय फ़िल्मों पर बैन था और वहां चोरी से श्रीदेवी की फ़िल्में देखी जाती थीं. 

भारतीय फ़िल्में देखना ग़ैरक़ानूनी 

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पाकिस्तान में बीबीसी के पूर्व पत्रकार वुसअतुल्लाह ख़ान का एक लेख 26 फ़रवरी 2018 को प्रकाशित हुआ था, जिसमें उन्होंने पाकिस्तान में भारतीय फ़िल्मों से जुड़े कई दिलचस्प क़िस्सों को साझा किया था. वुसअतुल्लाह अपनी रिपोर्ट में कहते हैं कि जब उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने कराची विश्वविद्यालय में दाखिला लिया था और एक साल के बाद उन्होंने हॉस्टल में कमरा मिला था. वो कहते हैं कि मैं श्रीदेवी का बड़ा वाला फ़ैन था, इसलिए कमरा मिलते ही सबसे पहले सामान सेट किया और दीवारों पर श्रीदेवी के दो पोस्टर आमने-सामने लगा दिए. वो कहते हैं कि ये तब की बात है, जब पाकिस्तान में वीसीआर पर भारतीय फ़िल्में देखना मना था यानी ग़ैरक़ानूनी था.  

चोरी चुपके देखते थे फ़िल्में  

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वुसअतुल्लाह ख़ान बताते हैं कि वो और उनके हॉस्टल के लड़के भारतीय फ़िल्में न देखने के खिलाफ़ थे और चोरी चुपके भारतीय फ़िल्में देखते थे. वो कहते हैं कि पैसे जोड़ कर लड़के किराये पर वीसीआर लाते थे और साथ में 6 फ़िल्में होती थी, जिनमें कम से कम 1 या 2 फ़िल्में श्रीदेवी की होती थीं.  

तानाशाही का विरोध   

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वुसअतुल्लाह ख़ान अपनी रिपोर्ट में कहते हैं वो दौर जनरल ज़िया-उल-हक़ और उनकी तानाशाही का था. ज़िया-उल-हक़ पाकिस्तान के 4 स्टार जनरल थे, जो पाकिस्तान के छठे प्रेसिडेंट बनें. वुसअतुल्लाह बताते हैं कि वो और उनके हॉस्टल के हॉल की सभी खिड़कियां व दरवाज़े खोलकर श्रीदेवी की फ़िल्में फुल वॉल्यूम पर देखा करते थे, ताकि आवाज़ पास में मौजूद पुलिस थाने तक पहुंच सके. ये जनरल ज़िया-उल-हक़ की तानाशाही के खिलाफ़ एक प्रतिरोध था. 

हंसते थे पुलिस वाले 

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वुसअतुल्लाह ख़ान बताते हैं कि जब आवाज़ पास के पुलिस थाने तक पहुंचती थी, तो वहां मौजूद कुछ पुलिस वाले हंसते हुए कहते थे, “हम तुम्हारी भावनाए समझते हैं, लेकिन जरा आवाज़ कम करके सुना होगा. किसी दिन कोई कड़क अफ़सर आ गया,तो हमारी वर्दी उतरते देख क्या तुम लोगों को अच्छा लगेगा?”  

श्रीदेवी की फ़िल्म दिखा दो  

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वुसअतुल्लाह बताते हैं कि हर तीन महीने में नए पुलिस वाले आ जाया करते थे, जिनमें एक जमील नाम का सिपाही उन्हें याद रहा. वो कहते हैं कि हॉस्टल की चौकी पर वो जमील एक साल तक नियुक्त रहे और जब उनका ट्रासफ़र का वक़्त आया, लड़को ने उन्हें दावत देने के लिए आमंत्रित किया. इस पर जमील ने कहा था कि दावत रहने दो, हो सके तो श्रीदेवी की फ़िल्म दिखा दो. कहते हैं उन रात श्रीदेवी की ‘जस्टिस चौधरी’ फ़िल्म सभी ने मिलकर देखी. 

आख़िरी फिल्म ‘चांदनी’  

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पुरानी बातों को याद करते हुए वुसअतुल्लाह कहते हैं कि अगर श्री देवी न होती, तो हम लड़के ज़िया-उल-हक़ की तानाशाही हम कैसे काट पाते. वुसअतुल्लाह बताते हैं उन्होंने श्रीदेवी की आख़िरी फ़िल्म ‘चांदनी’ देखी थी.