हिंदी क्लासिकल म्यूज़िक की दुनिया में उस्ताद बड़े गुलाम अली ख़ान साहब को 20वीं सदी का तानसेन कहा जाता है. उनके द्वारा गाई गई ठुमरी सुनकर आज भी लोग झूमने लगते हैं. उन्होंने हिंदुस्तानी क्लासिकल म्यूज़िक के पटियाला घराने से तालीम हासिल की थी और बाद में उसे नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया.
उस्ताद बड़े गुलाम अली ख़ान साहब के ठुमरी पर आधारित कुछ फ़ेमस गीत हैं ‘का करूं सजनी आए न बालम’, ‘याद पिया की आए’, ‘जा रे बदरा बैरी जा’, ‘प्रेम जोगन बन के’, ‘नैना मोरे तरस रहे’, ‘कंकर मार जगाए’. मुग़ल-ए-आज़म के गाने ‘प्रेम जोगन बन के…’ के लिए बड़े गुलाम अली ख़ान को उस दौर में 25000 रुपये फ़ीस दी गई थी.
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बड़े गुलाम अली ख़ान साहब ने ठुमरी के साथ कई प्रयोग किए और उसे एक नया अंदाज़ और मिठास भी दी. उनका लाइव कॉन्सर्ट देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ आया करती थी. मगर एक बार अपने एक कॉन्सर्ट में वो अपना गीत ही भूल गए. इसकी वजह थीं लता मंगेशकर.
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हुआ यूं के उस्ताद बड़े गुलाम अली ख़ान मुंबई में एक कॉन्सर्ट करने गए थे. यहां उन्होंने अपने शिष्यों से कहा कि आज वो राग यमन के साथ इस कार्यक्रम की शुरुआत करेंगे. शो से पहले उस्ताद और उनके शिष्य रियाज़ कर रहे थे कि तभी रेडियो पर एक गीत सुनाई देने लगा. पड़ोस के एक फ़्लैट से रेडियो पर लता जी का गाना आ रहा था- ‘जा रे बदरा बैरी जा रे जा रे.’
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फ़िल्म ‘बहाना’ के इस गीत को राजेंद्र कृष्ण ने लिखा था और इसका संगीत दिया था मदन मोहन जी ने. इस गाने को सुनकर उस्ताद बड़े गुलाम अली ख़ान साहब अपना यमन राग भूल गए. उन्होंने रियाज़ भी नहीं किया. पूरा गाना सुनने के बाद वो अपने शिष्यों से बोले कि-’जब से मैंने लता का गाना सुन लिया है, मैं अपना यमन भूल गया हूं. मैं आज क्या गाऊंगा.’
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वो लताजी के द्वारा गाए गए उस गीत में इस कदर खो गए कि वो भूल गए कि उनके सुर कैसे लगने वाले हैं. कहते हैं कि उस दिन उन्होंने उस कार्यक्रम में यमन न गाकर किसी दूसरे राग से शुरुआत की. लता जी की तारीफ़ करते हुए उस्ताद बड़े गुलाम अली ख़ान कहते थे कि ‘कम्बख़्त, कभी बेसुरी नहीं होती.’ वहीं दूसरी तरफ लता जी हमेशा यही कहती थीं कि अगर वो ठीक से रियाज़ करतीं तो उस्ताद बड़े गुलाम अली ख़ान के जैसे गीत गा पाती.
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