किसी की बात पर हंसना आसान है, मगर किसी को अपनी बात से हंसाना बड़ा मुश्किल है. जो एक्टिंग का हुनर रखते हैं, वो इस बात को बखूबी जानते हैं. बॉलीवुड फ़िल्मों में ऐसे बहुत से दिग्गज हुए हैं, जो इस हुनर में माहिर रहे हैं. फिर चाहें वो महमूद हों या फिर जगदीप और जॉनी वाकर जैसे कॉमेडियन्स. ऐसे ही एक कलाकार दिनेश हिंगू (Dinesh Hingoo) भी हैं, जिन्होंने चार दशकों से ज़्यादा वक़्त तक लोगों को गुदगुदाने का काम किया है. 

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बहुत कम लोग जानते हैं कि पर्दे पर जो शख़्स हमें हंसा-हंसाकर लोटपोट कर देता है, उसने अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत एक विलन के तौर पर की थी. जी हां, ये चौंकाने वाला है, मगर सच है. दिनेश हिंगू के बारे में ऐसी बहुत सी बाते हैं, जिनसे बहुत कम लोग ही वाकिफ़ हैं. ऐसे में आज हम आपको उनकी कहानी बताने जा रहे हैं. 

बचपन से था एक्टिंग का चस्का

बहुत से लोगों की आधी ज़िंदगी यही समझने में निकल जाती है कि वो लाइफ़ मे करना क्या चाहते हैं. मगर 13 अप्रैल, 1940 को गुजरात के बड़ौदा में पैदा हुए दिनेश हिंगू शुरू से ही अपनी लक्ष्य को लेकर क्लियर थे. उन्हें एक्टिंग करनी थी. इसलिए वो स्कूल टाइम से ही नाटकों में हिस्सा लेने लगे. जैसे-जैसे उम्र बढ़ी, वो अपने क्राफ़्ट में सुधार भी करते गए. फिर साल 1963 में वो फ़िल्मी दुनिया से जुड़ने मुंबई आ पहुंचे.

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अब मुंबई तो आ गए, मगर यहां उनके पास कोई काम नहीं था. कुछ था, तो बस टैलेंट और विश्वास. लेकिन शुरुआती दिन उनके काफ़ी स्ट्रगल में गुज़रे. फ़िल्मों में तो काम नहीं मिला, मगर एक्टिंग का शौक़ और गुज़ारे के लिए थियेटर से जुड़ गए. 

शुरू से थे समा बांधने में माहिर

दिनेश फ़िल्मों में ट्राई कर रहे थे. थियेटर भी चल रहा था. साथ ही, कुछ समय बचता तो वो स्टेज शो भी कर लेते. दिलचस्प ये है कि वो बड़े-बड़े गायकों के आने से पहले स्टेज पर स्टैंड अप कॉमेडी करते थे. ताकि लोग शोज़ से जुड़े रहें. इस सिंगर्स में मोहम्मद रफी से लेकर मन्ना डे तक का नाम शामिल हैं. किशोर कुमार के साथ तो उन्होंने लगभग एक दशक तक काम किया. हालांकि, उनका स्टैंडअप आज के जैसा नहीं था. वो बस बड़े आर्टिस्ट की मिमिक्री करते थे. 

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विलन के तौर पर शुरू हुआ दिनेश हिंगू का फ़िल्मी करियर

दिनेश हिंगू कॉमेडी कर रहे थे. हालांकि, उनका फ़िल्मी करियर विलन के तौर पर शुरू हुआ. उन्हें पहली फ़िल्म 1967 में मिली. नाम था ‘तक़दीर’. विलन में भी वो कोई लीड रोल नहीं कर रहे थे. वो बस फ़िल्म के मेन विलन कमल कपूर के हेंचमैन थे. ऐसे में उन्हें ज़्यादा नोटिस नहीं किया गया. हालांकि, 6 साल बाद जया बच्चन स्टारर फिल्म ‘कोरा कागज़’ में उन्हें अपनी एक्टिंग का हुनर दिखाने का मौक़ा मिला. लोगों ने उनकी एक्टिंग को सराहा.

फिर अगले ही साल यानि 1978 में इंडस्ट्री को अपना एक नया कॉमेडियन मिल गया. फ़िल्म थी ‘नसबंदी’. ये पहली फ़िल्म थी, जिसमें दिनेश ने कॉमेडी की और लोगों को बहुत पसंद आई. बस उसके बाद फ़िल्म कोई भी हो, डायरेक्टर दिनेश हिंगू के एक-दो सीन जोड़े बिना चैन नहीं लेते थे. यहां तक उन्हें डॉयलाग्स भी नहीं मिलते थे. बस सिचुएशन बता दी जाती थी और पूरा सीन उन पर ही छोड़ दिया जाता था.

जॉनी लीवर को स्टेज पर लाने वाले भी दिनेश हिंगू हैं

दिनेश हिंगू और जॉनी लीवर ने बहुत सी फ़िल्मों में साथ काम किया है. मगर शायद ही लोगों को पता हो कि जॉनी को स्टेज पर मौक़ा देने का काम दिनेश ने ही किया था्. यही वजह है कि जॉनी लीवर, दिनेश हिंगू का नाम बहुत सम्मान के साथ लेते हैं. दोनों का ये आपसी रिश्ता उनकी फ़िल्म में एकसाथ दी गई परफ़ॉर्मेंस भी दिखता है. 

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अब बाज़ीगर फ़िल्म में दोनों के फर्ज़ी हंसने का सीन भला कौन भूल सकता है. इस सीन को हम आज भी देखकर हंसते-हंसते लोटपोट हो जाते हैं. बता दें, इस तरह से हंसने का आइडिया दिनेश हिंगू का ही था. दरअसल, उन्होंने कभी एक शख़्स को ऐसा करते देखा था, जो बिना बात के हंसता था. बस उन्होंंने उसे फ़िल्म में इस्तेमाल कर लिया, जो काफ़ी हिट रहा. आप ये सीन यहां पर देख सकते हैं- 

अब कहां हैं दिनेश हिंगू?

दिनेश ने 300 से ज़्यादा फ़िल्मों में काम किया है. इनमें हिंदी समेत दूसरी भाषाओं की फ़िल्में भी शामिल हैं. इनमें ‘कोरा कागज’, ‘तुम्हारे लिए’, ‘लेडीज़ टेलर’, ‘नमक हलाल’ से लेकर ‘बाज़ीगर’, ‘बादशाह’, ‘नो एंट्री’ और ‘हेरा-फ़ेरी’ जैसी सुपरहिट फ़िल्में शामिल हैं. फ़िलहाल वो 81 बरस के हो चुके हैं और मुंबई में अपनी पत्नी जमुना हिंगू और बच्चों के साथ ही रहते हैं. उनके दो बेटे हैं, जो सेटल हैं. उनके पोते भी हैं, जो स्कूल में अब अपने दादा की नकल उतारते हैं. हम उम्मीद कर सकते हैं दिनेश हिंगू वापस से किसी फ़िल्म में नज़र आएं और हमें एक बार फिर हंसने का मौक़ा मिले.